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के सामान का प्रयोग भी अधिकांश देखा जाता है जो उचित | क्या-क्या करते हैं? मंत्रित वस्तओं की अवमानना से इसका नहीं है।
विपरीत प्रभाव भी देखने में आता है। भक्तामर के संस्कृतपाठ का उच्चारण अत्यन्त शुद्ध
विद्वज्जन भी विचार करें! भक्तामर स्तोत्र अलग है होना चाहिए। हिन्दी पाठों को भी मूललय में न पढ़कर
| तथा भक्तामर विधान अलग है। अनुष्ठान में इन दोनों को आधुनिक फिल्मी तों में पढ़ने का फैशन जोर पकड़ रहा
| साथ-साथ तो पढ़ सकते हैं, किन्तु आधा-आधा अंश लेकर है, जिससे धार्मिक प्रभावना की जगह मानसिक विकृति
किसी प्रकार अनुष्ठान नहीं किया जाना चाहिए। यदि केवल उत्पन्न होती है।
पाठ करना हो तो भक्तामरस्तोत्र का पाठ करना चाहिए परन्तु अनुष्ठान में आनेवाले के लिए प्रसाद की व्यवस्था,
| अनुष्ठानक्रिया तो सोमसेनाचार्य के विधान पूर्वक करना
अनिवार्य है। गिफ्ट आयटम (फोटो, पेन, चाबी छल्ले) का वितरण तथा अनुष्ठान के समापन पर मंत्रित छल्ले, कड़े, अंगूठी, यंत्र
अखण्डपाठ की परम्परा किस ग्रन्थ या किन आचार्य आदि प्राप्त करना हमारी किस भावना का द्योतक हैं? के अनुसार सम्पादित की जा रही है? शोध का विषय है। ____ यह सही है कि मंत्रानुष्ठान से सभी वस्तुएं मंत्रित हो
पुष्य भवन, टीकमगढ़ (म.प्र.) जाती हैं, परन्तु उनको पहिनकर कहाँ-कहाँ जाते हैं एवं
सर्वोदय जैनविद्या शिक्षणशिविर सम्पन्न परमपूज्य निर्ग्रन्थाचार्यवर्य, जिनशासन-युग-प्रणेता, अध्यात्म सरोवर के राजहंस, आचार्य परमेष्ठी, आचार्य भगवन् श्री विद्यासागर जी महामुनिराज की परम शिष्या वात्सल्यमूर्ति आर्यिकारत्न मृदुमति माताजी, आर्यिका श्री निर्णयमति माताजी, आर्यिका श्री प्रसन्नमति माताजी, परम विदुषी बा.ब्र. पुष्पा दीदी (रहली) एवं बा.ब्र. सुनीता दीदी (पिपरई) का धर्मप्राण नगरी आष्टा में १४ अप्रैल २००५ को प्रात:काल धर्मप्रभावना के साथ मंगल प्रवेश हुआ। श्रावकों का उत्साह देखते ही बनता था। भोपाल से विहार के बाद प्रत्येक गांव में आष्टा के श्रावक आते रहे । यहां तक कि सीहोर में आष्टा के श्रावकों ने आर्यिका संघ की आगवानी सीहोर प्रवेश पर की। आष्टा के श्रावकों की देव-शास्त्रगुरु पर अपार श्रद्धा-भक्ति है। विद्यासूत्र एवं भक्तियों पर आर्यिकासंघ के मंगल प्रवचन प्रारंभ हुये। साथ ही महावीर जयंती से ३ मई २००५ तक शिक्षणशिविर का भव्य आयोजन किया गया, जिसमें आर्यिका संघ के द्वारा विभिन्न कक्षाओं का संचालन किया गया। जिसमें सैकड़ों शिविरार्थियों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। कक्षाओं में शिविरार्थियों ने बहुत रुचि ली। शिविर की परीक्षा आयोजित की गई, जिसमें शतप्रतिशत शिविरार्थी उत्तीर्ण हुये और उन्होंने बहुत सराहनीय अंक प्राप्त किये।
दिनांक १ मई २००५ को आर्यिकासंघ के सान्निध्य में आष्टा के बड़ेबाबा श्री आदिनाथ भगवान की वेदी पर कलशारोहण का भव्य आयोजन उदासीन-आश्रम इन्दौर के अधिष्ठाता बा.ब्र. अनिल भैयाजी के प्रतिष्ठाचार्यत्व में सानंद सम्पन्न हुआ।
दिनांक १० जून से १२ जून २००५ तक किले अंतर्गत मंदिर के दो शिखरों पर कलशारोहण, चौबीसी के शिखरों पर कलशारोहण एवं त्रिमूर्ति वेदी पर कलशारोहण का भव्य आयोजन आर्यिकासंघ के सान्निध्य में आयोजित भगवन्हुआ।
अतिशयक्षेत्र के समान किले के दिगम्बर जैनमंदिर में अभूतपूर्व धर्मप्रभावना का वातावरण निर्मित हुआ। __ आर्यिका संघ का आगमन प.पू. आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से हुआ है। आष्टा के समस्त श्रावक प्रसन्न हैं और भावना भाते हैं कि आचार्यश्री की दृष्टि इसी तरह आष्टा पर हमेशा रहे।
बा.ब्र. अनिल, भोपाल
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18 जुलाई 2005 जिनभाषित
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