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आत्मानुशासन
आचार्य श्री विद्यासागर जी बचना आसान है। केंद्र में हमेशा सुरक्षा रहती है और परिधि में हमेशा घुमाव रहता है।
यह अज्ञानी प्राणी संसार से डरता है, किंतु उससे उसे छुटकारा नहीं मिलता और निरंतर मोक्षसुख को चाहता है, किंतु चाहने-मात्र से मुक्ति की प्राप्ति नहीं होती। फिर भी भय और काम के वशीभूत हुआ यह जीव व्यर्थ ही संसार के कष्ट पाता है, रहस्य नहीं समझ पाता। जो इस रहस्य को जान लेता है, वह संसार-समुद्र से पार उतर सकता है।
सुख-दुःख दोनों अपनी-अपनी दृष्टि के ऊपर आधारित हैं। संसार में जितने जीव हैं, सभी को दुःख ही होता है-ऐसी बात नहीं है। जेल में देखो, जो कैदी हैं, जिसने अपराध किया है, जो न्यायनीति से विमुख हुआ है, वही
द:ख पाता है। किंत उसी जेल में जेलर भी रहता है. उसे पिता और पुत्र दोनों घूमने जा रहे हैं। पिता को दर्शनशास्त्र | उस प्रकार का कोई दःख नहीं होता। बंधन कैदी के लिए है, का अच्छा अनुभव है। उम्र के हिसाब से भी वृद्ध हैं। अपने | | जेलर के लिए नहीं। जेलर और कैदी दोनों एक ही स्थान पर पुत्र से जाते-जाते रास्ते में चलती चक्की देखकर कहते हैं हैं, किंतु एक सुख का अनुभव कर रहा है और एक दुःख कि यही दशा इस संसार की है। 'चलती चक्की देखकर |
का। इसका अर्थ यह हुआ कि सुख और दुःख का अनुभव दिया कबीरा रोय, दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय' | करने में कारण व्यक्ति की विचार-धारा ही बनती है। मन -संसाररूपी इस चक्की में सुख-दुःख के दो पाटों के बीच | की स्थिति के ऊपर ही निर्धारित है उसका संवेदन। बिना सारा संसार पिसता जा रहा है। यहाँ किसी को सच्चे सुख की उपयोग के वह सुख और दुःख संभव नहीं। प्राप्ति नहीं हो पाती और दुःख का अभाव नहीं हो पाता।
समयसार जी में आचार्य कुंदकुंददेव कहते हैं कि क्योंकि दो पाटों के बीच में धान का दाना साबुत नहीं बच
कर्मों का उदय-मात्र बंध का कारण नहीं है, किंतु अपने पाता।
अंदर विद्यमान रागद्वेष-भाव एवं पर-पदार्थों में ममत्व-बुद्धि यह बात सुनकर बेटा कहता है-पिताजी! जरा इस का होना ही बंध का कारण है। वस्तु मात्र बंध के लिए बात पर ध्यान दें कि 'चलती चक्की देखकर दिया कमाल | कारण नहीं है, बल्कि उस वस्तु के प्रति हमारा जो अध्यवसानठिठोय, जो कीली से लग रहे मार सके नहिं कोय।' यह | | भाव है, वही बंध का कारण है। संसार में रहना तो अपराध कोई नियम नहीं कि संसार के सारे प्राणी दःख का है अनुभव करते हैं या संसार के सारे जीव जन्म-मरण-रूपी | है। इससे बचने का उपाय बतानेवाले संतलोग हैं, जो हमारे पाटों के बीच पिसते ही रहेंगे। जिसने धर्मरूपी कील का | लिए हितकारी मार्ग प्रशस्त करते हैं, संसार का रहस्य समझाने सहारा ले लिया है, जिसका जीवन ही धर्म बन गया है, उसे | का प्रयत्न करते हैं। एक नई दिशा, एक नया बोध देते हैं। संसार में कोई भटका नहीं सकता। इस रहस्य को हर कोई वस्तुतः बात सही है कि जिसने धर्म-रूपी कील का सहारा नहीं जानता। यह घटना कबीर के जीवन की है। उनका बेटा | ले लिया. रत्नत्रय का सहारा ले लिया, तो वह संसार के कमाल था। उसने बात भी कमाल की कही। कहीं भागने | जन्म-मरण से बच गया। की आवश्यकता नहीं है, उसी चक्की में रहिये, लेकिन | संसार में आवागमन करते हए भी जिसने संसार का चक्की के चक्कर में मत आइये। आप चक्कर में आ जाते | आधार ले लिया. उसको भटकाने या अटकानेवाली कोई हैं, इसलिए पिस जाते हैं। कील का सहारा ले लिया जाए तो | शक्ति अब संसार में नहीं है। इतना ही नहीं, दूसरी बात यह
- जून 2005 जिनभाषित 3
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