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________________ सिद्धचक्रविधान : प्रयोजन एवं फल पं. कपूरचन्द बरैया जैन-धर्म में कर्मों का विशद् वर्णन है। सामान्य से । नंदीश्वर है, जिसकी चारों दिशाओं में ५२ अकृत्रिम जिनालय कर्मों का तीन तरह से विभाजन किया गया है- (१) द्रव्य | हैं, जो अत्यंत भव्य, मनमोहक और बहुत विस्तारवाले हैं। कर्म, (२) भाव कर्म और (३) नोकर्म। द्रव्यकर्म पौद्गलिक एक-एक दिशा में १३-१३ जिनालय हैं। १३ जिनालयों की हैं, भावकर्म चेतनाश्रित राग-द्वेष मोहादि हैं तथा नोकर्म शरीरादि | संख्या इस प्रकार से है-एक अंजनगिरी, चार दधिमुख और हैं। द्रव्यकर्म भी आठ प्रकार हैं- चार घातिया और चार | आठ रतिकार हैं, जिनपर जिनालय बने हैं। इस प्रकार चारों अघातिया हैं। जो जीव के अनुजीवी गुणों को घाते वे घातियाँ दिशाओं में कुल संख्या ५२ (१३ x ४) हो जाती है। इन कर्म हैं, प्रतिजीवी गुणों की घात करनेवाले अघातिया हैं। जो जिनालयों में जो जिन-बिम्ब प्रतिष्ठित हैं, वे रत्नमयी हैं, ग्रहस्थपना त्यागकर मुनिधर्म अंगीकार करके निजस्वभाव- पद्मासन में ५००-५०० धनुषाकार हैं। (एक धनुष चार हाथ साधन द्वारा चार घातिया कर्मों का क्षय कर देते हैं, वे अहंत प्रमाण)। कान्ति चंद्र-सूर्य के तेज को भी लजानेवाली है, कहलाते हैं और कुछ काल पीछे जब चार अघातिया कर्मों | जो भव्यजीवों के वैराग्योत्पत्ति में निमित्तभूत है। उनके का भी विध्वंश हो जाता है, तब इस शरीर को भी छोड़कर | रुचिपूर्वक दर्शन करने से सम्यग्दर्शन तक प्राप्त हो जाए-ऐसी अपने उर्ध्वगमन-स्वभाव के कारण लोक के अग्रभाग में | विचित्र महिमा को धारण किये हुये हैं। चूँकि ढ़ाई द्वीप तक जाकर विराजमान हो जाते हैं, यह सिद्ध-अवस्था है। दोनों ही | ही मनुष्य जा सकते हैं, आगे नहीं, इस कारण यह सौभाग्य परमात्मा हैं। अन्तर केवल शरीर का है। शरीर-सहित होने | उन्हें नहीं मिल पाता। वहाँ तक पहुँचने की शक्ति तो इन्द्र के कारण अहँत को सकल-परमात्मा संज्ञा है और यही | और देवों में ही है, अत: उनके दर्शन कर वे ही अपना जन्म जीवनमुक्त अवस्था है। शरीर-रहित होने पर वे सदा निराकुल, | सफल करते हैं। मनुष्य तो केवल परोक्षरूप में भावना भाकर आनन्दमय, शुद्ध-स्वभाव को प्राप्त, निकल-परमात्मा हैं, | पुण्य कर्मों का सम्पादन करते हैं। जिनके ध्यान द्वारा अन्य भव्य जीवों को भी उनके समान अष्टाह्निका पर्व आठ दिन का होता है, यह सिद्धचक्रबनने की प्रेरणा मिलती है- ऐसे अहँत व सिद्ध ही हमारे | विधान भी आठ दिन का है, इसलिये प्रत्येक दिन एक पूजा उपास्य-देव हैं। करके इस विधान की समाप्ति की जाती है। पहले दिन आठ चक्र कहते हैं समूह को । जैन-धर्म के अनुसार | अर्ध्य से प्रारम्भ करते हैं, आगे के दिनों में दूने-दूने करते हुए सिद्ध एक नहीं, अनन्त हैं। जो उक्त विधि से अपने समस्त | अंतिम आठवें दिन १०२४ अर्घ्य चढ़ाते हैं। इस विधान की कर्मों का नाश कर देते हैं, वही सिद्ध हैं और ऐसे सर्व सिद्धों | महिमा है कि इसमें सभी मुख्य विधान गर्भित हैं; जैसे कर्मदहन के समूह का नाम सिद्धचक्र है। उसका यह मण्डल-विधान | विधान. चौसठ-ऋद्धि विधान, पंच-परमेष्ठी विधान, सहस्रनाम आदि। एक यह विधान ही ऐसा है जिसको भाव से करलेने इसमें जितने भी सिद्ध हुए हैं उन सबका गुणानुवाद | पर प्रायः उन सभी का फल मिल जाता है, जिनका इसमें है। वैसे तो इस मण्डल-विधान को चाहे जब रचाया जा | वर्णन है। इसी कारण मन्दिरों में लोग बड़ी श्रद्धा से इसमें सकता है, कोई काल का बंधन नहीं है, किन्तु अष्टाह्निका | रुचि लेते हैं और अपने को कृतकृत्य अनुभव करते हैं। महापर्व में ही अधिकतर इसकी विशेष प्रसिद्धि देखी जाती यों तो इस विधान को विशुद्ध भावों से करने का ही है। यह महा-पर्व आठ दिन का होता है, जिसे लोग संक्षेप में | प्रावधान है, किन्तु बहत से प्राणी लौकिक कामनाओं के अठाई भी कहते हैं। यह वर्ष में तीन बार आता है। वशीभूत होकर पाठ करते हुए देखे जाते हैं। उनकी यह कार्तिक फागुन साढ़ के, अंत आठ दिन माहिं। धारणा रहती है कि इससे हमें सर्व प्रकार की लौकिक सिद्धि नंदीश्वर सुर जात हैं, हम पू0 इह ठाहिं॥ मिल जाती है, जैसे 'श्रीपाल चरित्र' में मैनासुन्दरी ने इन्हीं दिनों यह विधान रचकर उसके गंधोदक से अपने पति कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ मास के अंतिम आठ | दिनों में नंदीश्वर द्वीप की पूजा की जाती है। लोक की रचना | श्रीपाल का कुष्ट रोग दूर किया था। यह उदाहरण देते हुए वे से विदित होता है कि इस मध्यलोक के आठवें द्रीप का नाम | भूल जाते हैं कि मैनाकुमारी तो सती थी, जैनधर्म में अटट जून 2005 जिनभाषित 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524297
Book TitleJinabhashita 2005 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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