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________________ सम्पादकीय कुंडलपुर - घटना क्रम कुंडलपुर तीर्थ में नव निर्माणाधीन विशाल भव्य मंदिर के गर्भ गृह में बड़े बाबा की मूर्ति विराजमान हो गई। विरोधी लोग तो मूर्ति का स्थानांतरण लगभग असंभव ही मान रहे थे अथवा स्थानांतरण के प्रयास में किसी दुर्घटना अथवा मूर्ति की क्षति की संभावना से स्वयं को एवं जन साधारण को भयाक्रांत बना रहे थे। दूसरी ओर समर्थकों में से भी अनेकों के हृदय के किसी कोने में मूर्ति स्थानांतरण के कार्य की दुस्हता का विचार कर कभी- कभी शंका की लहरें उठती थीं । किन्तु बड़े बाबा की मूर्ति के अतिशय एवं छोटे बाबा के मार्गदर्शन के प्रति अनन्य श्रद्धा के प्रकाश में ऐसी दुर्बल शंकाओं की तमोमय रेखाएँ लुप्त हो जाती थी । मूर्ति-स्थानांतरण में अनेक बाधाएँ उपस्थित किये जाने के निष्फल प्रयास किए गए, किंतु अंत में जन-जन की भावनाओं की, सत्य की, श्रद्धा की एवं धर्म की विजय हुई और बड़े बाबा की मूर्ति पुराने अपर्याप्त जर्जर अँधेरे स्थान से स्थानांतरित हो नवनिर्माणाधीन उपयुक्त स्थान पर आ विराजित हुई। यह बात सर्व मान्य है कि मूर्ति के स्थानांतरण का कार्य असंभव नहीं, तो अत्यंत कठिन अवश्य था। फिर इतनी सहजता से यह कार्य कैसे सम्पन्न हो सका। मैं तो कहता हूँ कि यदि बड़े बाबा स्वयं स्थानांतरित होना नहीं चाहते, तो कोई भी शक्ति उनको स्थानांतरित नहीं कर पाती, जैसा कि पूर्व में हुआ था । अतः बड़े बाबा की मूर्ति के इस सहज, सफल एवं निर्विघ्न स्थानांतरण में बड़े बाबा की स्वयं की मर्जी ही सबसे बड़ा कारण रही, यह सुनिश्चित है । फिर बड़े बाबा की मर्जी के आगे उनको नए स्थान पर लानेवाले कौन और उसका विरोध करने वाले कौन ? अब तो हम सबको बड़े बाबा की मर्जी का समादर करना चाहिए और सभी को मिलकर बड़े बाबा की मर्जी को स्वीकार कर उनके चरणों में नतमस्तक हो जाना चाहिए। बड़े बाबा की मर्जी जानने के लिए हमें बड़े बाबा से ही पता लगाना चाहिए। बड़े बाबा के समक्ष खड़े होकर एकाग्रता से उनके दर्शन कीजिए। हम पायेंगे कि नीचे अँधेरे से ऊपर प्रकाश में आने पर बड़े बाबा की सौम्यता, सुंदरता, ऊर्जा एवं प्रभावकता में अनेक गुणी वृद्धि हो गई है। यही तो सिद्ध करती है कि बड़े बाबा की स्वयं की मर्जी नए स्थान पर आने की थी। बड़े बाबा की मर्जी के साथ-साथ जन-जन की भावनाएँ एवं तरसती आँखें भी बड़े बाबा को इस नूतन विशाल मंदिर के गर्भगृह में लाने का कारण रही हैं। आज बड़े बाबा के भव्य दर्शन इस नवीन भव्य मंदिर में भव्यता के साथ पाकर जन-जन अपने अतिशय पुण्य के उदय का अनुभव कर रहा है और वीतराग प्रभु के दर्शन से उत्पन्न भावों की विशेष विशुद्धि से विशेष पुण्यबंध के साथ कर्मों की संवर- निर्जरा भी कर रहा है। फिर भी कुछ लोगों के मन में कुछ प्रश्न उठते हैं। आइए हम उन पर भी विचार कर लें । एक बात तो यह की जाती है कि जिनमंदिर में से मूल नायक भगवान् की प्रतिमा को स्थनांतरित नहीं किया जाना चाहिए। इस प्रश्न के समर्थन में प्रश्न कर्ता के पास कोई आगमप्रमाण नहीं है। उत्तर में हमारा प्रतिप्रश्न है कि यदि कोई मंदिर जर्जर होकर ध्वस्त हो जाय, यदि कोई बाढ़ क्षेत्र में आ जावे, यदि कोई क्षेत्र निर्जन एवं असुरक्षित हो जाये, यदि किसी छोटे अपर्याप्त क्षेत्र के स्थान पर विशाल भव्य मंदिर का निर्माण करा दिया जाये, तो हमें मूलनायक भगवान को स्थानांतरित करना चाहिए या नहीं ? मुझे विश्वास है कि प्रश्नकर्ता का उत्तर स्थानांतरण के समर्थन में होगा । इतिहास | पृष्ठों में अंकित अनेक उदाहरण आवश्यक होने पर स्थानांतरण का पुरजोर समर्थन कर रहे हैं। स्वयं बड़े बाबा पूर्व में किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित हुए थे । पाकिस्तान बनने पर मुल्तान शहर के जिनमंदिर की मूलनायकसहित सभी मूर्तियाँ जयपुर लाकर स्थापित की गई थीं। श्रीमहावीर जी अतिशयक्षेत्र में मूलनायकमूर्ति ऊपर की मंजिल का निर्माण होने पर नीचे से ऊपर स्थानांतरित की गई आदि । दूसरा प्रश्न यह उठाया जाता है कि धार्मिक क्षेत्र में राजाज्ञा का उल्लंघन न तो श्रावकों को ही करना चाहिए और न उसका समर्थन दिगम्बर मुनिराजों को करना चाहिए। उत्तर में निवेदन है कि वस्तुतः नवीन मंदिर निर्माण के विरुद्ध अभी जारी की गई राजाज्ञा अविधिसम्मत है। कुंडलपुर तीर्थक्षेत्र के मंदिर केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग के नियंत्रण में कभी नहीं लिए गए हैं। प्रारंभ से ही सभी मंदिरों की देखभाल जैन समाज की कमेटी ही करती आ रही है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524306
Book TitleJinabhashita 2006 04 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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