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कृत्यों को रोकना मुश्किल होगा। निठारी कांड की स्याही अभी सूखी भी नहीं थी कि रतलाम के मिशन हास्पिटल से मासूम बच्चों के कंकाल और बड़ी तादात में मांस के लोथड़े मिले। यह सिलसिला इसी तरह पूरे देश व दुनिया में फैलता जा रहा है और फैलता जाएगा। कोई धर्मगुरु आगे नहीं आ रहा है। ढाई सौ करोड़ रुपए से बने अक्षरधाम मंदिर से महज चार कि.मी. पर स्थित निठारी गांव में कोई धर्मगुरु या नेता संवेदना व्यक्त करने नहीं गया। ऐसे अपराधों के खिलाफ यदि कोई बोल रहा है, तो वे सामाजिक कार्यकर्ता या राजनेता । तथाकथित धर्माचारियों की संवेदनाशून्यता का इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा कि ऐसे कांडों के बाद भी वे पूर्ववत् अपने पूजा-पाठ व अजान नमाज में लगे हैं। जैसे कहीं कुछ हुआ ही न हो।
धर्म यदि अधार्मिक कृत्यों को रोकने के लिए आगे नहीं आता, तो वह धर्म नहीं बल्कि पाखंड ही माना जाएगा। और धर्म का यह निष्क्रियरूप ही समाज को विकृत कर रहा
। धर्म की नई सामाजिक भूमिका समाजसुधार और सांस्कृतिक नवउत्थान में सबसे महत्वपूर्ण है। इसमें उन सभी लोगों की भूमिका होनी चाहिए जो वाकई में विश्व
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समाज को एक परिवार मानते हैं। जो चाहते हैं इंसानियत का भला और विकास हो । आज विश्व उस रूप में नहीं है जैसा कुछ दशक पहले था। इसे नजर में रखते हुए सबको साथ मिलकर काम करना होगा जो कथित धर्म के नाम पर देशदुनिया में हिंसा, आतंकवाद, सांप्रदायिकता और जातिवाद का जहर घोल रही हैं। और उन धर्मगुरुओं को सबसे ज्यादा सोचने की जरूरत है जो धर्म के नाम पर आदर-सम्मान हासिल कर रहे हैं लेकिन समाज में बढ़ रहे अधर्म और गैरइंसानी रवायतों के खिलाफ आगे आने में झिझकते हैं । इससे असामाजिक और अमानवीय ताकतों को लगातार बढ़ावा मिल रहा है।
समाज को आज ऐसे क्रांतिकारी और चिंतनशील कर्मवीरों की जरूरत है जो पद, प्रतिष्ठा और स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज और इंसानी तहजीब को मुसलसल रखने में यकीन करते हैं। इनसे ही बढ़ती दुष्प्रवृत्तियों और अमानवीयता पर लगाम लगाई जा सकती है। अंधविश्वास एवं तथाकथित धर्मगुरुओं के पाखंड को रोकने में तभी सफल हुआ जा सकता है।
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सुधार का रास्ता
एक दिन आचार्य गुरुदेव से कहा- गुरुदेव कुछ लोग गलत कार्य करते हैं, उन्हें समझाते हैं फिर भी वे गलत कार्य करना नहीं छोड़ते। ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए? आचार्य गुरुदेव ने युक्तिपूर्वक समझाते हुए कहा, जिससे आप पाप छुड़वाना चाहते हो, उससे पहले मित्रतापूर्वक व्यवहार करो। फिर कहो - भैया देखो, हमें आपके ये कार्य अच्छे नहीं लगते। मैं आपसे मित्र की तरह मिलता रहता हूँ, साथ में उठना, बैठना भी होता है, आप ऐसे कार्य मत किया करो। सरलता से समझाकर ही यह कार्य हो सकता है अपनापन देकर आप मनुष्य से क्या, पशु पक्षी से भी पाप छुड़वा सकते हो, वरना नहीं । यदि हमारा उसके प्रति सद्व्यवहार न हो, तो उसको ठेस लगने से उसका सम्यग्दर्शन भी छूट सकता है। इसलिए ऐसा व्यवहार करो, जिससे अपनी दृष्टि मजबूत हो और दूसरे को भी सही दृष्टि प्राप्त हो, क्योंकि दुकान सरलता से नम्रता से ही चलती है, जोर जबरदस्ती से नहीं ।
दैनिक भास्कर, भोपाल १४ मार्च, २००७ से साभार
मन मंदिर में
सर्वोदय तीर्थ अमरकण्टक में नव निर्मित अष्ट धातु की आदिनाथ भगवान् की प्रतिमा जी को वेदी पर स्थापित करने के लिए ट्रक में लाया जा रहा था, वह बीच में ही रुक गया। ट्रक का आधा पहिया जमीन में धँस गया। ट्रक वहीं रुक गया, आगे नहीं बढ़ रहा था । तब आचार्यश्री ने कहा भैया ! भगवान् बिना परीक्षा के वेदी पर नहीं बैठते, तो सोच लो आपके मन मंदिर में भी बिना परीक्षा के कैसे बैठेंगे?
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मुनि श्री कुन्थुसागर संकलित 'संस्मरण' से साभार
'अप्रैल 2007 जिनभाषित 19
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