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________________ पत्रोत्तर 'लुहाड़िया सदन', जयपुर रोड, मदनगंज-किशनगढ़ (राज.) 305805 दिनांक : 20.4.2005 आदरणीय श्री नीरज जी, सविनय जय जिनेन्द्र। आपके दो पत्र मिले । पहले पत्र में फिरोजाबाद में आपके साथ हुए दुर्व्यवहार के समाचार पढ़कर अत्यंत दुःख हुआ।इस घटना की जितनी निंदा की जाय उतनी ही कम है। शिष्टता में अग्रणी रही हमारी अहिंसोपासक दिगम्बर जैन समाज को इन दिनों क्या हो गया है। लेखन एवं वाणी की स्वतंत्रता के सिद्धांत को हमारे देश के संविधान से पूर्व अतीतकाल से जैनधर्म में अनेकांत के प्रयोगपक्ष के रूप में स्वीकार किया है। अत: किसी भी विषय पर अपने विचार प्रकट करना आपका मौलिक अधिकार है। उन विचारों को स्वीकार करना या न करना दूसरों का मौलिक अधिकार है। किंतु विचार-भिन्नता को आधार बनाकर हिंसात्मक व्यवहार करना तो अत्यंत निंदनीय है। कुछ ही दिनों पहले ऐसी ही घटना श्री अभय बरगाले इचलकरंजी-वालों के साथ कुंथुगिरि पर घटी थी। उन पर किया गया आक्रमण तो इतना क्रूर था कि उन्हें 3-4 दिन अस्पताल में रहना पड़ा था। काश! हम गंभीरता से विचार कर पायें कि | इस प्रकार के व्यवहार से हम धर्म को पुष्ट नहीं, अपितु नष्ट करने जा रहे हैं। अधिक दुःख तो तब होता है, जब हम देखते हैं कि ऐसा व्यवहार करनेवाले लोग अज्ञानता के कारण संभवत: यह भ्रम पाले रहते हैं कि वे इस प्रकार धर्म प्रभावना का कार्य कर रहे हैं। काश! हम समझ पायें कि हिंसा, असहिष्णुता, साधर्मी-अवात्सल्य, साधर्मी-निंदा का प्रत्येक कार्य नियम से धर्म की महती अप्रभावना का ही कारण होता है। ___ आप विज्ञ हैं। मुझे विश्वास है कि आप इस घटना को उपसर्ग समझते हुए समता-भाव से सहकर कर्म-निर्जरा का निमित्त बना लेंगे। दूसरे पत्र में आपने कुंडलपुर क्षेत्र पर अभी घटी दुर्घटनाओं के बारे में चिंता व्यक्त की है। क्षेत्र एवं बड़े बाबा के प्रति आपकी श्रद्धा के कारण आपकी चिंता स्वाभाविक है। तालाब में इन्दौर के यात्री बालक का असावधनीवश डूब जाने में किसी देवता की मंदिर | निर्माण के संबंध में रुष्टता की कल्पना कैसे की जा सकती है? बड़े बाबा के रक्षक-देवता को यदि मंदिर-निर्माण से नाराजगी हो तो निर्माण करनेवालों का अनिष्ट करना चाहिए था, अबोध निरपराध यात्री बालक का जीवन छीनकर उनका क्या प्रयोजन सिद्ध होता है? इसी प्रकार कार्यरत श्री रामधन की मृत्यु को भी देवकोपकृत कैसे माना जा सकता है? क्योंकि निर्माण-कार्य करने में बेचारे रामधन का क्या अपराध था? वह तो मंदिर-निर्माण के पक्ष-विपक्षसे निरपेक्ष केवल अपनी अजीविका के लिए कार्यरत था।देवताओं की सामर्थ्य और ज्ञान के बारे में संदेह नहीं किया जा सकता है। वे चाहें तो निर्माणकर्ताओं एवं निर्माणकार्य पर अपनी शक्ति का प्रयोग कर कार्य को सरलता से रुकवा सकते हैं। श्री रामधन की मृत्युका कारण आपने पत्र में ठीक लिखा है "उन्हें तो निर्माताओं की प्रमाद आर दोषपूर्ण योजना के कारण ऐसे ही अपने प्राणों की आहुति देते रहना पड़ेगी।"वास्तव में निर्माताओं के प्रमाद. असावधानी एवं त्रुटिपूर्ण व्यवस्था के कारण ही यह दुर्घटना घटी है और आगे भी दुर्घटनाओं की संभावना बनी रह सकती है। आपके द्वारा देवताओं के शाप को इन दो दुर्घटनाओं के कारण के रूप में कल्पना किया जाना मेरी समझ में सर्वथा निराधार है। बड़े बाबा की प्रतिमा को दैवी शक्तियों का संरक्षण तथा देवताओं की शापानुग्रह शक्ति की बात आपने लिखी है। उसको मान लेने पर एवं अब तक के निर्माण कार्य के परिप्रेक्ष्य में विचार करने पर मुझे तो ऐसा लगता है कि प्रतिमा के रक्षक देवताओं की इस नए विशाल मंदिर के निर्माण एवं बड़े बाबा के वहाँ स्थानांतरण में सहमति है। यदि इन रक्षक देवताओं को आपत्ति होती, तो वे अतुल दैवी-शक्ति-सम्पन्न देवता अबतक हुए निर्माण कार्य को नहीं होने देते। देवताओं की शक्ति के आगे यह मर्त्य अशक्त मानव कैसे कुछ कर सकने में समर्थ हो सकता है? अब तक की सभी परिस्थितियां यही घोषणा कर रही हैं कि बड़े बाबा स्वयं एवं उनकी प्रतिमा के रक्षक देवता यही चाहते हैं कि उस प्रतिमा की गरिमा के अनुकूल विशाल मंदिर के गर्भगृह में वह प्रतिमा विराजित हो और भक्त दर्शकों की बढ़ी हुई संख्या सुविधापूर्वक दर्शन-लाभ प्राप्तकर अपने परिणामों को विशुद्ध बनाए एवं बड़े बाबा के गुणगान गाए। __ आपके परामर्श को समुचित मूल्य प्रदान करते हुए आपसे निवेदन है कि आपस्वयं पधारकर समय-समय पर निर्माणकर्ताओं का मार्ग दर्शन करते रहें। आदर सहित, आपकास्नेहभाजन मूलचंदलुहाड़िया जून 2005 जिनभाषित 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524297
Book TitleJinabhashita 2005 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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