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________________ मानवीय क्रूरता के शिकार जीव-जन्तु डॉ. श्रीमती ज्योति जैन भारतीय संविधान के अनुच्छेद ५१-ए (छ) में कहा | जातियाँ-प्रजातियाँ लुप्त हो गई हैं। गया है, 'प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अन्तर्गत वन झील | कुछ वन्य जीव-जन्तुओं और उनमें निहित विशेषताओं नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उसका संवर्धन करें | | ने उन्हें इंसानी क्रूरता का शिकार बना दिया चिकित्सकों, तथा प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखें।' इसके अनुसार विशेषज्ञों एवं वन्य जीवों के संरक्षण में लगी संस्थाओं आदि जिन्हें हमारे संविधान ने तथा प्रकृति ने जीने का अधिकार | ने बार-बार यह बात सामने रखी कि इंसानी बीमारियों के दिया, आज इंसान उन्हीं निरीह पशु-पक्षियों को बर्बरता और इलाज में इन जीवों का कोई योगदान नहीं है फिर भी स्वार्थी क्रूरता से अंत कर रहा है। पर्यावरण असंतुलन भी दिनों दिन | मानव इनका अंधाधुंध विनाश कर रहा है। जिससे जीवबढ़ता जा रहा है। जब-जब मनुष्य ने प्रकृति के विरुद्ध जन्तुओं पर संकट बरकरार बना हुआ है। आचरण किया अपने स्वार्थ एवं सुख सुविधा के लिये पशपक्षियों का शिकार किया तब-तब प्रकृति के दुष्परिणाम आज अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में गैंड़े के सींग की कीमत भी सामने आये। यही कारण है कि सूखा, बाढ़, महामारी, लाखों में है और साथ में यह अन्धविश्वास कि इसके सेवन भूकम्प धरती के तापमान में वृद्धि, ओजोन परत का क्षय, से पौरुष बढ़ता है। कछुए के माँस और इससे बने सूप की जैसी न जाने कितनी विभीषकाओं का सामना विश्व में देश-विदेश के होटल में बड़ी माँग हो रही है। धारणा है कि प्रतिदिन कहीं न कहीं करना पड़ रहा है। कछुए का सूप कमजोरी/दुर्बलता दूर कर पुरुषत्व बढ़ाता है। यौन शक्ति बढ़ाने के नाम पर सरीसृप प्रजाति के साँड को ___आधुनिक जीवन शैली और बढ़ते बाजारवाद ने प्रत्येक वस्तु को व्यापार बना दिया है। साँप-चीटी से लेकर भी खूब मारा जाता है। जबकि फोरेसिक लैब की जाँच से यह अनेक बार सिद्ध किया जा चका है कि इनमें ऐसी कोई शेर-बाघ तक सभी जीव जन्तु मानव को मुनाफा कमानेवाले शक्ति नहीं है। नजर आने लगे हैं। यहाँ तक कि छिपकली जैसे जीव को पान-मसाले में पीसकर मिलाया जाने लगा है। साँप, वैश्वीकरण और विश्व बाजारबाद के चलते हथियार तिलचिढ़े, मछली, मेढक, खरगोश जैसे जीवों के लजीज | और मादक द्रव्यों के बाद सबसे अधिक तस्करी जिन्दा या व्यंजन और ढेरों वैरायटी आज उपलब्ध हैं। स्नेक सूप सहित | मारे गए जीव-जन्तुओं व उनके अंगों की होती है। चौंकानेवाले अनेक जीवों के सूप, भुनी चीटियों की डिश, शराबी मछली, | आंकड़े बताते हैं कि लगभग तीन सौ करोड़ रुपये का केकड़े, इल्ली कोई भी प्राणी मनुष्य की रसना लोलुपता से | सालाना कारोबार होता है। न जाने कितने जीवों को मारा जा नहीं बच पा रहा है। पहले तो ये सब पढ़ते ही थे पर आज | रहा है और भारी मुनाफा कमाया जा रहा है। कुछ दिन पहले जबकि टी०वी० के माध्यम से इन्हें बनाते हुए दिखाते हैं. | अभ्यारणों में से बाघ विलुप्त होने की खबरें सुर्खियाँ बनी विचार करें कितने वीभत्स दृश्य होते हैं वे। इतना ही नहीं। थी। प्रधानमंत्री से लेकर वन्य अधिकारियों तक एक उथलइन खाने वाले जीवों को कृत्रिम एवं अप्राकृतिक तरीके से | पुथल सी मच गई थी। बाघ की खाल, उसके अंग और पैदा करने के लिये नित नये संसाधन खोज लिये गए हैं और | अन्य सामग्री ने अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में उसे महंगा बना दिया खोजे जा रहे हैं। यही कारण है कि परा विश्व नित नये है। चीता एवं बाघ की कीमत लाखों में हैं। बाघों के शिकार संक्रमणों और बीमारियों से घिरता जा रहा है। के पीछे भी इसके शरीर के विभिन्न गुणों को बखाना जाता मानव, पशु-पक्षियों तथा प्रकृति का एक संतुलन है। चीन, ताइवान, हांगकांग, यूरोपीय देशों और पूर्वी देशों में चक्र सदैव रहा है परन्तु मनुष्य ने अपने स्वाद, सौन्दर्य बाघ की हड्डियों और अन्य अंगों की बनी दवाओं को लेकर प्रसाधन, मनोरंजन विभिन्न रसायन, उद्योगधंधों के विभिन्न अनेक तरह के अंध विश्वास हैं। चीन में बनने वाली क्रूरतम प्रयोगों आदि में इन जीव-जन्तुओं को झोंक दिया है। पारम्परिक दवाओं में बाघ की हड्डियों से लेकर उसकी पिछले दो सौ वर्षों में न जाने कितने जीव-जन्तुओं की | चर्बी, मस्तिष्क, दाँत, मूछ, लिंग आदि का इस्तेमाल किया नवम्बर 2005 जिनभाषित 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524302
Book TitleJinabhashita 2005 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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