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________________ जैन महिलाओं के व्यक्तित्व का चतुर्मुखी विकास विमला जैन जिला एवं सत्र न्यायाधीश भाग्योदय तीर्थ प्राकृतिक चिकित्सालय, सागर (म.प्र.) की संचालिका डॉ. रेखा जैन ने 16 फरवरी 2007 को सागर में अखिल भारतीय जैन महिला सम्मेलन आयोजित किया था। उन्होंने इस आयोजन में श्रीमती विमला जैन, जिला एवं सत्र न्यायाधीश, टीकमगढ़ को विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था। श्रीमती जैन अपनी तात्कालिक परिस्थितियों के कारण उपस्थित नहीं हो सकीं। उनकी अनुपस्थिति में पढ़े गये उनके भाषण का सारांश यहाँ प्रस्तुत है। संपादक जैन समाज ज्ञान-आधारित समाज है। जैन संस्कृति । का सशक्त चक्र है। पवित्र सामाजिक संस्कारों की जननी के रत्नत्रय में ज्ञान को केन्द्रीय कड़ी स्वीकार किया गया है। | है। संस्कृति की संरक्षिणी है। पारिवारिक, सामाजिक एवं ईसा की द्वितीय शताब्दी में आचार्य उमास्वामी द्वारा विरचित | धार्मिक कार्यों की सफल प्रबंधक एवं संचालक है। नारी तत्त्वार्थ सूत्र के प्रथम सूत्र 'सम्यक्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' | अपने नैसर्गिक गुणों से अपने घर को स्वर्ग बनाती है। पूरे में ज्ञान को महत्त्वपूर्ण भूमिका प्रदान की गई है। पण्डित | परिवार को एक सूत्र में बाँधती है। वह करूणा की जीवंत दौलतराम जी द्वारा 300 वर्ष पूर्व रचित छहढाला की निम्नांकित | मूर्ति है। वह ममता, समता, सहिष्णुता, शांति, श्रमशीलता, पंक्तियों में, जो हमारी माताएँ बहिनें सदैव पढ़ती हैं, ज्ञान को | सहनशीलता, सेवा और विनम्रता जैसी शुचिधाराओं का संगम ही सुख का अनुपम उपाय बतलाया गया है है। जैन नारियों ने अपनी गौरव, गरिमा, तपस्या और त्याग ज्ञान समान न आन जगत में सुख को कारन। | की छवि सम्पूर्ण इतिहास में अंकित की है। जैन संस्कृति को यह परमामत जन्म जरा मृत्यु रोग निवारण॥ अमरता प्रदान करने में जैन नारियों ने बहुमूल्य योगदान दिया जैनधर्म के आदि तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव ने | है। अपनी दोनों पुत्रियों ब्राह्मी और सुन्दरी को स्वयं अध्ययन ज्ञान-दान श्रेष्ठतम एवं सर्वोत्कृष्ट दान है। ज्ञान से कराया था और इसतरह समाज की सभी स्त्रियों को शिक्षा | हमारे अनेक कष्टों का निदान हो जाता है। हम यह शपथ लें ग्रहण करने की प्रेरणा दी थी। भगवान ऋषभदेव के स्त्रीशिक्षा- | कि. अपने परिवार. अपने संबंधियों और अपने समाज के संबंधी महत्त्वपूर्ण उपदेश को आचार्य जिनसेन द्वारा रचित | सदस्यों को सदैव ज्ञानदान का प्रयास करें। आदिपुराण के निम्नांकित श्लोक 16/98 में लेखबद्ध किया यह आवश्यक है कि हमारी शिक्षित महिलाएं गया है आधुनिक विज्ञान और तकनीक को अपने ग्रामीण क्षेत्र में विद्यावान् पुरुषो लोके सम्मतिं याति कोविदैः। । रहनेवाले प्रत्येक परिवार तक पहुँचाएँ। प्रत्येक मंदिर और नारी च तद्वती धत्ते स्त्रीसृष्टेरग्रिमं पदम्॥ धर्मशाला में ज्ञानकेन्द्र स्थापित करें। ग्रामों में और छोटे नगरों अर्थात् लोक में विद्यावान् पुरुष, पण्डितों के द्वारा | में रहने वाले जैन परिवारों का जीवन स्तर ऊँचा उठाएँ। उन्हें सम्मानित किया जाता है, विद्यावती नारी सर्वश्रेष्ठ पद प्राप्त | इन तकनीकों से जोडें। जिससे वे भी हमारी प्रगतिशील करती है। अतः हे पुत्रियों! तुम विद्यार्जन हेतु सदा प्रयत्नशील | समाज की मुख्यधारा में आ सकें। हमारी महिलाएँ जैन रहो। संस्कृति और जैन कला के वैज्ञानिक एवं तकनीकी पक्षों का तीर्थंकरों एवं आचार्यों की सतत् प्रेरणा एवं उपदेश | प्रचार-प्रसार करें। जैन मान्यताओं, परम्पराओं, जैन के कारण जैन श्रावकाचार में शिक्षा प्राप्ति का सर्वाधिक महत्त्व जीवनपद्धतियों एवं पारम्परिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण करें। रहा है। शिक्षित और ज्ञानी महिलाओं को समाज में सदा भारतीय संस्कृति माता को अनेकानेक गुरुओं से श्रेष्ठ अग्रणी और सम्मानीय स्थान प्रदान किया गया है। लौकिक मानती है। निम्नांकित श्लोक में कहा गया है कि दस उपाध्यायों शिक्षा प्राप्तकर श्रमण संस्कृति का अध्ययन करने की हमारी | से एक आचार्य, सौ आचार्यो से एक पिता तथा हजार पिताओं महिलाओं में सदैव जागरुकता एवं रुचि रही है। से एक माता श्रेष्ठ है। नारी परिवार की आधारशीला है। वह सामाजिक रथ उपाध्यायान्दशाचार्यः आचार्याणां शतं पिता। 20 अप्रैल 2007 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524316
Book TitleJinabhashita 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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