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________________ नहीं हो सकता। जिनेश्वरी दीक्षाधारी प्रथम तो किसी | बीज बोने का प्रयास किया जा रहा है, वह सफल नहीं हो अनात्मिक कार्यों में अपना उपयोग नहीं लगाते, दूसरा बिना | सकेगा। एक विद्वान् का तो यहाँ तक कहना था कि संतसमुदाय पक्ष-विपक्ष के तथ्यों को जाने अपना निर्णय नहीं देते। आगम (और विशेषकर एक पंथ के) में व्याप्त शिथिलाचार, के आलोक में प्रतिपाद्य विषय-सामग्री के विषय में प्रतिक्रिया | आपराधिक कत्यों की विद्यमानता तथा आगम के प्रतिकल पछे जाने पर जानकारी अपर्ण या दर्भावनायक्त होती है. तब आचारण की बदनामी से बचने के लिए कण्डलपर-कोहराम वह प्रतिक्रिया भी उसी रूप हो जाती है। अत: संतों को ऐसे | का अयोजन किया गया। इसके मूलकर्ता परदे के पीछे से प्रकरणों में लाना वीतरागी संस्कृति को प्रश्नचिह्नित करना | खेल खेल रहे हैं और विरोधकर्ता और समाधानकर्ता दोनों है। भेष बदलकर एक उद्देश्य की पूर्ति में संलग्न हैं। आचार्यश्री वर्धमानसागर जी के प्रथम दर्शन करने सृजनप्रतिभा के धनी डॉ. चिरंजीलालजी बगड़ा ने का सौभाग्य श्रवणबेलगोला में मुझे मिला। श्रमणाचार में | कुण्डलपुर-प्रकरण में पारदर्शिता की दुहाई देते हुए कुण्डलपुर यौनाचार, महावीर जन्मभूमि, ज्ञानानुभूति एवं अन्य विषयों | क्षेत्र कमेटी से अनुरोध किया है कि प्रकरण से संबंधित पर मेरी तीन बार चर्चा हुई। वे अत्यन्त सुलझे एवं सरल सभी दस्तावेज समाज के सम्मुख प्रस्तुत करें। समाज तो अविवादित प्रकृति के आचार्य हैं। मुझे यह विश्वास करना । भारत में बिखरी है। उन्होंने यह नहीं बताया कि कहाँ किस कठिन है कि वे कसी की पुरजोर भर्त्सना करेंगे और वह भी | स्थान पर इनका प्रदर्शन किया जाये। आपने अपनी कुण्डलपुर एक आगमिक वीतरागी आचार्य को लक्ष्य कर। कुण्डलपुर | यात्रा में अपनी जिज्ञासा शांत की होगी। विद्वान् सम्पादक ने कोहराम के प्रायोजकों को यह भ्रम भी नहीं पालना चाहिए एक संघ-विशेष को छोड़कर समस्त संघ समुदाय के मौन कि श्रवणबेलगोला में उपस्थित संत समूह अपनी आत्मसाधना | की ओर संकेत कर मौन की भाषा समझने और विश्वास की छोड़कर प्राणों की परवाह किए बिना कुण्डलपुर की ओर | कमी का संकेत दिया। उनका यह कथन विरोधाभासी है, कूच करेंगे। यह उनकी मर्यादा/प्रतिज्ञा के प्रतिकूल कार्य है। जैसा कुण्डलपुर-कोहराम से स्पष्ट होता है। यह तो संतो की बात है, आज का श्रावक भी अपना हिताहित | बिना पक्ष-विपक्ष के गुण-दोषों में उलझे, सर्व पक्षों समझता है। वह कागजी बमों से अप्रभावित अपने में ही | से मेरा इतना ही अनुरोध है कि हम वीतरागी संतों की आड़ व्यस्त है और यदि संतगण वहाँ गये तो उनका स्वागत ही में आत्मघाती खेल न खेलें और प्रस्तुत प्रकरण में माननीय होगा। उच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा कर उसका सम्मान विश्वास है कि पुरातत्व की आड में 13 और 20 पंथ | करें। इसी में सर्वहित निहित है। की भावनाओं को उभाड़कर संत समुदाय में जो विग्रह के | पूज्य आचार्य श्री भरतसागर जी महाराज की श्रद्धांजली सभा का आयोजन दमोह, (म.प्र.) समस्त नगरवासियों के पुण्यादेय से संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के परमप्रभावक शिष्य 108 मुनिश्री अजित सागरजी महाराज एवं 105 एलक श्री निर्भय सागरजी महाराज का पावन वर्षा योग संपन्न हुआ ही था कि दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र अडिंगा पारसनाथ से यह जानकारी प्राप्त हई कि पूज्य आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज के पट्टाचार्य पूज्य आचार्यश्री भरतसागर जी महाराज का सल्लेखनापूर्वक स्वर्गलोक गमन हो गया है। यह समाचार सुनते ही समस्त नगर के श्रद्धालु भक्त शोक में डूब गये। परमपूज्य मुनिसंघ के पावन सान्निध्य में शाकाहार उपासना परिसंघ एवं सकल जैन समाज, दमोह द्वारा श्रद्धांजलिसभा का आयोजन किया गया, जिसमें अध्यक्ष जैन पंचायत श्री विमल लहरी, परिसंघ के अध्यक्ष राजेश जैन हिनौती वाले, कुण्डलपुर कमेटी अध्यक्ष संतोष सिंघई, श्री वीरेश सेठ, रतनचंद प्राचार्य, संजीव शाकाहारी, मनीष बजाज राजश्री, सनील वेजीटेरियन, गिरीश नायक, नवीन निराला, मोतीलाल गोयल, जवाहर जैन पत्रकार आदि की । उपस्थिति रही। राजेश जैन, अध्यक्ष शाकाहार उपासना परिसंघ, दमोह 28 दिसम्बर 2006 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524312
Book TitleJinabhashita 2006 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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