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________________ ग्रन्थ समीक्षा ज्ञान के हिमालय ब्र. प्रदीप शस्त्री 'पीयूष' सौ वर्ष पूर्व एक विद्वान पंडित जी ने लिखा था, 'वे | बांधे रहती है। संत शिरोमणि उपाध्याय श्री के जीवन के 43 गुरु मेरे मन बसें, बंदौं आठों याम।' शायद इसी पंक्ति से | वर्षों की झलक ऐसी समाहित की गई है जैसे लेखक हर प्रतिध्वनित होकर वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश 'सरल' गत | पल समीप खड़ा रहकर देखता रहा हो, सो यह ग्रंथ चरणानुयोग दो दशकों से अपने हृदयकक्ष में गुरु को विराजित कर, | के अंतर्गत चरित्र ग्रन्थ के रूप में प्रतिपादित है और प्रथमानुयोग केवल गुरुओं/संतों के 'जीवन चरित' लिख रहे हैं। सन् | के श्रेष्ठ दायरे में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। 1984 में उन्होंने जैन समाज के शिरोमणि-संत आचार्य श्री अक्षर-अक्षर पिरोकर आदरणीय लेखक श्री 'सरल' विद्यासागर जी का जीवन चरित लिखकर साहित्यकारों के | | ने महान श्रम किया है, जिसका मूल्यांकन केवल विद्वर्ग ही मध्य अपनी छवि कोहिनूर हीरे की तरह अनमोल कर ली कर सकता है। मैं उनकी लेखनी को नमन करता हूँ, जो है। वे अब तक देश के आठ अति विशेष दिगम्बर संतों का महान संतों के 'चरित्र चित्रण' में अहर्निश तत्पर मिलती है। 'चरित' लिख चुके हैं। कठिन बात यह है कि उनका नायक महान कथाशिल्पी को बधाई और आदर प्रदान करता है जो मौन साधक होता है, अतः ऐसे में लेखनी की गति रुकी रह 'हिमालय' के आठ रूप विविधता के साथ पाठकों तक जाने का खतरा रहता है, किन्तु सरल जी की लेखनी ने पहुँचा चुके हैं। क्षणभर भी विराम नहीं लिया, सतत चलती रही । प्रस्तुत पुस्तक का नाम - ज्ञान के हिमालय सम्प्रति उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी की जीवनी 'ज्ञान | लेखक - श्री सुरेश सरल के हिमालय' लिखकर उन्होंने न केवल स्वतः को, बल्कि | पृष्ठ संख्या - 300 सजिल्द अपने नगर जबलपुर को 'जीवनचरितों' के हिमालय पर | साइज - 19X 25 से.मी. पहुंचा दिया है । ग्रन्थ में विदुषी ब्र. अनीता शास्त्री उन्हें 'दो | मूल्य - दो सौ रुपये मात्र शब्दों' के माध्यम से अतिश्रेष्ठ कथाकार निरूपित करती हुई | प्रकाशक - आचार्य शंति सागर 'छाणी' उनकी लेखन शैली को कालजयी बतलाती हैं, कृति तो है स्मृति ग्रन्थमाला, बुढ़ाना (उ.प्र.) ही कालजयी। लेखक ने गाथा में अनेक उपशीर्षकों को उजास देते हुए कथा को ऐसी गति प्रदान की है जो पाठक को लगातार संजीवनी नगर, जैन मंदिर के सामने, जबलपुर म.प्र. आर्यिका पूर्णमति जी का ससंघ अजमेर में पदार्पण अजमेर नगर के महान् पुण्योदय से परमपूज्य संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की परम शिष्या विदषि आर्यिका रत्न १०५ श्री पूर्णमति माताजी ससंघ का मंगल पदार्पण दिनांक २.२.२००५ को | ४.२.२००५ को श्री १००८ शान्तिनाथ जिनालय राजभवन के पास सिविल लाइन्स अजमेर में शिला स्थापना समारोह अत्यन्त हर्षोल्लास प्रभावनापूर्वक आर्यिका ससंघ के पावन सान्निध्य में सुसम्पन्न हुआ। इसके पश्चात् आर्यिका संघ ने सर्वोदय कॉलोनी में धर्मगंगा प्रवाहित की। पार्श्वनाथ कॉलोनी आतेड़ रोड, नव निर्मित भव्य जिनालय परिसर में आर्यिका संघ ने जो ज्ञानार्जन कराया, अत्यन्त परम मार्मिक प्रवचनों से हृदय परिवर्तन किया, अवर्णनीय है। वर्तमान में आर्यिका संघ का प्रवास पंचशील नगर में है। श्रोताओं की उपस्थिति दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। निश्चित ही धर्मनगरी अजमेर में धर्मानुरागी अत्यन्त भाग्यशाली हैं, जिन्हें अनायास ऐसे परम पावन, परम प्रभावी, कुशलतम प्रवचनकार पूर्णमति माताजी ससंघ का प्रवचन एवं अन्य धर्मिक कार्यक्रमों में भाग लेने का सुअवसर प्राप्त है। भीकमचन्द पाटनी, स. मंत्री) -अप्रैल 2005 जिनभाषित 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524295
Book TitleJinabhashita 2005 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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