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________________ सुबह की चाय से लेकर रात के दूध तक हम सफेद चीनी (शक्कर) का प्रयोग करते हैं। तरह-तरह की मिठाईयाँ, बेकरी - उत्पाद, खीर आदि में या यूँ ही मीठा के रूप में फाँकने में भी चीनी का प्रयोग होता । एक तरह से देखें तो मीठे का अर्थ ही है चीनी । चीनी हमारी आहार चर्या का एक हिस्सा बन गयी है। बहुत ही कम प्रतिशत ऐसे लोग होंगे जो इस मीठे का प्रयोग न करते हों। आज के दौर में चीनी के विभिन्न प्रयोगों ने हमारे परम्परागत मीठे 'गुड़' आदि को बहुत पीछे छोड़ दिया है। क्या चीनी का इतना प्रयोग लाभकारी है ? फैसला स्वयं करें। आइये जानें इस चीनी के बारे में। भारत में चीनी मुख्यतः ईख (गन्ना) से बनायी जाती है। चूँकि भारत में गन्ने की खेती पर्याप्त मात्रा में होती है, अतः चीनी का उत्पादन भी खूब होता है। सरकारी एवं निजि स्तर पर अनेक चीनी मिलें चीनी का उत्पादन कर रही हैं। चीनी बनाते समय सल्फर का प्रयोग होता है। इसकी अधिक मात्रा मानव-शरीर में विभिन्न रोगों का कारक बनती है। नियमों का पालन न करना एवं जाँच के समुचित साधनों के अभाव में सल्फर की संतुलित मात्रा की जाँच हो ही नहीं पाती। चीनी बनाते समय गन्ने के गुण व पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। जैसे-जैसे गन्ने का रस सफेद होता जाता है, उसमें गर्मी बढ़ती जाती है। आहार एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञ सफेद चीनी को पोषण रहित खाद्य मानते हैं। एक मीठा - धीमा जहर : सफेद चीनी प्राकृतिक शर्करा हमारे शरीर को गर्मी देती है और मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करती है। यह शर्करा मीठे फलों, वनस्पति, सूखे मेवे आदि से सहज ही प्राप्त हो जाती है । प्रायः लोगों को भ्रम रहता है कि चीनी से शरीर में आवश्यक शर्करा की पूर्ति होती है । स्वास्थ्य की दृष्टि से चीनी को शरीर का शत्रु माना गया है। संतुलित आहार में इसका कोई स्थान नहीं है। इसमें • 22 जून 2005 जिनभाषित Jain Education International डॉ. श्रीमती ज्योति जैन न तो विटामिन्स हैं, न ही खनिज पदार्थ । केवल है तो वह है कार्बोहाइड्रेटस। दाँतों के लिए चीनी अत्यन्त हानिकारक है। दाँतों की अनेक बीमारियों में चीनी का बड़ा हाथ है। बच्चों के दाँतों के लिए चीनी नुकसानदेय है। चीनी कैलोरी बढ़ाती है, जो मोटापा बढ़ाती है। चीनी को प्राकृतिक शर्करा की अपेक्षा पचने में अधिक समय लगता है। चीनी में विद्यमान कार्बोहाइड्रेट्स असन्तुलित होकर अनेक विकार पैदा करते हैं, जो अनेक रोगों को जन्म देते हैं, जिसमें रक्तचाप, मधुमेह, स्नायु-शिथिलता, तनाव, आंतों के रोग आदि प्रमुख हैं। बदलते परिवेश और आधुनिक खानपान में सफेद चीनी का दिन-प्रतिदिन चलन बढ़ता ही जा रहा है। 'गुड़' आदि मीठे का प्रयोग कम होने लगा है, जबकि चीनी की अपेक्षा गुड़ बेहतर है। गुड़ में अपनी ही कुछ विशेषताएँ हैं, जो उसे गुणवान् बनाती हैं। आयुर्वेद के अनुसार- 'गुड़ शरीर को निरोगी बनाये रखने में सहायक है। यह हृदय, लीवर, त्वचा रोग आदि में लाभ तथा कफ, पित्त का नाश करता है। गुड़ का सेवन रक्ताल्पता को कम करता है। इसमें लौहतत्त्व भी पर्याप्त मात्रा में रहते हैं'। गुड़ को अनेक तरह से मीठे के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। बदलती जीवन शैली में आहार चर्या पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। चीनी के प्रयोग से जितना संभव हो महिलायें बचें, इस संबंध में आगे आयें, क्योंकि रसोई की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है तथा संतुलित व स्वास्थ्यप्रद भोजन बनाना व देना उनका दायित्व है । अतः, स्वास्थ्यप्रद भोजन लें, स्वयं स्वस्थ्य बनें और आनेवाली पीढ़ी को भी स्वस्थ बनायें । वीर देशना मुनिगण काम के साथ क्रोधादि कषायों को भी जीत लिया करते हैं । The mendicants-munis-master their passions such as sexual desires, along with anger. शिक्षक आवास कुन्दकुन्द जैन महाविद्यालय परिसर, खतौली 251201 (उ.प्र.) For Private & Personal Use Only संकलनकर्ता: मुनिश्री अजितसागर जी www.jainelibrary.org
SR No.524297
Book TitleJinabhashita 2005 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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