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समृद्धि सृजन से होगी, संहार से नहीं (मण्डला म. प्र.में गजरथ महोत्सव के अवसर पर दिया गया प्रवचन)
मुनि श्री समतासागर जी भारतीय संस्कृति करुणा प्रधान संस्कृति है । करुणा की | हमारा देश स्वतंत्र हुआ। हम प्रगति के पथ पर निरंतर कहानी यहां की माटी और पानी में घुली मिली है। राम, | आगे बढ़ रहे हैं। हम सभी अपने देश को समृद्ध और खुशहाल महावीर, कृष्ण, गौतम, नानक और गांधी के देश में सदा-सदा | देखना चाहते हैं। विचारणीय बात तो यह है कि देश की समृद्धि से प्राणियों की रक्षा को धर्म कहा गया है। सर्व धर्मों की सार | कैसे हो? आज देश को समृद्ध बनाने के लिए जिस नीति का अहिंसा भारतीय संस्कृति की आत्मा है। विचार, वाणी और | निर्धारण हो रहा है, प्रोत्साहन/बढ़ावा मिल रहा है वह नैतिकता, कर्म से किसी प्राणी को कष्ट पहुंचाना अहिंसा को स्वीकार नहीं मानवता अथवा पर्यावरण रूप किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। है। 'जियो और जीने दो' की श्वांस लेनेवाली अहिंसा जब तक | वस्तु-विनिमय का नाम व्यापार है, जीवित पशुओं को बेचनाधरती पर है, तभी तक देश का अस्तित्व है। देश में जिस तरह
खरीदना अथवा मरे हुए जानवर के अवयवों का उपयोग करना, स्वतंत्रता से जीने और रहने का अधिकार हमें है, उसी प्रकार | | यहां तक व्यापार को स्वीकारा जा सकता है, किन्तु पशु-पक्षियों जीने और रहने का अधिकार पशुओं को भी है। पशु भी हमारे | को मारकर उनका मांस निर्यात करना यह कौन-सा व्यापार है समान सुख-दुःख का अनुभव करते हैं, प्राण/संवेदना उनके और पाप, हिंसा, हत्या को कभी व्यापार नहीं माना जा सकता। अंदर भी है। यह बात अलग है कि हमारे पास सुख-दुःख बीज बोया जाएगा तो धरती हरी होगी, देश खुशहाल होगा व्यक्त करने के लिए जुबान है, भाषा है, किन्तु पशु जुबान से । और पशु का कत्ल होगा तो धरती रक्तरंजित होगी, देश कंगाल रहित हैं, उनके पास हमारे जैसी भाषा नहीं है। यह हमें समझना होगा।कषक और बधिक के कर्म में भारी अंतर है। कृषि और चाहिए कि पशु बेजुबान तो हैं, लेकिन बेजान नहीं। हमारी | कत्ल को कभी एक दर्जा नहीं दिया जा सकता।एक में सृजन जुबान और जवानी तो इसी में सार्थक है कि हम पशुओं की | है और एक में संहार । देश की समृद्धि सृजन से होगी, संहार से पीड़ा को पहचानें और उसकी रक्षा करें।
नहीं। अतः देश की समृद्धि के लिए कृषि और कारखानों की जैनतीर्थंकर श्री नेमिनाथ ने बाड़ी में घिरे पशुओं का | जरूरत है, कत्लखानों की नहीं। क्योंकि कत्लखाने, कत्लखाने करुण क्रन्दन सुनकर उनकी रक्षा के लिए सारा जीवन समर्पित | हैं, कारखाने नहीं। कत्लखानों को कारखानों का दर्जा दिया ही कर दिया। पशु-बलि प्रथा बंद कराने के लिए महावीर ने तो | नहीं जा सकता। पर स्वतंत्र भारत की अंधी सरकारें कत्लखानों करुणा की क्रांति ही खड़ी कर दी थी। गायों की रक्षा के लिए | को भी कारखाने मानकर चला रही हैं। तभी तो आजादी के नारायण श्रीकृष्ण ने समूचा गोवर्धन पर्वत ही ऊपर उठा लिया। समय भारत भूमि पर मात्र तीन सौ कत्लखाने थे, परन्तु बढ़कर वाण-विद्ध कोंच युगल की पीड़ा ने बाल्मीकि में रामत्व जगा आज वह 3631 की संख्या में पहुंच गये हैं। यह वैध कत्लखानों दिया था और उन्हें आद्य रामायण के रचयिता महर्षि बाल्मीकि की संख्या है, अवैध का तो पता ही नहीं। आंकड़ों से पता बना दिया। राजकुमार सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) और देवदत्त का | चलता है कि सन् 1947 आजादी के स्वर्णिम प्रभात में हमारे संदर्भ मन को झकझोरनेवाला है। देवदत्त ने हंस को घायल कर देश में पशुओं की संख्या 36 करोड़ थी तथा मनुष्यों कीआबादी दिया था, राजकुमार सिद्धार्थ ने उसे बचाया। अब हंस पर मात्र 27 करोड़ थी। जबकि आज हमने आजादी के पचास वर्ष अधिकार किसका? यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ। उनके पिताश्री पार कर लिये हैं तब मनुष्यों की आबादी लगभग एक अरब है महाराज शुद्धोधन ने न्याय दिया कि मारनेवाले से बचानेवाला । जबकि पशु संपदा घटकर मात्र 10-11 करोड़ रह गई है। यह बड़ा होता है, इसलिए इस पर सिद्धार्थ का अधिकार है। एक सब क्यों हुआ? सिर्फ विदेशी मुद्रा पाने के लोभ में? कहा जाता कबूतर के प्राणों की रक्षा में महाराजा शिवि ने अपना सारा शरीर है कि भारत सोने की चिड़िया था तो मैं कहता हूं कि भारत था ही तुला पर चढ़ा दिया था। यह सब क्या संदेश देते हैं ? विचार | नहीं आज भी सोने की चिड़िया है। अपने देश की चिड़िया करने की जरूरत है। हिन्दुस्तान के प्राणसाधक माने जाने वाले (प्राणी संपदा) की रक्षा कर लो तो बस भारत आज भी सोने की राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि 'किसी भी राष्ट की चिड़िया है। हम हैं कि सोने (विदेशी मुद्रा) के लोभ में अपने महानता और उसकी नैतिक प्रगति का मापदंड पशुओं के प्रति देश की चिड़िया (पशु संपदा) का संहार कर रहे हैं। आज देश उसका व्यवहार है' इस संदेश-वाक्य से हम अपने देश की | के सभी महानगरों में निर्यातोन्मुख बड़े-बड़े कत्लखाने खल गये प्रगति का अंदाज लगा सकते हैं।
हैं। दिल्ली में ईदगाह, बम्बई में देवनार, हैदराबाद में अलकबीर,
- मई 2005 जिनभाषित
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