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________________ बन सकें। इसीलिये उन्होंने ऐसा लिखा है सो ठीक ही है।। जिसकी चित्तवृत्ति अलंकृत हो गई, ऐसी वह देवी द्वीपान्तरों, स्वर्गों और पर्वतों पर स्थित जिन- चैत्यालयों की वंदना में प्रवृत्त हुई। जो जैसा होता है, वैसा ही बलबूते की प्ररूपणा करता है । यशस्तिलक में राजा यशोधर का चरित वर्णन करते हुये चंडमारी देवी के लिये अनेक पशु-युगल और मनुष्ययुगल को बलि चढ़ाने का वृत्तांत लिखा है। यह चंडमारी देवी कोई धातुपाषाण की बनी देवी की मूर्ति नहीं थीं, किन्तु देवलोक की कोई देवी थी । ऐसा यशस्तिलक चंपू उत्तरार्द्ध पृष्ठ ४१८ (निर्णयसागर प्रेस, बम्बई द्वारा प्रकाशित) के निम्न श्लोक से प्रगट होता है रत्नद्वयेन समलंकृतचित्तवृत्तिः, सा देवतापि गणिनो महमारचय्य । द्वीपान्तर - नग - जातजिनेन्द्रसद्म, वंदारुताऽनुमतकाम-परायणाऽभूत् ॥ अर्थ - उस समय वह चण्डमारी देवी भी सुदत्ताचार्य गणी की पूजा करके रत्नद्वय (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान) से हींग की डिब्बी में केसर आचार्य (विद्यासागरजी) महाराज ने पर्युषण पर्व के पहले आहारजी में एक छोटा-सा उदाहरण दिया थाएक व्यक्ति किसी के घर में मेहमान बन के गया। उनके यहाँ केसर का (केसरयुक्त) हलुवा बना था। वह उन (मेहमान) को बहुत अच्छा लगा। उन्होंने सोचा कि अपन भी अपने घर में ऐसा हलुवा बनायेंगे। उन्होंने ( मेजबान से ) पूछ लिया कि आपने हलुवा कैसे बनाया था? मेजबान ने बता दिया कि ये ये चीजें हमने मिलाई थीं और ऐसे बनाया था, इसमें केसर भी डाली थी इसलिए ये इतना स्वादिष्ट बना। ठीक है, मेहमान ने सोचा, अपन भी बनायेंगे। उन्होंने अपने घर में बनाया लेकिन कुछ मजा नहीं आया। अब क्या करें? कैसे करें ! सोचते रहे । वह तो एक दिन वे (मेजबान) रास्ते में मिल गये तो उनसे पूछ लिया कि- 'आपके घर में जो केसर का हलुवा बना था बड़ा स्वादिष्ट था लेकिन हमने (अपने घर में) बनाया तो ढंग का ही नहीं बना। कभी हमारे यहाँ आइये तो बनाकर बता दीजिए। ' बोले - 'ठीक है, अभी चले चलते हैं, अभी देखते हैं कि आपने क्या डाला था? कैसे किया था?' देखा जाकर के, सब एकदम ठीक था। पूछा - 'केसर डाली थी ?" 'हाँ, बिल्कुल, वह बढ़ियावाली लाये थे, वही डाली थी । ' उन्होंने फिर पूछा - 'काहे में रखी थी केसर ?' 'काहे में रखी थी ! डिब्बी में रखी थी ।' 12 दिगम्बर जैनागम के अनुसार देवलोक की कोई भी देवी मांस-मदिरा का सेवन नहीं करती। तब फिर उक्त चंडमारी देवी अपने लिये जीवों की बलि किस अर्थ चढ़वाती थी? ऐसा करने का उसका अन्य कारण क्या था जिसका स्पष्टीकरण सोमदेव ने कथा भर में कहीं भी क्यों नहीं किया? कथा पढ़नेवाले को तो यही प्रतिभासित होता है कि जैनधर्म में भी देवलोक की देवी मांस खाती है और तदर्थ जीवों की बलि चढ़वाती है। 'लाना जरा वह डिब्बी' - उन्होंने कहा । केसर जिस डिब्बी में रखी थी वह डिब्बी लाये। अब समझ में आ गया कि गड़बड़ कहाँ है? इस डिब्बी में पहले क्या रखा था? ' हींग ।' हाँ, ये बात तो आप सबको मालूम है कि वह केसर क्यों बिगड़ गई? क्योंकि उस डिब्बी में पहले बदबूदार हींग रखी थी। यदि इन दस दिनों तक हम धर्म का श्रवण करेंगे और जिस डिब्बी में हम धर्म को रखेंगे वह डिब्बी पहले से ही कषायों की बदबू से भरी होगी तो धर्म का आनन्द नहीं आयेगा इतनी-सी बात अभी तक हमें समझ क्यों नहीं आई? चलो अभी तक नहीं आई तो कोई बात नहीं, आज आ गई हो अगर तो भी अपना काम चल जायेगा। हमें ऐसी ही तैयारी करनी चाहिए। 'गुरुवाणी' ( मुनिश्री क्षमासागर जी के प्रवचन) से साभार) जून 2005 जिनभाषित इत्यादि बातों से सोमदेव मूलसंघ के ऋषि मालूम नहीं होते हैं। अत: उनका पंचामृताभिषेक लिखना माननेयोग्य नहीं है । 'जैन निबन्ध रत्नावली' से साभार Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524297
Book TitleJinabhashita 2005 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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