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________________ अमीरचन्द्र यह सब कह तो मन में रहा था, किन्तु वे साधु मन की बात समझ ही गये और बोले कि सेठ जी लगता है तुम्हें मेरी बात का बुरा लगा है ? बुरा लगने की तो बात ही है महाराज ! एक तो आप मेरा दान लेते नहीं और ऊपर से कहते हो कि मुझे तुम्हारे दान की नहीं, तुम्हारे मैं की जरूरत है? फिर मैं दान भी तो कम नहीं दे राह हूँ, पूरे एक लाख हैं। यह कहते हुए अमीरचन्द्र अब भी क्रोध में काँप ही रहा था । वह भी नहीं समझा पा रहा था कि उसे हो क्या गया है ? सेठ जी! जो दाता इन सात गुणों के साथ दान देता है उसी का दान स्व पर कल्याणक होता है । साधु को अब लगा कि चोट गहरी लगी है सेठ को, इसे सम्बोधन की आवश्यकता है। साधु ने कहा-सेठ जी ! मैंने ठीक ही तो कहा था- मुझे तुम्हारे दान (धन) की जरूरत नहीं है, क्योंकि वह तो मैं पहले ही त्याग चुका हूँ। जैन साधु तो तिलतुषमात्र परिग्रह भी अपने पास नहीं रखते। मैंने जो तुम्हारा 'मैं' माँगा था वह भी इसलिए कि यदि दान भावना के पीछे और साथ में अहंकार रहा तो दान का फल तुम्हें कैसे प्राप्त होगा? दान एवं जिस दान के साथ दाता स्वयं को नहीं देता वह दान दान नहीं नादानी है। दान के लिए कहा है- “ अनुग्रहार्थं स्वस्यातिसर्गोदानम्" अर्थात् स्व पर कल्याण के लिए देना दान है। यदि तुममें अहंकार रहा तो आँखें साधु के इस वचनों को सुनकर सेठ अमीरचन्द की खुल गयी थी । धन की थैली चरणों में ही पड़ी थी, किन्तु अब अहंकार का प्रतीक उन्नत सिर भी साधु चरणों में पड़ा हुआ था। अब वह जान गया था कि दान की कीमत दान की भावना से होती है, दान के अहं से नहीं। अहं तो जितनी जल्दी विसर्जित हो जाये, उतना ही ठीक है । । । जिसे तुमने दिया उसका भले ही कल्याण हो जाये किन्तु तुम्हारा कल्याण कैसे होगा ? दान दाता के लिए तो आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी ने सात गुण बताये हैं Jain Education International । आपको सूचित करते हुए हमें अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है कि दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में प्रथम बार श्री पारसनाथ दिगम्बर जैन गुरुकुल की स्थापना 1 जून 2004 को की गई जो कि एक अद्वितीय कार्य हुआ है। वर्तमान में गुरुकुल में 60 छात्र अध्ययनरत हैं तथा प्रतिवर्ष 25 छात्रों को प्रवेश देने की योजना है छात्रों का चयन निम्नलिखित नियम एवं शर्तों | के आधार पर किया जाता है । नियम एवं शर्तें - 1. 10 वीं कक्षा में 70 प्रतिशत अधिक अंक होना अनिवार्य है। 2. चयन मैरिट लिस्ट के आधार पर किया जाता है। 3. प्रवेश इण्टर प्रथम वर्ष ( 11वीं कक्षा) के छात्रों को ही दिया जाता है। (CEC, BPC, MPC, MEC) 4. अंग्रेजी एवं हिन्दी ज्ञान अनिवार्य है। 5. धार्मिक पढ़ाई अनिवार्य है। 6. नियम एवं शर्तें पूर्णतया लागू होंगी । ऐहिकफलानपेक्षा क्षान्तिर्निष्कपटानसूयत्वम् । अविषादित्वमुदित्वे निरहङ्कारमिति हि दात्रगुणाः ॥ (पुरुषार्थसिद्धयुपाय) अर्थात् 1. इस लोक में फल की इच्छा न करे, 2. क्षमाभाव धारण करे, 3. निष्कपट रहे, 4. दूसरे दातारों के प्रति ईर्ष्या भाव न रखे, 5. विषाद न करे कि मेरे यहाँ जो अच्छी वस्तु थी वह मैंने दे दी, मुझे नहीं देनी थी, 6. दान देकर हर्षित हो तथा 7. अहंकार नहीं करे। लौकिक एवं पारमार्थिक शिक्षा हेतु एक सुन्दर संस्थान हैदराबाद नगर में श्री पारसनाथ दिगम्बर जैन गुरुकुल संचालित व्यवस्थाएँ - छात्रों को आवास, भोजन, कॉलेज एवं धर्म की पढ़ाई आदि की पूर्ण निःशुल्क व्यवस्था । इण्टर प्रथम वर्ष से स्नातक (डिग्री) की सम्पूर्ण पढ़ाई की सुविधा । अंग्रेजी एवं कम्प्यूटर का ज्ञान उपलब्ध । उद्देश्य-हमारा उद्देश्य लौकिक अध्ययन में उन्नति के साथसाथ छात्रों को आगमानुकूल ग्रन्थों का अध्ययन कराकर संस्कारित करना एवं समाज में फैल रही कुरीतियों को दूर करने के लिए धर्म की रक्षा हेतु समर्पित एवं उपासक विद्वान् तैयारकर समाज सेवा में उपलब्ध कराना है । यदि आप अपने पुत्र / पौत्र को गुरुकुल में प्रवेश दिलाना चाहते हो तो, शीघ्र ही एड्मिशन फॉर्म मंगाकर अपना स्थान आरक्षित करवा लें। अधिक जानकारी हेतु सम्पर्क करें For Private & Personal Use Only शैलेन्द्र शास्त्री (संस्था प्रधान ) 040-24651825, 94418588600 अप्रैल 2007 जिनभाषित 29 www.jainelibrary.org
SR No.524316
Book TitleJinabhashita 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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