SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जाता है। साथ ही दावा किया जाता है कि इससे अनेक । देखते हैं कि पशु-पक्षियों के प्रति कितनी, क्रूरता बढ़ती जा बीमारियाँ, लकवा, गठिया, सूजन, नपुंसकता, पेट की | रही है। गाय को जब मेडकाउ संक्रमण ने घेर लिया तो बीमारियाँ आदि से छुटकारा मिल सकता है। ये दवायें खुले | ब्रिटेन आदि देशों में लाखों की संख्या में गायों को मौत के आम कहके बिकती हैं कुछ दवायें तो सिर्फ बाघिन के | घाट उतार दिया गया। मुंह व खुर के रोगों के चलते चौपाये हार्मोन से ही बनती हैं। पशुओं को आये दिन मार दिया जाता है। सुरक्षित माँस के __ मेंढ़क और उसकी टांगें, सांप, गिलहरी, बिल्ली, चुनाव में इंसान की नजर जिस भी जीव-जन्तु पर पड़ी उसी गिरगिट, लोमड़ी आदि की खालें भी मुनाफा देती हैं। इसी | पर कहर बरस जाता है। शुतुरमुर्ग की शुरुआत हुई तो जल्दी तरह कस्तूरी मृग की कीमत भी बाजार में बीस से पच्चीस से वह भी संक्रमण में आ गया। मुर्गो, बतखों में जब बर्डफ्लू लाख रुपये किलो के बीच है। कस्तूरी मृग और केंचुए को का वायरस फैला तो पूरी दुनिया में तहलका मच गया और लेकर भी अनेक अंधविश्वास हैं। तितली की सुन्दरता ही इन्हें भी लाखों की संख्या में बेमौत मारा गया। पशु पक्षी के उसके लिये अभिशाप बन गई। तितली से जड़ी पेंटिंग, शो माँस का व्यापार बनना ही उसकी बेमौत है। व्यवसायीकरण के चलते उन्हें असामान्य ढंग से विकसित करना, पैदा पीस ड्राइंग रूम की शोभा को बढ़ा रहे हैं और तितलियों का विनाश कर रहे हैं। नरहाथी के दाँत से बने गहने व कलात्मक करना और अधिक से अधिक उनकी संख्या बढ़ाना, ये ही वस्तुओं को लकी मानकर न जाने कितने हाथियों को अनलकी सब विभिन्न संक्रमणों वायरस के कारण बनते हैं,यही कारण बनाया जा रहा है। इसी तरह हाथी का जुलूस, झाँकी आदि है कि अनेक गंभीर बीमारियाँ मानव को चुनौती दे रही हैं। में खूब उपयोग किया जा रहा है। तेज बैंडबाजे के शोर और यह स्वाभाविक है कि जब इंसान अपना भोजन छोड़ माँसाहारी अपार भीड़ में जब इन्सान ही तनावग्रस्त हो जाता है वहाँ | बनेगा तो पशु पक्षी जन्य बीमारियों से कैसे बच पाएगा? जानवर कैसे नार्मल रह सकता है? आये दिन हाथी पागलपन सौंदर्य प्रसाधनों व अनुसंधानों के नाम पर भी जीवके शिकार हो रहे हैं और मानवीय बन्दूक की गोली के | जन्तुओं पर कहर ढाया गया है। सौंदर्य प्रसाधनों में प्रयुक्त शिकार भी। इस तरह ये वन्य जीव आये दिन शिकारियों के | एस्ट्रोजीन, कार्टिजोन, मिंक आइल, प्लेसेटा, इलास्टिन, हाथ चढ़ते रहते हैं। टी०वी० अखबारों में आये दिन इनके एमीलेस एम्बरग्रीस, कार्माइल, कार्मिनिन एसिड, फिश लिव्हर खत्म होने के समाचार आते रहते हैं। इन्सान के वहम, | आयल लेनोलीन आदि सभी रसायन पशु उत्पाद हैं जिनका अन्धविश्वास और शौक के चलते एवं ड्राइंग रूम में सजावट | प्रसाधनों में प्रयोग होता है। इन सब रसायनों का उपयोग के लिये वन्यजीवों का अन्त क्या इसी प्रकार होता रहेगा? | शैम्पू, रूज, परफ्यूम, आफ्टर शेव आदि में किया जाता है। यह विचारणीय है। इनके उपयोग के पहले शिकार बनते हैं खरगोश, बंदर, __ जम्मू-कश्मीर, लद्दाख के ऊपरी क्षेत्रों में चीरू जानवर गिलहरी आदि। लाखों साल से प्रकृति के अनगिनत थपेड़े पाया जाता है। एक चीरू से महज डेढ़ सौ ग्राम ऊन मिलती | खाकर भी अपना जीवन बचाये रखने वाले ये जीव-जन्तु इंसान से कब तक बच पायेंगे यह उनके लिये एक चुनौती है। शहतूस की शालें इसी ऊन से बनती हैं। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में शहतूस की एक शाल की कीमत आठ से दस लाख रूपये है ये वही शालें हैं जो एक अंगूठी के घेरे में से वन्य जीवन मानवीय हिंसा के शिकार तो हो ही रहे हैं निकल जाती हैं। वन्य प्राणी संरक्षण कानून की धारा ५५ के | | आधुनिकीकरण के चलते भी इन पर संकट छाया हुआ है। तहत चीरू को संरक्षित घोषित किया गया है। साथ ही जहरीले रसायन, प्रदूषण एवं वनों की अंधाधुंध कटाई आदि १९७७ के पहले शहतूस की शालें जिनके पास हों उन्हें विविध कारणों से अनेक जीव-जन्तु खतरे में हैं। जलपंजीकरण कराना जरूरी है। इसकी शाल रखना जुर्म है एवं | थल-नभ सभी में रहने वाले जीव जन्तु अपने अस्तित्त्व की सजा का प्रावधान भी है। इनता मंहगा ऊन देने वाला यह | लड़ाई लड़ रहे हैं। प्रकृति के सभी जीव प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष जीव अपने अस्तित्त्व को कैसे बचा पा रहा होगा? रूप से एक दूसरे से जुड़े हैं। यदि एक का संतुलन बिगड़ा समाचार पत्रों एवं मीडिया के माध्यम से ही हम सब तो अनेक संतुलन बिगड़ जाते हैं। विश्व संरक्षण संगठन (वर्ल्ड कंजरवेशन युनियन) ने भी वन विभाग प्रदूषण, 20 नवम्बर 2005 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524302
Book TitleJinabhashita 2005 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy