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तो वे उसके सामर्थ्य से सम्मेद शिखरजी, गिरनारजी, अंतरिक्ष पार्श्वनाथजी (शिरपुर ) के विवाद को सुलझायें। जैन समाज उनके पाँव धोकर पियेगी ।
आ. पद्मप्रभमलधारी देव ने नियमसार के अजीव अधिकार के श्लोक ५० की टीका में लिखा है
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इति विरचित मुच्चैर्द्रव्यषट्कस्य भास्वद्, विवरणमतिरम्यं भव्यकर्णामृतं यत् । तदिह जिनमुनीनां दत्तचित्तप्रमोदं, भवतु भवविमुक्त्यै सर्वदा भव्यजन्तोः ॥ ५० ॥ अर्थ - भव्यों के कर्णों में अमृत सदृश छह द्रव्यों का अति रम्य जिनमुनियों के चित्त को प्रमोद देने वाला, विस्तारपूर्वक किया गया षट्द्रव्य विवरण भव्य जीवों को सदा मुक्ति का कारण हो ।
और आप तो कानों में अमृत घोलनेवाली जिनवाणी को छोड़ कर्णपिशाचिनी को सिद्ध कर बैठे हैं। अब हम क्या कहें?
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(११) भूत-प्रेत भगाने वाले मंत्र (पृ.३३ ) - इस मंत्र क्या काली माँ प्रत्यक्ष दर्शन देती है? क्या हमारी उज्ज्वल
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(१२) (पृ.३४) इस मंत्र का सवा लाख जप करने से माँ तारादेवी नित्य सिरहाने दो तोला सोना रख देती है ... तब तो हर किसी को इस मंत्र से रोज दो तोला सोना (यानी करीबन १२ हजार रु. ) प्राप्त हो तो कोई व्यापार, मेहनत, नौकरी क्यों
करें?
(१३) चक्षुरोग निवारण मंत्र (पृ. ३४) - हणमंत को भजने से वे हमारे आँखों आदि के रोग ठीक करते हैं।
तब तो सारे आँखों के डॉक्टरों को अस्पताल बंद कर इन हणमंतजी को ही भजना चाहिए ? ... विशेष यह है कि जब इन्हीं आचार्य या मुनिश्री की आँखें खराब होती हैं, तब इन्हें चश्मे का नंबर निकालने के लिए डॉक्टर को पास क्यों बुलाना पड़ता है? क्या ये मंत्र इन पर काम नहीं करते?
(१४) कार्यसिद्ध मंत्र - (पृ. ४३) दत्तात्रय नमः ... इस पुस्तक में दिया यह ( कल्पवृक्ष के बराबर, चमत्कारपूर्ण ?) मंत्र पढ़कर गिरनार वाले पंडे कहेंगे कि हमारे तुम्हारे दत्तात्रेय एक ही तो हैं। ... जैनधर्म हिंदूधर्म की ही तो शाखा है । ... तब हमारे तीर्थ का क्या होगा? इस मंत्र विज्ञान को क्या कहें?
इसप्रकार अनेकों मंत्र इस पुस्तक में दिये हैं । जैसेबेड़ी तोड़नेवाले मंत्र, प्रबल बुद्धि करानेवाले मंत्र, अनाज को कीड़ों से बचानेवाले मंत्र, भय दूर करानेवाले मंत्र, अरिष्ट निवारण, स्वप्न फल, मेघ आगमन, पीलिया मंत्र, सर्प
जिनवाणी माता को छोड़ इस काली माँ के दर्शन करने को बिच्छू का विष उतारने के मंत्र, शरीर के एक-एक अंग के
हमारे आचार्यों ने कहा है?
दर्द के मंत्र, गर्भधारण, गर्भरक्षा, पुत्रप्राप्ति, लड़का होगा या लड़की, सुखप्रसव आदि सभी समस्याओं के हल इन मंत्रों से निकलते हैं। कुछ मंत्रों से चींटियाँ आदि भगायी जाती हैं, मिरगी जाती है। कुछ से घड़ा चलता है। मंत्रित चावल चोर को खिलाने से चोर के मुख से खून गिरता है। और भी विघ्ननिवारणं, बुखार आदि रोग निवारण, अग्निनिवारण, (इसमें अग्रि का स्तंभन बताया है), लक्ष्मीप्राप्ति, पुत्रसंपदाप्राप्ति, महामृत्युंजय मंत्र, ( इससे आयु बढ़ती है ? ) जहाँ मूठ मारने के मंत्र हैं वहाँ मूठ उतारने के भी मंत्र हैं। ये काम वीर वेताल आदि करते हैं।..... हर मंत्र संसार का, इंद्रिय भोगों का विषय है। जिससे वीतरागता कोसों दूर है । कहाँ तक चर्चा करें ? पढ़कर हम सोच सकते हैं कि इस वीतरागधर्म का क्या होगा ?
(१५) वस्तु बढ़ोत्तरी का मंत्र (पृ. ५१ ) - इस मंत्र के पढ़ने से अटूट भंडार होता है । ...इस मंत्र के पढ़ने से सौ
| आदमी की रसोई में दो सौ लोग खाना खायें तो भी अन्न खत्म नहीं होता।
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प्रश्न- क्या हर शादी-विवाह में थोड़ा सा खाना बनाकर यह मंत्र फूँकें तो सारे गाँव को प्रीतिभोज में बुलाया जा सकता है?
(१६) षद्गायत्री मंत्र (पृ. ५४ ) - जैनगायत्री, ब्रह्म गायत्री, वैश्यगायत्री, सूर्यगायत्री, रुद्रगायत्री, शूद्रगायत्री आदि मंत्रों में वैश्य, सूर्य, वासुदेव, रूद्र, विष्णु आदि के मंत्र हैं। सभी गायत्री मंत्रों ने अनादि अनिधन णमोकारमंत्र को भी फीका कर दिया।
इस्माईल जोगी, गोरखनाथ आदि का उल्लेख है। (१७) दाढ़ का मंत्र - इस मंत्र में कामाख्या देवी,
पैसे उड़ाने का मंत्र - (पृ. ५८) यह मंत्र पैसे उड़ा लाता है। तो क्या हमारे आचार्य यह कर्म भी सिखायें ?
क्या दि. जैन साधु यह सब करें?
जिन मुनियों पर धर्मरक्षा, शिक्षा, पोषण एवं वृद्धि की पूर्ण जिम्मेदारी है, क्या वे ही धर्म के शाश्वत सिद्धातों के मुँह पर कालिख नहीं पोत रहे हैं? सिद्धातों के विपरीत विचारधाराओं का समर्थन नहीं कर रहे हैं? क्या शाश्वत सिद्धातों को गड्ढे में नहीं डाल रहे हैं? क्या इस ग्रंथ में समाविष्ट कुछ मंत्र-तंत्रों का प्रयोग वे तथा उनसे दीक्षित कई मुनिगण खुलकर नहीं कर रहे हैं? इनमें कई अभक्ष्य पदार्थों को औषधि के रूप में जुलाई 2005 जिनभाषित 13
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