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________________ आत्मनिर्भरता : दिव्य गुण उनके जीवन में सदा खुशियों के दीप जगमगाते हैं। जो ___आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास ऐसे दिव्य गुण हैं; भाग्यवादी हैं; वे निराशावादी हैं, पापी हैं। उनके जीवन में जिनको विकसित कर लेने पर संसार का कोई भी कार्य खुशियों के दीप उन्हीं की निराशामयी वायु के झोंके से बुझ कठिन नहीं रह जाता। आत्मवान् व्यक्ति में समयानसार जाते हैं। बुद्धि का स्वयं स्फुरण होता रहता है। आत्मविश्वासी को नि:सन्देह यदि आप निष्कलंक, निर्भीक और निर्द्वन्द्व अपने निर्णय तथा कार्य पद्धति में किसी प्रकार का संदेह जीवन जीना चाहते हैं तो आत्मनिर्भर बनकर अपना काम नहीं होता। वह उन्हें विश्वास पूर्वक कार्यान्वित करके कीजिए और विश्वास रखिए, आप अपने लक्ष्य में अवश्य सफलता प्राप्त कर ही लेते है । आत्मनिर्भर व्यक्ति में अपनी सफल होंगे। मनोवांच्छित जीवन के अधिकारी बनेंगे। असफलता का दोष दूसरों को देने की निकृष्ट निर्बलता नहीं मनुष्य का कार्य ही उसकी क्षमता का प्रमाण है। जब होती। आत्मनिर्भर मानव अपनी असफलता का कारण स्वयं । योग्यताएं प्रबल होती हैं तब अधिकारों की आकांक्षा नहीं अपने अन्दर खोजा करता है और उसे पाकर वह शीघ्र ही होने पर भी अधिकारों की आवलियाँ स्वत: योग्य पुरुष के उसे सफलता में बदल लेता है। परावलम्बी की तरह पास दौड़ी चली आती हैं तथा अपने स्वावलम्बी स्वामी को असफलता के लिए किसी को कोसने तथा दोष देने का विकास की ओर गतिमान करती हैं। स्वावलम्बी, श्रमजीवी अवकाश उसके पास नहीं होता। हर 'दुविधा को सुविधा' में परिणत कर विषम परिस्थितियों अत: यदि आप जीवन में सफलता, उन्नति, सम्पन्नता की घाटी को भी हँसते-हँसते पार करने का अदम्य पौरुष एवं समद्धि चाहते हैं तो स्वावलम्बी बनिये। अपने जीवन रखता है। उसे हीन भावना का राह कभी अपना ग्रास नहीं पथ को खुद अपने हाथों से प्रशस्त कीजिए और उस पर बना पाता। समाज ऐसी ही स्वावलम्बी योग्यता का गौरवशाली चलिये भी अपने पैरों से। परावलम्बी अथवा पराश्रित रहकर अभिनन्दन करती है। योग्यता का मानदण्ड वेतनमान नहीं है आप दुनियां में कुछ न कर सकेंगे। मनुष्य की शोभा आश्रित प्रत्युत उसका स्वावलम्बी जीवन है। एक चित्रकार सुन्दर बनने में नहीं, आश्रय बनने में है। क्या आश्रय बनने के दीवार पर जो आकर्षक चित्र उकेर सकता है; वही चित्रकार लिए इससे बढ़कर कोई शानदार चीज हो सकती है कि 'कच्ची मिट्टी की दीवार जिस पर शैवाल एवं ईंट के टुकड़े हमारी इच्छाएं हमारे आश्रित हों, कम-से-कम हों और हम झांक रहे हों' पर सुन्दर चित्रकारी नहीं कर सकता। यह दोष खुद ही उन्हें पूरा करें? यदि हम इच्छा निरोध या इच्छा चित्रकार का नहीं अपितु दीवार की योग्यता-अयोग्यता का परिमाण का व्रत ले लें तो हम पूर्णतः आत्मनिर्भर हो सकते है। इसी भाँति अभिनन्दन किसका ? बाल, युवा, वृद्ध, हैं। जो इच्छाओं के दास हैं, वे पराश्रित हैं, परावलम्बी हैं । वे अमीर- गरीब, लोकख्यात प्रतिष्ठित पदवान, किसका ? उत्तर आश्रित हैं, आश्रय बनने जैसी विराट क्षमता उनमें कहाँ है? होगा; अभिनन्दन केवल योग्यता का, स्वावलम्बी जीवन 'आश्रय' बनने के लिए पुरुषार्थवादी होना आवश्यक है। जो का। जिसकी बुनियाद है जीवन की नैतिकता/पवित्रता। पुरुषार्थवादी हैं; वे आशावादी हैं, भाग्यशाली पुण्यात्मा हैं _ 'किसने मेरे ख्याल में दीपक जला दिया' से साभार खुशी नहीं बुद्धि नहीं विचार मंथन मनोरंजन खरीदा जा सकता है पुस्तक खरीदी जा सकती है आरामदायक बिस्तर खरीदा जा सकता है खाना खरीदा जा सकता है मकान खरीदा जा सकता है विलासिता खरीदी जा सकती है दवाई खरीदी जा सकती है मंदिर बनाया जा सकता है नींद नहीं पाचन शक्ति नहीं अपना घर नहीं संस्कार नहीं, सेहत नहीं, प्रभु नहीं शांतिलाल जैन बैनाड़ा -दिसम्बर 2005 जिनभाषित 7 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524303
Book TitleJinabhashita 2005 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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