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________________ हुये। मुनिसंघ की धर्मप्रभावना का एक बहुत बड़ा आदर्श उपस्थित तब हुआ जब महावीर जयंती की शोभायात्रा और मुनिसंघ की धर्मसभा को शहर के मध्य उदय चौक की बात आई। इस बार मुस्लिम समाज का इस तिथि में ईद का पर्व पड़ जाने के कारण उन्होंने अपनी सभा इसी स्थल पर आयोजित करने की परमीशन प्रशासनिक स्तर पर पहले ही ले ली थी, किन्तु जैनसमाज द्वारा प्रशासन को उस स्थान पर अपना कार्यक्रम दिये जाने पर स्थिति बड़े असमंजस की बन गई। एतदर्थ थाना प्रभारी एवं एस.पी. महोदय ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हुये दोनों समुदाय के वरिष्ठ नागरिकों से बातचीत में जैसे ही मुनिसंघ की उपस्थिति का संदर्भ आया तो मुस्लिम बंधुओं ने बड़े ही सौहार्दपूर्वक अपने कार्यक्रम के लिए स्थान परिवर्तन का आशय प्रकट किया और कहा कि महावीर के सिद्धांतों से और जैनमुनियों की तपस्या से हम लोग परिचित हैं उनके प्रति श्रद्धा यही है कि आपका कार्यक्रम उसी स्थान पर सम्पन्न हो । तदानुरूप प्रशासनिक स्तर पर व्यवस्था बनाई गई और दोनों समुदाय के कार्यक्रम जुलूस एक ही रास्ते से निकलते हुए सम्पन्न हुये। अशोक कौछल प्रवचनमाला का ऐतिहासिक आयोजन नयी पीढ़ी को विरासत में केवल धन ही नहीं, धर्म भी प्रदान करें : मुनि १०८ श्री प्रमाणसागरजी महाराज राँची। आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के प्रभावक शिष्य एवं ओजस्वी वक्ता मुनिश्री १०८ प्रमाण सागरजी महाराज ने तीर्थराज सम्मेदशिखर जी में अल्प प्रवास एवं महती धर्मप्रभावना के उपरांत हजारीबाग, गोमिया, साढ़म, रामगढ़ आदि स्थानों से विहार करते हुए झारखंड की राजधानी राँची में मंगल प्रवेश किया। पूज्य मुनिश्री के साथ ऐलक श्री चेतनसागर जी एवं १०५ श्री सम्यक्त्व सागरजी एवं ब्र. अन्नू भैया, रोहित भैया, राजेन्द्र भैया ने भी मंगल प्रवेश किया । मुनिश्री की अगवानी करने के लिए राजधानी के हजारों जैन एवं जैनेतर लोग उमड़ पड़े। मुनिश्री की अगवानी रांची के लोकप्रिय विधायक सी. पी. सिंह ने की। इस पद - विहार में सैकड़ों लोग मुनिश्री के साथ-साथ सम्मेद शिखर जी से ही चल रहे थे। धीरे-धीरे जैसे मुनिश्री के चरण राँची की ओर बढ़ रहे थे, सैकड़ों की भीड़ हजारों में बदलती जा रही थी। मुनिश्री के नगर - प्रवेश के अवसर पर हजारों पुरुष, महिलायें एवं बच्चे पलकपावड़े बिछाकर अगवानी करने के लिए Jain Education International खड़े हुए थे । आगमनिष्ठ-चर्या के साधक मुनिश्री प्रमाणसागरजी महाराज अपनी अनूठी प्रवचनशैली एवं शब्द-सौष्ठव के लिए विख्यात् हैं । दिगम्बर जैनपंचायत राँची के तत्वावधान में एक ऐतिहासिक “दिव्य-सत्संग एवं प्रवचनमाला" का नौ दिवसीय आयोजन दिनांक १९.०४.२००५ से २७.०४.२००५ तक किया गया। मुनिश्री की मंत्रमुग्ध करदेनेवाली शैली से प्रभावित होकर हजारों जैन-अजैन श्रोताओं की भीड़ उमड़ पड़ी। 'दिव्य सत्संग एवं प्रवचनमाला' के प्रथम दिन ध्वजारोहण समस्त पांड्या परिवार द्वारा एवं आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के चित्र का अनावरण महावीर प्रसाद जी सोगानी द्वारा एवं मंगल कलश स्थापना श्री माणिक चंद्र जी एवं मोतीलाल जी काला द्वारा किया गया। दीप प्रज्वलन धर्मचंद जी (अध्यक्ष जैनपंचायत, रांची), प्रदीप वाकलीवाल (मंत्री दिगम्बर जैनपंचायत, रांची), माणिकचंद गंगवाल द्वारा सामूहिक रूप से किया गया। प्रवचनमाला में नौ दिनों तक मुनिश्री ने विभिन्न दार्शनिक, सामाजिक एवं धार्मिक विषयों पर मंत्रमुग्ध कर देनेवाली शैली में प्रवचन किये। मुनिश्री ने भगवान महावीर के पंच सिद्धांतों को जन-जन के हृदय में आरोपित कर दिया। जैनसंत ने जन-संत बनकर जीवन के गूढ़ रहस्यों को उद्घाटित किया । प्रवचनमाला के दौरान ही भगवान महावीर स्वामी की जन्मजयंती पर एक विशेष धर्मसभा आयोजित की गयी, जिसमें मुख्य अतिथि झारखंड राज्य के मुख्यमंत्री श्री अर्जुन मुंडा रहे । मुख्यमंत्री श्री अर्जुन मुंडा ने पूज्य मुनिश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया एवं गौरव तीर्थराज सम्मेद शिखर के विकास हेतु एक विशेष योजना बनाने पर विचार करने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि झारखंडा सरकार जैनसमुदाय के लिए हर प्रकार का सहयोग देने के लिए प्रतिबद्ध है। इसी अवसर पर रीवा विश्वविद्यालय के उपकुलपति श्री ए. डी. एन. बाजपेयी जी भी रीवा (म. प्र. ) से पधारे। उन्होंने अपनी विद्वत्तापूर्ण अभिव्यक्ति करते हुए कहा कि मेरी हार्दिक भावना है कि मैं अगला जन्म किसी जैनपरिवार में लूँ । उपकुलपति जी ने भगवान महावीर के अपरिग्रह के सिद्धांत को दुनियाँ के 'हर मर्ज की दवा' बताते हुए कहा कि जैनसमाज को इस सिद्धांत को केवल आदर्श नहीं, आचरण बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं जैनों से नहीं, जैन संतों से प्रभावित होकर जैनधर्म से जुड़ा हूँ । इस प्रवचनमाला की ख्याति समस्त झारखंड के कोनेकोने में फैल गयी। नौदिवसीय कार्यक्रम में प्रत्येक दिन जुलाई 2005 जिनभाषित 27 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524298
Book TitleJinabhashita 2005 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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