SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रजि नं. UP/HIN/34497/24/1/2005-TC Jain Education International स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, जोन-1, महाराणा प्रताप नगर,library.oral For Private & Personal use only कोलकाता महानगर में परम पूज्य मुनिश्री प्रमाणसागरजी द्वारा अभूतपूर्व धर्म प्रभावना हो रही है। जन-जन के मुख से केवल यहीं निकल रहा है कि ऐसा कोलकाता के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ। विदित हो कि विगत कुछ वर्ष पूर्व कोलकाता में घटित अप्रिय प्रसंगों के कारण यहाँ मुनियों का आगमन बंद सा हो गया था। स्थानीय जनता और प्रशासन के असहयोगात्मक रुख के कारण समाज भी भयभीत और सशंकित था। अचानक कोलकाता वासियों का पुण्य जगा निमित्त बना काकुड़गाछी दिगम्बर जैन मंदिर का पंचकल्याणक। पंचकल्याणक में सूरिमंत्र देने हेतु मुनिराज को लाने हेतु काफी उहापोहात्मक स्थिति थी। समाज के कुछ उत्साही लोगों ने मुनिश्री को आमंत्रित करने का निर्णय लिया। प्रशासनिक अवरोध भी दूर कर लिए गए। समाज के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुनिश्री के पास हजारीबाग पहुँचकर मुनिश्री को सारी स्थिति से अवगत कराते हुए कहा कि कोलकाता में मुनियों के विहार का मार्ग खोलने का यह अद्भुत मौका है। इसे केवल आप ही कर सकते हैं यदि अभी नहीं तो कभी नहीं वाली बात है। समाज का एक प्रतिनिधिमंडल आचार्यश्री के पास बीना (बारहा) पहँचा। वहाँ आचार्यश्री से आज्ञा पाकर मुनिश्री ने कोलकाता की ओर विहार किया। मुनिश्री के साथ में क्षुल्लक श्री सम्यक्त्वसागरजी, ब्र. शांतिलालजी (बाबाजी) एवं ब्र. रोहित भी थे। इसके अतिरिक्त हजारीबाग के प्रसिद्ध समाजसेवी श्री छितरमल जी पाटनी एवं धर्मचंद जी काला के नेतृत्व में पचास लोग मुनिश्री के साथ विहार कर रहे थे। लोगों की आशंका के विपरीत गाँव की जनता ने मुनिश्री का अभूतपूर्व स्वागत किया। जहाँ कहीं मुनिश्री विश्राम करते सैकड़ों लोग दर्शन के लिए उमड़ पड़ते। उनसे प्रवचन का आग्रह करते / रात्रि दस बजे तक बंगाली जनता का दर्शन हेतु ताँता लगा रहता। बीस दिन की अथक पदयात्रा के बाद मुनिश्री कोलकाता पहुँचे। वहाँ मुनिश्री की अद्भुत अगवानी हुई। साल्ट लेक स्टेडियम के विशाल पांडाल में मुनिश्री के मंगल प्रवचन हुए। पहले ही दिन जनता मंत्रमुग्ध हो गई। पंचकल्याणक सानन्द सम्पन्न हुआ। उसके बाद मुनिश्री बेलगछिया दिगम्बर जैन मंदिर में विराजमान हुए। वहाँ मुनिश्री के दैनिक प्रवचनों में पूरे कोलकाता के लोग उमड़ पड़े। रविवार के दिन तो पूरा महानगर ही बेलगछिया में दिखाई पड़ता था। मुनिसंघ व्यवस्था समिति कोलकाता ने अपनी ओर से बड़ी उत्तम व्यवस्था बनाई हुई थी। इसी बीच नववर्ष के शुभ अवसर पर मुनिश्री का दो दिवसीय सार्वजनिक प्रवचन देशबंधु पार्क के विशाल प्रांगण में हुआ। कोलकाता महानगर के इतिहास में किसी दिगम्बर मुनि का यह पहला सार्वजनिक प्रवचन बना। दोनों दिन दिल और दिमाग को झकझोर देने वाले मुनिश्री के मार्मिक प्रवचनों में पाँच हजार से अधिक श्रोताओं की भीड़ थी, जिसमें स्थानीय अजैन काफी संख्या में शामिल थे। उन्होंने मुनिश्री की सार्वग्राह्यता को प्रमाणित कर दिया। बेलगछिया से विहार कर मुनिश्री बड़ा बाजार, पुरानी बाड़ी मंदिर और बड़ा मंदिर होते हुए हावड़ा की ओर आए। समाज ने मुनिश्री का अभूतपूर्व स्वागत किया। मुनिश्री के साथ डेढ़-दो हजार लोग पैदल विहार कर रहे थे। वर्तमान में मुनिश्री हावडा के डवसन रोड स्थित दिगम्बर जैन मंदिर में विराजमान हैं। वहाँ उनके नियमित प्रवचनों में हजारों श्रद्धालु उमड़ रहे हैं। मुनिश्री के इस प्रवास से कोलकाता महानगर के लोगों में दिगम्बर मुनि के प्रति एक अलग आस्था बनी है। निश्चित ही मुनिश्री का यह प्रवास कोलकाता में दिगम्बर जैन मुनियों का निर्बाध विहार का मार्ग खोलेगा।
SR No.524304
Book TitleJinabhashita 2006 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy