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________________ मिथ्या प्रचारकों से सावधान पं. पुलक गोयल शास्त्री, इंदौर महाराष्ट्र में भरमू पाटील (मजले) के नाम से मराठी । 1. परचे में लिखा गया है कि आचार्य विद्यासागर जी भाषा में एक पत्रक बाँटा गया है। मझे भी वह पत्रक पढने | के संघ के साधु अन्य संघ के किसी साधु या आर्यिका को का मौका मिला, अतः मैं उस पत्र पर अपनी प्रतिक्रिया | नमोऽस्तु या वन्दना नहीं करते। यह आरोप बिलकुल गलत जाहिर कर रहा हूँ। मुझे आज से 12-15 वर्ष पूर्व का वह | है। हाँ इतना अवश्य है कि पू. आचार्यश्री के संघ के सभी दिन अच्छी प्रकार याद है, जिस दिन वर्तमान के एक | सदस्य शिथिलाचारी आचार्य या उनके संघ को नमोऽस्तु शिथिलाचारी आचार्य द्वारा दिल्ली के एक सज्जन के माध्यम नहीं करते, क्योंकि आचार्य कुन्दकुन्द ने दर्शनपाहुड़ में इस से भारत के 7-8 आचार्यों के नाम पत्र भिजवाये गये थे। पत्र प्रकार कहा हैमें लिखे वक्तव्य का आशय था कि पू. विद्यासागर जी महाराज जे वि पडंति च तेंसि जाणंता लज्जागारवभयेण। का प्रभाव दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। अगर हमने उनके तेसिं पिणत्थि बोही पावं अणुमोअमाणाणं ।। 13 ॥ प्रभाव पर रोकथाम नहीं लगायी, तो हम सब शिथिलाचारी अर्थ - जो जानते हुए भी लज्जा, गारव या भय के साधु आचार्य विद्यासागर के तूफान में उड़ जायेंगे। अतः एक कारण उन शिथिलाचारियों के चरण में पड़ते हैं, उन्हें नमोऽस्तु ही उपाय है कि बीसपंथ का झगड़ा उठाकर दक्षिण भारत की | आदि करते हैं. उन पापों की अनमोदना करने वाले लोगों को भोली-भाली जनता को बहकाया जाये और आचार्य भी रत्नत्रय आदि की प्राप्ति नहीं होती है। विद्यासागर का विरोध कराकर अपने अस्तित्व को कायम आचार्य कुन्दकुन्द ने सूत्र पाहुड़ में और भी कहा हैरखा जाये। जह जाय रूवसरिसो तिलतुसमित्तं ण गिहदि हत्थेसु। सच तो यह है कि आज से पंद्रह वर्ष पूर्व, तेरह-बीस जइ लेइ अप्पबहुयं तत्तो पुण जाइ णिग्गोदं॥18॥ पंथ का कोई झगडा नहीं था। परंत जब से यह गप्त पत्र भारत अर्थ - यथाजातरूप सदृश नग्नमुद्रा के धारक मुनि, के 7/8 आचार्यों को भिजवाया गया है. तभी से शिथिलाचारी | तिलतुष मात्र भी परिग्रह हाथों में ग्रहण नहीं करते और यदि साधुओं द्वारा बीसपंथ की आड़ में अपने अस्तित्व को कायम थोड़ा बहुत ग्रहण करते हैं, तो निगोद जाते हैं। रखने की कोशिश की जा रही है। समाज को गलत दिशानिर्देश इन परिस्थितियों में पूज्य आचार्यश्री के संघ के साधु, दिये जा रहे हैं । शास्त्रविरुद्ध चर्चाएँ हो रही हैं । झूठी बातों के | आर्यिका आदि शिथिलाचारी साध या उनके संघ के किसी परचे बँटवाये जा रहे हैं। देवी-देवताओं के मंदिर बनवाये सदस्य की वंदना या समाचार कैसे कर सकते हैं? जा रहे हैं और गृहीत मिथ्यात्व का प्रचार किया जा रहा है। 2. यह आरोप भी बिलकुल गलत है कि पूज्य हम जैनियों के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है | आचार्यश्री के संघ के सदस्य चा.च आ. शांतिसागरजी महाराज कि कषाय मिटाने का कार्य करने वाले दिगम्बर जैन साधु ही की जय नहीं बोलते। पू. आचार्यश्री के संघ में पूज्य आचार्य आज झगड़ा बढ़ाने और कषाय उत्पन्न कराने में कारण बने शांतिसागर जी का समाधिदिवस प्रतिवर्ष भादों सुदी दूज को हए हैं। आज 13-20 पंथ का झगडा, पंचामृत अभिषेक, मनाया जाता है। उस दिन पू. आचार्यश्री और संघ के सभी क्षेत्रपाल-पद्मावती पूजन आदि के झगड़े श्रावक नहीं कर रहे साधुगण चा.च.आ. शांतिसागरजी की जयजयकार करते हैं। हैं परंतु चंद शिथिलाचारी साधुगण द्वारा ही इन सब विवादों यदि आप सुनना चाहें तो उस दिन का कैसेट मँगवाकर सुन को उठाकर समाज में फूट डालने की कोशिश और अशान्ति सकते हैं। इस वर्ष भी यह समाधिदिवस मनाया जायेगा। का वातावरण बनाने का प्रयास किया जा रहा है। यह भरमू 3. चातुर्मास-पत्रिका में चा.च. आ. शांतिसागर जी पाटील के नाम से जो परचा बाँटा गया है वह किसी व्यक्ति का फोटो न छापने का आरोप भी एकदम गलत है। मेरे पास का नहीं है, बल्कि एक गलत नाम लिखकर चातुर्मास ऐसी दसों पत्रिकाएँ सुरक्षित हैं, जिनमें आचार्य शांतिसागर करनेवाले आचार्य का ही समाज में फूट डालने के लिए | जी एवं आचार्य विद्यासागर जी के चित्र दिये गये हैं। किया गया गलत प्रयास है। खैर, कोई बात नहीं है। मैं उस 4. पत्रक बाँटनेवाले ने तो आचार्य विद्यासागरजी की परचे का बिंदुवार उत्तर दे रहा हूँ। ताकि समाज को भ्रमित ' | परम्परा को शुद्धाम्नाय कहा है। जब आप स्वयं ही उनकी होने का अवसर न रहे और सत्य की जानकारी हो पाये। 24 दिसम्बर 2006 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524312
Book TitleJinabhashita 2006 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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