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________________ मंदिरमूर्तियों का निर्माण एवं रखरखाव जैनसमाज द्वारा ही किया जाता रहा है। अतः केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग को मंदिरनिर्माण को रोकने के आदेश देने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसा अविधि-सम्मत निम्न अधिकारियों का आदेश राजाज्ञा की परिभाषा में नही आता और न्यायालय में चुनौती दिए जाने योग्य है। निश्चय ही प्रश्नकर्ता के मन में यह शंका तथ्यों की जानकारी नहीं होने के कारण अथवा पक्षाग्रह के कारण उत्पन्न हुई है। जैनसंस्कृति-रक्षा-मंच जयपुर ने पुरातत्त्व विभाग को कुंडलपुर क्षेत्र कमेटी द्वारा राजाज्ञा उल्लंघन करने की शिकायत की है। आश्चर्य की बात तो यह है कि रक्षा मंच के स्वयंभू पदाधिकारियों में से किसी ने भी कभी कुंडलपुर आकर वस्तुस्थिति की जानकारी लेने का कष्ट नहीं किया और न संबंधित पत्रावलियों का अवलोकन किया। दूसरे शिकायतकर्ता सुपरिचित विद्वान् श्री नीरज जैन हैं। उन्होंने लगभग तीन चार वर्ष पूर्व दमोह की बैठक में प्रकटतः बडे बाबा की प्राचीन मर्ति की सरक्षा के लिए नवीन भूकंपरोधी मंदिर के निर्माण एवं उसके वहाँ स्थानांतरण की योजना को स्वीकार कर इसके क्रियान्वयन में सहयोग करने का वचन दिया था। किंतु लोग कहते हैं कि समय के साथ लाभदृष्टि के परिवर्तन के साथ इनके सिद्धान्त भी परिवर्तित होते रहते हैं। इनकी माया ये ही जानें । मैं यह बताना आवश्यक समझता हूँ कि फरवरी, 2001 में कुंडलपुर में उपस्थित लक्षाधिक दि. जैन समुदाय के समर्थन के साथ दि. समाज की प्रतिनिधि संस्थाएँ श्री अखिल भारतवर्षीय दि. जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी तथा दि. जैन विद्वत्परिषद ने सर्वसम्मति से नवीन भूकंपरोधी विशाल मंदिरनिर्माण एवं बड़े बाबा की मूर्ति को उसमें स्थानांतरण के समर्थन में प्रस्ताव पारित किए थे। संबंधित पत्रावलियों से यह स्पष्टतः सिद्ध है कि कुंडलपुर के दि. जैन मंदिरों को कभी भी राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक घोषित नहीं किया गया। प्रारंभ से मंदिरों का प्रबंध, निर्माण, देखरेख, जीर्णोद्धार पूरी तरह जैनसमाज द्वारा गठित क्षेत्र कमेटी के द्वारा होता रहा है। भूकंपों के झटकों से बड़े बाबा के मंदिर में दरारें उत्पन्न हुईं और बड़े बाबा की मूल्यवान् मूर्ति एक ओर तीन इंच झुककर टेढ़ी हो गई। तब क्षेत्र कमेटी एवं सम्पूर्ण समाज ने मिलकर भूवैज्ञानिकों की राय के अनुसार बड़े बाबा की मूर्ति की दीर्घकालीन सुरक्षा के लिए भूकंपरोधी नवीन मंदिर के निर्माण की योजना बनाई। 1988 से ही पहाड़ी पर मंदिरनिर्माण के लिए भूमि को समतल कर सम्पूर्ण भूमि को सीमेंट ग्राउटिंग द्वारा भूकंपरोधी बनाया गया। इस कार्य का समय-समय पर केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग के अधिकारियों के साथ-साथ प्रांतीय सरकार के पदाधिकारी एवं समाज के वरिष्ठ व्यक्तियों द्वारा निरीक्षण किया गया और कार्य की अनुमोदना की गई। एकाधिक बार प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री महोदय ने सार्वजनिकरूप से मंदिरनिर्माण की प्रशंसा करते हुए उसमें राज्य सरकार के सहयोग का आश्वासन भी दिया। हमारे समझने या कहने से नहीं, बल्कि केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग की स्वयं की निरीक्षण टिप्पणी से भी यह सिद्ध होता है कि मंदिर 80 प्रतिशत जीर्णशीर्ण हो गया है और खतरनाक स्थिति में था। हमें अत्यंत आश्चर्य भी है और खेद भी कि पुरातत्त्वस्मारकों की सुरक्षा का नैतिक उत्तरदायित्व अपने कंधों पर ढोने वाला पुरातत्त्वविभाग यह सब देखकर भी आँख मूंद कर सोया रहा, उदासीन बना रहा और संभवतः उस घड़ी की प्रतीक्षा करता रहा, जब वह जीर्णशीर्ण मंदिर ध्वस्त होकर महत्त्वपूर्ण पुरातात्त्विक सम्पत्ति बड़े बाबा की मूर्ति को क्षति पहुँचा दे। यह कैसी दर्दभरी त्रासदी है कि गत वर्षों से मंदिर की जीर्णशीर्ण स्थिति की जानकारी होते हुए भी केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग ने अपने कर्तव्य एवं नैतिक उत्तरदायित्व की घोर अनदेखी करते हुए बड़े बाबा की पूर्ति की सुरक्षा की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया ओर दूसरी और जब मूर्ति की सुरक्षा हेतु जैनसमाज और क्षेत्र कमेटी द्वारा आवश्यक प्रयास किए जा रहे हैं, तब एकाएक कतिपय अधार्मिक एवं असामाजिक तत्त्वों के संकेतों पर दुर्भावनावश उनमें बाधक बनते हुए माननीय उच्च न्यायालय में अनधिकृतरूप से प्रादेशिक सरकार एवं तीर्थ क्षेत्र कमेटी के विरुद्ध याचिका प्रस्तुत कर दी है। वस्तुतः केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग का यह कृत्य 'उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे' की कहावत को चरितार्थ कर रहा है। इस याचिका पर माननीय न्यायालय ने तथ्यों की जानकारी के अभाव में अभी अंतरिम रूप से यथास्थिति के निर्देश जारी किए हैं। तथापि इस प्रकरण में देश के सम्पूर्ण दि.जैन समाज को संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए एवं अपनी धार्मिक आराधनाओं की स्वतंत्रता के लिए प्रयास करना चाहिए। यह याचिका वस्तुतः दि. जैन समाज की अस्मिता एवं धार्मिक स्वतंत्रता पर सरकार द्वारा किया गया सीधा प्रहार है.। हम पुरातत्त्व विभाग को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524306
Book TitleJinabhashita 2006 04 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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