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समाचार
ईसरी में मुनिश्री प्रमाणसागर जी का | मेरठ में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन वैराग्य-स्मरण दिवस सम्पन्न
सराकोद्धारक परमपज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी 4 इसरीवासियों एवं उदासीन आश्रम के परम सौभाग्य | महाराज एवं क्ष. श्री सहजसागरजी महाराज के पावन सान्निध्य से परमपूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज के
में दिनांक १२ जून २००५ से १८ जून २००५ तक रेलवे रोड, परमशिष्य झारखण्ड-गौरव पूज्य मुनि १०८ श्री प्रमाणसागर |
तीर्थंकर महावीर मार्ग श्री दि. जैन मंदिर की पंचकल्याणक जी महाराज एवं पूज्य क्षुल्लक १०५ श्री सम्यक्सागर जी
प्रतिष्ठा का आयोजन पं. गुलाबचन्द्रजी 'पुष्प' के निर्देशन एवं महाराज का मंगल पदार्पण दिनांक ३० मार्च को उदासीन
ब्र. जयनिशान्त जी के प्रतिष्ठाचार्यत्व में किया जा रहा है, आश्रम में हुआ एवं दिनांक ३१ मार्च को उनके १८वें दीक्षादिवस के अवसर पर उदासीन आश्रम में वैराग्य-स्मरण
जिसका विशाल पाण्डाल रेलवे रोड स्थित वर्धमान एकेडमी दिवस का आयोजन हुआ, जिसमें काफी धर्म-प्रभावना हई। म बनाया जायेगा एवं पाण्डुक शिला का आयोजन महावीर
नरेश कुमार जैन, | जयन्ती भवन में किया जायेगा। सूरज भवन, स्टेशन रोड़, पटना-800 001 (बिहार)
सुनील कुमार जैन, मेरठ शहर
उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी का तिहाड़ जेल में प्रवचन
अनेकान्त ज्ञानमंदिर शोधसंस्थान बीना की भव्य "आपको अपना पेट भरना है, तो न्याय नीति की __ प्रस्तुति "समयसार महोत्सव" कमाई से भरो। किसकी खातिर इतने पाप करते हो? क्या अध्यत्म शिरोमणि आ. कुन्दकुन्दस्वामी की तुम्हारे माता-पिता, पत्नी कर्मों को भोगने में सहयोग करेंगे?"
अमरकृति 'समयसार' ग्रन्थराज अपनी तीन संस्कृत टीकाओं ये धार्मिक उद्गार पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी | (आत्मख्याति-अमृतचन्द्राचार्यकृत, तात्पर्यवृत्तिमहाराज ने दिल्ली की प्रसिद्ध तिहाड़ जेल में हजारों की | जयसेनाचार्यकृत एवं तत्वप्रबोधनी-पं. मोतीलाल जी कोठारी तादात में उपस्थित कैदियों के मध्य व्यक्त किए। फलटणकृत) एवं हिन्दी विवेचन के साथ अनेकान्त भवन
केन्द्रीय कारागार (तिहाड़ जेल नं.4) में दिनांक ४ | ग्रन्थमाला के १३वें पुष्प के रूप में प्रकाशित किया गया है। अप्रैल, २००५ को कैदियों को सम्बोधित करते हुये पूज्यश्री | सम्पूर्ण समयसार ग्रन्थ को चार खण्डों में प्रकाशित ने कहा कि यह देश वह देश है जहाँ पर अहिंसा और सत्य | किये जाने की योजना है, जिसमें प्रथम एवं द्वितीय खण्ड में के प्रकाश से सारा जगत प्रकाशित होता था, जहाँ पर राम, | कर्तृकर्माधिकार पर्यन्त १४४ गाथाओं का प्रस्तुतिकरण १२०८ महावीर जैसे महापुरुषों ने जन्म लेकर नई राह दिखाई थी, | पृष्ठों में किया गया है। माँ जिनवाणी के बहुमान को दृष्टि में यह वह देश है, जहाँ पर राम, रहीम, महावीर के समय | रखते हुए ग्रन्थराज पर मूल्य अंकित न करते हुए प्रचारअहिंसा, दया बरसती थी, किन्तु आज उसी धरा पर अहिंसा, | प्रसार. सदपयोग करने के लिए संस्थान के द्वारा ससम्मान दया खोजे नहीं मिल रही है। यह नरभव कुछ करने के लिये |
भेंट स्वरूप प्रदान किया जा रहा है। इस ग्रन्थ के प्रकाशन में मिला है। इस नरभव को पाकर जो अन्याय, अनीति, अत्याचार |
सदाचारी, अष्टमूलगुणधारी, गुप्तदान के रूप में दान देनेवाले कर तिजोरी भरते हैं वह नरभव को पाकर यूँ ही गवाँ देते हैं।
श्रावक-श्राविकाओं की राशि का उपयोग किया गया है। इस वाल्मीकि को जब यह ज्ञात हुआ कि इन कर्मों का फल
महान कार्य में परमपूज्य गुरुवर श्री १०८ सरलसागर जी स्वयं को ही भोगना पड़ता है, माता-पिता, पत्नी-पुत्र आदि कर्मों का फल भोगने में सहयोग नहीं करेंगे, तब उनकी दृष्टि
महाराज का पुनीत आशीर्वाद एवं परमपूज्य मुनिश्री १०८ परिवर्तित हो गई, फिर वह संत बन गये।
ब्रह्मानंदसागरजी महाराज की पावन प्रेरणा रही है। हंस कुमार जैन, मेरठ
ब्र. संदीप 'सरल' मानद सम्पादक 'सराक सोपान'
संस्थापक - अनेकान्त ज्ञानमंदिर शोधसंस्थान, बीना
जून 2005 जिनभाषित 31
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