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________________ शास्त्र भण्डारों के प्रति हमारे कर्त्तव्य : हमारे जिनालयों की अपूर्व शोभा जिनप्रतिमाओं एवं शास्त्र भण्डारों से हुआ करती है। हमारे पूर्वज पूर्वाचार्यों द्वारा लिखित मां जिनवाणी को ताडपत्र - भोजपत्र एवं कागजों पर लिखकरलिखवाकर मंदिरों में विराजमान करवाते रहे हैं। वे इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि इन ग्रन्थों में जैन संस्कृति, इतिहास, सिद्धान्त, आचार-विचार की प्रचुर सामग्री समाहित है। श्रुतपंचमी पर्व के अवसर पर श्रुतभण्डारों के संरक्षणसंवर्द्धन का कार्य बृहद स्तर पर किया जाता है। श्रुतपंचमी पर्व पर इतना तो अवश्य करें १. श्रुतपंचमी को जिनवाणी की शोभायात्रा, सामूहिक श्रुतपूजन कर श्रुतपंचमी पर्व की महत्ता पर धर्मसभा का आयोजन करना चाहिए । २. शास्त्र भण्डार के समस्त ग्रन्थ निकालकर हवा में रखना चाहिए, ग्रन्थों की, अल्मारियों की सफाई करना चाहिए। पुराने जीर्ण शीर्ण वेष्टन (अछार) एवं कव्हर अलग करके नये चढ़ाना चाहिए। ३. कम से कम एक ग्रन्थ बुलवाकर शास्त्र भण्डार में विराजमान करना चाहिए । ४. यदि हो सके तो सामूहिक शास्त्रसभा प्रारम्भ करना चाहिए । यदि यह संभव न हो तो स्वतंत्ररूप से स्वाध्याय अवश्य ही करना चाहिए । ५. हस्तलिखित ग्रन्थों की पूर्ण सुरक्षा के लिये ग्रन्थों को सूती कपड़ों में कसकर बाँधना चाहिए, ताकि शीत- धूप से प्रभावित न हों। Jain Education International ६. शास्त्र भण्डार के स्थानों पर खाद्य सामग्री न रखी जावे, शीत आदि का प्रकोप न हो इस बात का ध्यान रखा जावे । ७. कीड़े-मकोड़े, दीमक आदि से बचाव हेतु अल्मारियों में सूखी नीम की पत्ती अथवा नीम की खली रखें। ८. अजवायन की पोटलियां अथवा लवंग चूर्ण अल्मारियों में रखें । ९. ग्रंथभण्डार का सूचीकरण कर पूर्ण जानकारी रखें। १०. अपने-अपने ग्रन्थ भण्डारों के व्यवस्थापन में सहभागी अवश्य बनें। आशा है हमारे श्रुतप्रेमी उपासक अवश्य ही श्रुतसेवा का संकल्प लेकर श्रुतज्ञान से केवलज्ञान तक की यात्रा पूर्ण करेंगे। अनेकान्त ज्ञान मंदिर शोध संस्थान, बीना किंकर्त्तव्यविमूढ़ जैन समाज क्या अब भी जागेगा ? निर्मलकुमार पाटोदी गिरनार सिद्धक्षेत्र पर सोमवार १९ मई २००५ तक जितना कुछ घटित हुआ है, उस सबके बावजूद भी समाज के संगठन, तीर्थक्षेत्र कमेटियाँ, सन्त, विद्वान् न सचेत दिख रहे हैं और न गंभीर। योजनाबद्ध और संगठित रूप से अर्थ सामर्थ्य के साथ फरवरी २००६ को आयोजित पूज्य भगवान बाहुबली मस्तकाभिषेक के लिये सब कुछ किया जा रहा है। गिरनार के डूबते अस्तित्व को बचाने के लिये अँगूठा कटाकर शहीद होने की प्रवृत्ति दिखाई दे रही है। किसी के अन्तर्मन में यह विचार नहीं कौंध रहा है कि जब तक गिरनार सिद्धक्षेत्र की रक्षा नहीं हो जाती तब तक न बाहुबली का महामस्तकाभिषेक करेंगे, न पंचकल्याणक करेंगे, अपितु समूचे समाज को जागृत और सक्रिय करके एक सूत्र में बँधकर सारी शक्ति तीर्थराज गिरनार के लिये अर्पण करेंगे। गिरनार दिगम्बर जैन समाज की पहचान है, इसके बिना जैन संस्कृति का एक अंग कम हो जाएगा। भविष्य में हमारे अन्य सिद्धक्षेत्र गँवाने का पथ प्रशस्त होने का भय है। क्यों नहीं वर्षायोग में सन्तगण सिर्फ गिरनार की चर्चा करें? क्यों नहीं राष्ट्रीय स्तर पर तीर्थरक्षा के लिये सिर्फ एक कमेटी काम करे? क्या अपनी-अपनी ढपली अपना अपना राग अलापना अब भी जरूरी है ? क्या इतना अधिक पानी सिर पर से निकल जाने के बाद भी हमारी आँखें नहीं खुलेंगी? हाथों से तीर्थक्षेत्र फिसलता हुआ जानने के बाद भी हम चैन की नींद सोए रहेंगे? कितनों का अंतर्मन विचलित है ? तीर्थ कराह रहा है, समाज नहीं । प्रहार तीर्थ पर हुआ है। २२, जाँय बिल्डर्स कॉलोनी, इन्दौर (म. प्र. ) 10 जुलाई 2005 जिनभाषित For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524298
Book TitleJinabhashita 2005 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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