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________________ श्री विद्यासागर जी महाराज एवं उनके द्वारा दीक्षित शिष्य हर | को आपित्त नहीं होनी चाहिए, अपितु अनुकरण का भाव उस साधु से मिलते हैं, जिसकी चर्या निर्दोष है। उन्होंने | होना चाहिए। कभी किसी साध को अपने संघसान्निध्य से नहीं रोका।। जहाँ तक अ.भा.दि. जैन विद्वत्परिषद् द्वारा भट्टारक श्री अखिल बंसल का यह लिखना कि- "मुनि परंपरा के विरोध का आरोप श्री अखिल बंसल ने लगाया है. सुधासागर जी ने विद्वानों की संस्था अ.भा.दि.जैन विद्वत्परिषद् | यह पूरी तरह मिथ्या है। यदि ऐसा होता तो श्रवणबेलगोला में के एक धड़े को पूरा आशीर्वाद देकर अपने पक्ष में कर रखा | आयोजित विद्वत्-सम्मलेन का संयोजक विद्वत्परिषद् के है," जबकि वास्तविकता यह है कि उन्होंने विद्वत्परिषद् के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. फूलचन्द जैन प्रेमी को नहीं बनाया किसी एक धड़े को नहीं, अपितु सम्पूर्ण विद्वत्परिषद् (मूल) | जाता। मुनि श्री ने आचार्य श्री भरतसागर जी के विषय में जो को अपना आशीर्वाद दिया है। हाँ, कुछ ऐसे लोग अवश्य कुछ कहा है, अगर उस पर व्यापक परिप्रेक्ष्य में आप देखते. उनके आशीर्वाद से वंचित हो सकते हैं, जिन्होंने विद्वत्परिषद तो ऐसा नहीं लिखते। मुनि श्री साधुओं के द्वारा किये जानेवाले को तोड़ने का असफल प्रयत्न किया और जिनकी दिगम्बर | तंत्र-मंत्र के विरुद्ध हैं और आगम भी ऐसा ही कहता है। मुनियों में आस्था नहीं है। उन्होंने विद्वत्परिषद् के सैकड़ों मुनिश्री ने विद्वत्संगोष्ठी में आचार्य श्री विद्यानंद जी के विषय सदस्यों के मध्य स्पष्ट रूप से कहा है कि उन्हें किसी | में कोई भी अनुचित टिप्पणी नहीं की। हमारे विद्वानों या व्यक्ति या साधुविशेष के प्रति निष्ठा रखनेवाली किसी भी विद्वत्परिषद् को आपके द्वारा पिछलग्गू या कृतघ्नता की संस्था से कोई प्रयोजन नहीं है। वे विद्वानों की एकता के | श्रेणी में रखना पूरी तरह अनुचित है। आशा है आप अपने पक्षधर हैं और एकता चाहनेवालों को अपना आशीर्वाद देने | विचारों में परिवर्तन लायेंगे और सच को सच और झठ को के लिए तैयार हैं। अत: उन पर दोषारोपण करना उचित नहीं झूठ कहने का प्रयास करेंगे। है। मुनिपुङ्गव श्री सुधासागर जी महाराज शास्त्रिपरिषद् एवं अन्त में मेरा सभी सामाजिक जनों, पत्रकारों से निवेदन विद्वत्परिषद् के सैंकड़ों विद्वानों की दृष्टि में एक आदर्श है कि वे यदि विद्वानों को अपना विश्वास नहीं दे सकते, तो साधु हैं, जिनका कृतित्व मूलाचार के अनुरूप है और यही | कम से कम उनके विरुद्ध दुष्प्रचार न करें। विद्वान् सदैव से वह कारण है कि वे हम विद्वानों को ही अपने चारित्र में | समाज की शोभा हैं और सदा बने रहेंगे। गुणात्मक वृद्धि हेतु खरी-खरी सुनाते हैं, फिर भी हम चाहते मंत्री- अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद हैं कि उनका सान्निध्य हमें बराबर मिलता रहे। इसमें किसी | एल-65, न्यू इन्दिरा नगर, बुरहानपुर (म.प्र.) जैन डॉक्टर्स सम्मेलन संपन्न तीर्थराज शिखर जी में दो दिवसीय अखिल भारतीय दिगम्बर जैन डॉक्टर्स संगोष्ठी आचार्य विद्यासागर जी के परम आशीष एवम् प.पू. मुनिश्री प्रमाणसागरजी के मंगल सान्निध्य में भारी सफलता के साथ संपन्न हुई। परिचय सम्मेलन के अंत में प.पू. मुनिश्री १०८ प्रमाणसागर जी महाराज ने सभी चिकित्सकों के लिए अपने सारगर्भित शब्दों में उपदेश देते हुए कहा कि वैद्यक व्यवसाय को भगवान् का दूसरा रूप समझा जाता है, लेकिन आज की परिस्थितियों में वैद्यक-व्यवसायी कलंकित हो रहे हैं। वह अगर जैन चिकित्सक है, तो और भी खतरनाक बात है। इसलिए रुग्ण की सेवा को परमधर्म समझकर उसे यथायोग्य शुल्क में स्वास्थ्य प्रदान करना चाहिए। डॉ. सन्मति ठोले जैन तिथिदर्पण का लोकार्पण राष्ट्रसन्त सिद्धान्तचकवर्ती प. पू. विद्यानंदजी मुनिराज द्वारा पं. नाथूलाल जी शास्त्री द्वारा सम्पादित जैन तिथि दर्पण का कुन्दकुन्द भारती, प्राकृत भवन' दिल्ली में लोकार्पण किया गया है। __ जैन तिथि दर्पण इन्दौर स्थित कार्यालय एवं पं. नाथूलालजी शास्त्री के निवास मोतीमहल-सर हुकुमचन्द्र मार्ग इतवारिया बाजार इन्दौर से तथा गोम्मटगिरि इन्दौर व लश्करी मंदिर गोराकुण्ड इन्दौर से निःशुल्क प्राप्त किये जा सकते हैं। इच्छुक महानुभाव यथेष्ट डाक व्यय भेजकर या किसी परिचित द्वारा भी मँगा सकते हैं। गुलाबचन्द बाकलीवाल 28 जनवरी 2007 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524313
Book TitleJinabhashita 2007 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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