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________________ जानो और फिर विश्व को जानने का प्रयत्न करो। एक | विराट चैतन्य का अनुभव करें। यही है सम्यग्दर्शन, यही है पश्चिमी विचारक ने लिखा है, 'प्रत्येक मनुष्य अपने आपमें | गहरी से गहरी आत्म रूपान्तरण की प्रक्रिया। एक विशालकाय ग्रंथ है, यदि आप उसे पढ़ने की कला | स्वाध्याय का चरम लक्ष्य स्वदर्शन तथा चित्त वृत्तियों जानते हैं।' स्वयं को पढ़ने की प्रक्रिया का पहला चरण है | का परिष्कार ही है। किन्तु यह बात सुनने या पढ़ने में जितनी अपने आपके सामने खड़े होकर स्वयं को, स्वयं की वृत्तियों | को देखें। परी ईमानदारी से देखें कि मैं कहाँ हूँ? कैसा हूँ? मैं | भरने की क्षमता हर किसी में नहीं होती। जन-सामान्य का चेतना के किस स्तर पर जी रहा हूँ? और मेरे भीतर क्या है? रुझान प्रायः सहज-सरल विधि की ओर होता है। स्वाध्याय इस प्रक्रिया के अन्तर्गत भीतर में जो भी दिखाई दे उससे डरें | आन्तरिक रूपान्तरण की सगम प्रविधि है। इसका आलम्बन नहीं। देखते चले जाएँ, देखते चले जाएँ। लेकर आत्म साक्षात्कार के शिखर को भी छुआ जा सकत दूसरा चरण एकान्त स्थान में सहजतापूर्वक बैठकर | है। वृत्तियों का दर्शन करें। कैसी भी शुभ-अशुभ प्रीतिकर 'पुण्य वर्धनी' अप्रीतिकर वृत्तियाँ चेतना के पटल पर उभरें, उन्हें नकारें मेन रोड, शहपुरा (भिटौनी), जबलपुर (म.प्र.) नहीं, सहजता से स्वीकार करें। उन वृत्तियों के भीतर बैठे सरस्वती-वरदपुत्र स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. बंशीधर जी व्याकरणाचार्य का "जन्म शताब्दी वर्ष' समारोह प्रारंभ आज से सौ वर्ष पूर्व 3 सितम्बर १९०५ को सौरई (ललितपुर) उ०प्र० में जन्म लेने वाले पं० बंशीधर जी को अति अभावों का बचपन मिला। उन्हें पूज्य गणेशप्रसाद जी वर्णी स्याद्वाद संस्कृत विद्यालय वाराणसी ले गए, जहाँ वे ज्ञान की देवी सरस्वतीपुत्र के रूप में विख्यात हुए। साथ ही स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर राष्ट्रीय जीवन से जुड़े। इस वर्ष ५ सितम्बर २००५ से दि० जैन मंदिर, इटावा (बीना) में आपका जन्म शताब्दी वर्ष समारोह ब्र० संदीप भैया, ब्र० शैला दीदी के सान्निध्य में मनाया गया। इसी अवसर (शिक्षक दिवस) पर पं० जानकीप्रसाद गोस्वामी को अभिनन्दन पत्र, शाल-श्रीफल एवं रुपये ११०१/- की सम्मानराशि भेंट की गई। आगत विद्वानों को शाल-श्रीफल व स्मृतिचिन्ह से सम्मानित किया गया। प्राचार्य डॉ० नेमीचंद खुरई, श्री सुदेश कोठिया इंदौर, पं० लालचन्द 'राकेश' गंजबासौदा. श्री संतोष भारती दमोह. श्री प्रेमचन्द शाह बीना. पर्व विधायक श्री कपरचंद घवारा. श्री गोपालरा आचवल जी एवं युवाकवि शैलेन्द्र जैन ने पण्डित जी के कतित्त्व एवं व्यक्तित्व के साथ संस्मरण सनाकर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजली समर्पित की। समाज अध्यक्ष श्री अभयसिंघई ने पण्डित बंशीधर जी के २० वर्ष लंबे मंत्रीकाल को याद किया। ब्र० शैला दीदी ने संस्कृत में तथा ब्र० संदीप भैया जी ने हिन्दी में आपके व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। ब्र० संदीप जी ने चाचा (पं० बंशीधर जी) एवं भतीजे (डॉ० दरबारी लाल कोठिया) के वात्सल्यमयी जीवन झांकी को प्रस्तुत किया। पण्डित जी के अमूल्य कृतियों के पुनः प्रकाशन व अध्ययन करने के लिए समाज एवं उनके परिवारजनों का ध्यान आकृष्ट किया। आभार प्रदर्शन पं० दुलीचंद कोठिया एवं पण्डित जी के सुयोग्य सुपुत्र श्री विभव कोठिया (वर्तमान में समाज के मंत्री) ने किया। इस गौरवमयी समारोह का सफल संचालन जैन धर्म के प्रसिद्ध विद्वान् कुशल प्रवचनकार श्री पं० निहालचंद जैन बीना ने किया। विशेष : श्री बाबूलाल जी छावड़ा लखनऊ से निवेदन किया जा रहा है कि 'जैन गजट' साप्ताहिक में पण्डित जी के प्रमुख लेखों को एक स्तम्भ के रूप में इस वर्ष प्रकाशित करके उनके कृतित्त्व से समाज को लाभान्वित करें। साथ ही पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज के सान्निध्य में पण्डित बंशीधर जी व्याकरणाचार्य पर एक राष्ट्रीय विद्वत्संगोष्ठी भी प्रस्तावित है। पं. निहालचंद जैन, बीना 18 नवम्बर 2005 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524302
Book TitleJinabhashita 2005 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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