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जिज्ञासा - समाधान
पं. रतनलाल बैनाड़ा प्रश्नकर्ता : रविन्द्रकुमार जैन,यमुनापार, दिल्ली । । उपलब्ध आगम के अनुसार सर्वप्रथम ग्रन्थों को लिपिबद्ध
करने वाले 'कषायपाहुड़' के रचियता आचार्य गुणधर महाराज जिज्ञासा : वर्तमान में कुछ साधुओं ने, 'मंगलं
| थे। इस संबंध में कुछ प्रमाण नीचे दिए जाते हैं : कुन्दकुन्दाद्यो' के स्थान पर मंगलाचरण में मंगलं पुष्पदन्ताद्यो' बोलना प्रारम्भ कर दिया है। उनका कहना है कि आचार्य
१. आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज द्वारा लिखित कुन्दकुन्द से पहले होनेवाले तथा सर्वप्रथम ग्रन्थ लिपिबद्ध | ‘इतिहास के पन्ने' नामक पुस्तक के पृष्ठ १४ पर लिखा है करने वाले आचार्य पुष्पदन्त महाराज थे, अतः हम उनकी कि 'आचार्य गुणधर महाराज ने सन् २५ ईसवी के लगभग वन्दना करते हैं। क्या यह उचित है ?
'कषाय पाहड़' नामक ग्रन्थ का उद्धार एवं लिपिबद्धीकरण
किया। सन् ७३ ईसवी में आचार्य धरसेन ने स्वयं 'जोणि समाधान : मैंने जिन शास्त्रों का अध्ययन किया
पाहुड़' नामक ग्रन्थ की रचना की और सन् ७५ ईसवी में है,उनके अनुसार 'मंगलम् भगवान् वीरो.........' यह
| आचार्य पुष्पदन्त एवं भूतबलि महाराज ने 'षटखण्डागम' मंगलाचरण सर्वप्रथम ‘सिरि भूवलय' नामक ग्रन्थ में, जिसके
ग्रन्थ का उद्धार एवं संकलन किया । रचियता आचार्य कुमुदेन्दु हैं, और जिनका काल ९वीं शताब्दी कहा जाता है, उपलब्ध होता है। यह ग्रन्थ शब्दों में न लिखा
२. डा. नेमिचन्द्र शास्त्री, ज्योतिषाचार्य ने 'तीर्थंकर जाकर, अंकों में लिखा हआ है। इसमें 'मंगलम भगवान | महावीर और उनकी आचार्य परम्परा' भाग-२, पृष्ठ-३० पर वीरो..........' मंगलाचरण दिया गया है और उसका तीसरा | इसप्रकार लिखा है, 'छक्खंडागम' प्रवचनकर्ता धरसेनाचार्य चरण 'मंगलं कुन्दकुन्दाद्यो' ही दिया गया है। इस ग्रन्थ के | से 'कषायपाहुड़' के प्रणेता गुणधराचार्य का समय लगभग बाद अन्य बहुत से ग्रन्थों में यह मंगलाचरण इसीतरह लिखा २०० वर्ष पूर्व सिद्ध हो जाता है। इसप्रकार आचार्य गुणधर हुआ मिलता है। (निवेदन : विद्वानों से अनुरोध है कि यदि | का समय विक्रम पूर्व प्रथम शताब्दी सिद्ध होता है। उपरोक्त ग्रन्थ से पूर्व, यह मंगलाचरण किसी ग्रंथ में उपलब्ध
३. 'शौरसेनी प्राकृत भाषा एवं उसके साहित्य का हो तो अवश्य सूचित करें)। किसी भी ग्रंथकर्ता ने या किसी | संक्षिप्त इतिहास' लेखक डा. राजाराम ने पष्ठ ९ पर आचार्य भी आचार्य ने अपने ग्रन्थ में या अपने प्रवचनों में मंगलम् | गुणधर कृत 'कषायपाहुड़' को ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के कुन्दकुन्दाद्यो' इस तृतीय चरण को आजतक परिवर्तित नहीं | आसपास का माना है। जबकि आचार्य पुष्पदन्त भूतबलि का किया है। करें भी कैसे? आचार्य कुन्दकुन्द के महान् उपकार | काल निर्विवाद रूप से ईसा की प्रथम शताब्दि रहा है। को दृष्टि में रखकर ही, यह मंगलाचरण रचा गया है, जो
४. पं. बालचन्द जी शास्त्री ने 'षट्खण्डागम परिशीलन' वास्तव में हर दृष्टि से उचित है। कई वर्ष पूर्व आगरा में एक
पृष्ठ १४४ से १५० पर लिखा है, 'षटखण्डागम ग्रन्थ की मुनिराज पधारे थे, जब उनके मंगलाचरण को समाज ने
रचना पद्धति कषायपाहुड़ की सूत्र गाथाओं पर आधारित समर्थन नहीं दिया, तब उन्होंने यही स्पष्टीकरण दिया था कि
रही है।' आचार्य पुष्पदन्त सर्वप्रथम ग्रन्थकर्ता हैं, अतः हम आचार्य कुन्दकुन्द की बजाय उनकी वन्दना करते हैं। इस विषय पर
५. श्री परमानन्द जी शास्त्री ने 'जैन धर्म का प्राचीन चर्चा के दौरान मैंने उनको १०-१५ विद्वानों के अभिमत की
| इतिहास', द्वितीय भाग, पृष्ठ ६९ पर आचार्य गुणधर का फोटोकॉपियाँ दी थीं और निवेदन किया था कि आपकी
| समय ईसवी पूर्व द्वितीय शताब्दी सिद्ध किया है। मान्यता उचित नहीं है। सारे तथ्यों की वास्तविकता देखने के ६. सिद्धांताचार्य पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री ने, 'जैन साहित्य बाद उन्होंने अगले दिन यह स्वीकार किया था कि वास्तव में | का इतिहास' प्रथम भाग, पृष्ठ २४-२५ पर आचार्य गुणधर 'मंगलं पुप्पदन्ताद्यो' बोलने का कोई औचित्य नहीं है। यहाँ | महाराज को आचार्य धरसेन महाराज से स्पष्ट रूप से पूर्ववर्ती भी नीचे लिखे प्रमाणों से यह स्पष्ट होता है कि आचार्य | माना है। पुष्पदन्त महाराज से पूर्व, आचार्य गुणधर महाराज ने | ७. 'जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष' भाग-१, पृष्ठ ३२८ पर 'कषायपाहुड़' नामक ग्रन्थ की रचना की थी । अर्थात् वर्तमान | क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी ने आचार्य गुणधर को प्रथम शताब्दी
अक्टूबर 2005 जिनभाषित 2 3
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