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सम्पादकाय
"दिशाबोध' का हितकर प्रयोग "दिशाबोध' के जागरूक और उत्साही सम्पादक डॉ. चिरंजीलाल बगड़ा ने अपनी पत्रिका के मई 2005 के अंक में विद्वानों से यह आग्रह किया था कि वे वर्तमान स्थिति को देखते हुए आकलन करें कि आज से 10 वर्ष बाद (सन् 2015 में) श्रावकों, मुनियों और पंडितों के धर्माचरण का स्वरूप क्या होगा ? विद्वानों से प्राप्त आकलनों को सम्पादक जी ने अगस्त 2005 के 'दिशाबोध' में प्रकाशित किया है। यह समाज के मस्तिष्क माने जानेवाले विद्वानों और विदुषियों का एक महत्त्वपूर्ण आकलन है। भले ही उनके श्रावकधर्म का स्तर बहुत ऊँचा न हो, परन्तु उनके सच्चे देव-शास्त्रगुरु के स्वरूप-बोध, लोगों के स्वभाव और प्रवृत्तियों को परखने की पैनी दृष्टि, मनोवैज्ञानिक एवं तर्कसंगत चिन्तनशीलता तथा जिनशासन को पतन से बचाने की चिन्ता में कोई सन्देह नहीं है। इसलिए उनका आकलन बहुत महत्त्व रखता है। प्रायः सभी विद्वानों और विदुषियों की अनुभूतियाँ एक जैसी हैं। उन्होंने आज से दस वर्ष बाद के श्रावकों, मुनियों एवं पण्डितों के धार्मिक आचरण के स्वरूप का जो चित्र खींचा है, वह भयावह है, हमें झकझोरनेवाला, हमारी आँखें खोलनेवाला और दस वर्ष बाद के अनुमानित धार्मिक पतन से जिनशासन की रक्षा के लिए उत्प्रेरित करनेवाला है।
"दिशाबोध' के अगस्त 2005 के अंक में प्रकाशित उक्त विद्वानों की अनुभूतियाँ आद्योपान्त पढ़ने-योग्य हैं । उनकी कुछ बानगी यहाँ प्रस्तुत की जा रही है।
सुप्रसिद्ध विद्वान् एवं जैनगजट के भूतपूर्व सम्पादक पं. नरेन्द्रप्रकाश जी जैन का सन् 2015 का भविष्यदर्शन गौर करने लायक है। वे लिखते हैं
1. समाज में गुटबाजी बढ़ेगी। हर ग्रुप दूसरे ग्रुप या ग्रुपों को पीछे धकेलकर आगे बढ़ने की कोशिश करेगा। इस कार्य में ग्रुपों का मोहरा बनने में साधुओं को भी परहेज नहीं होगा।
2. पण्डितों/विद्वानों का दबदबा कम होगा। समाज पर उनकी पकड़ ढीली होगी। इसके पीछे कारण होंगेसेवा, समर्पण, त्याग और संयम में आयी कमी तथा बढ़ती धनलिप्सा।
3. धर्म क्रियाकाण्डों में सिमट कर रह जायेगा। उत्सव मँहगे होंगे। भीड़जुटाऊ मनोरंजन, हो-हल्ला और उछलकूद से ही उत्सवों की सफलता मापी जाया करेगी।
4. साधुओं में अनियत विहार की जिनाज्ञा के परिपालन में रुचि कम होगी। अपनी-अपनी प्रेरणा से स्थापित संस्थाओं (मठों) में ही लौट-फिर कर वे प्रायः प्रवास या निवास करते हुए देखे जायेंगे।
5. जिन साधुओं के दरबार में भौतिकसुख की प्राप्ति के लिए टोना-टोटका, झाड़फूंक, यंत्रमंत्र, वास्तु-चिकित्सा आदि से सम्बन्धित उपाय बताये जायेंगे, वहाँ भारी भीड़ दिखेगी।
6. साध हो या श्रावक. चरित्र पर दाग लगने पर भी कोई लज्जित नहीं होगा।
सुविख्यात साहित्यकार श्री सुरेश सरल की सन् 2015 विषयक भविष्यवाणी का यह अंश गंभीरता से विचारणीय है
"रद्दी पेपर की माँग बढ़ जावेगी। लोग दूध और दारू बेचना बन्द कर, रद्दी खरीदना चालू कर देंगे। अत: उनकी माँग पूरी करने पत्र-पत्रिका, पोथी-पुस्तकें अधिक संख्या में प्रकाशित होने लगेंगी। सम्पादकों, लेखकों का सरोकार पाठकों से कम, तराजू और बाँटवालों से अधिक बढ़ जावेगा। सन्तों की पुस्तकें भी वहाँ अपनी पहुँच बनाने में सफल रहेंगी।"
प्राचार्य (पं.) निहालचन्द्र जी ने अपने मन में झूलती सन् 2015 के जैन साधुओं की तसवीर खींचते हुए लिखा है- "प्रभावी प्रवचनकार सन्तों का बाहुल्य और वर्चस्व रहेगा। साधु के शिथिलाचार को रेखांकित करनेवाला सामाजिक परिताप और अपमान का मोदक चखेगा। आत्मश्लाघा युवा सन्तों की प्राणवायु होगी।
4 सितम्बर 2005 जिनभाषित
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