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गतांक से आगे
जैन और हिन्दू
डॉ. ज्योति प्रसाद जैन हिन्दू धर्म की इन बातों में से एक भी बात ऐसी नहीं । प्रमाणित कर सकते हैं कि सभी जैनी वैश्य नहीं हैं अपितु है जो जैन धर्म में मान्य हो और न जैन धर्म का इस हिन्दू | उनमें सभी जातियों एवं वर्गों के व्यक्ति हैं । मद्रास हाईकोर्ट धर्म के उपरोक्त किसी भी भेद-प्रभेद, दर्शन, सम्प्रदाय, | के चीफ जज (प्रधान न्यायाधीश) मान उपसम्प्रदाय आदि में समावेश होता है । अतएव हिन्दू धर्म | शास्त्री के अनुसार 'यदि इस प्रश्न का विवेचन किया जाए तो के अनुयायी हिन्दुओं का जैन धर्म के अनुयायी जैनों के | मेरा निर्णय यही होगा कि आधुनिक शोध खोज ने यह साथ उसी प्रकार कोई एकत्व नहीं है जैसा कि बौद्धों, पारसियों, | प्रमाणित कर दिया है कि जैन लोग हिन्दू डिसेन्टर्स नहीं हैं, यहूदियों, ईसाईयों, मुसलमानों, सिक्खों आदि के साथ नहीं | बल्कि यह कि जैन धर्म का उदय एवं इतिहास उन स्मृतियों है, यद्यपि एत्तद्देशीयता को एवं सामाजिक सम्बन्धों एवं | एवं टीका ग्रन्थों से बहुत पूर्व का है जिन्हें हिन्दू न्याय (कानून) संसर्गों की दृष्टि से उन सबकी अपेक्षा भारतवर्ष के जैन एवं | एवं व्यवहार का प्रमाणस्त्रोत मान्य किया जाता है..... वस्तुतः हिन्दू परस्पर में सर्वाधिक निकट हैं । दोनों ही भारत मां के | जैन धर्म न वेदों की प्रमाणिकता को अमान्य करता है जो लाल हैं, दोनों के ही सम्बन्ध सर्वाधिक चिरकालीन हैं, इन | हिन्दू धर्म की आधारशिला हैं, और उन विविध संस्कारों की दोनों में से किसी के भी कभी भी कोई स्वदेश बाह्य | उपादेयता को भी, जिन्हें हिन्दू अत्यावश्यक मानते हैं, (एक्स्ट्रा देरिटोरियल) स्वार्थ नहीं रहे, जातीय, राष्ट्रीय, | अस्वीकार करता है।' (आल इंडिया लॉ रिपोर्टर, १९२७, राजनैतिकएवं भौगोलिक एकत्व दोनों का सदैव से अटूट | मद्रास २२८) और बम्बई हाईकोर्ट के न्यायाधीश रॉगनेकर रहा है, दोनों ही देश की समस्त सम्पति-विपत्तियों में समान | के निर्णयानुसार यह बात सत्य है कि जैन जन वेदों के रूप से भागी रहे हैं और उसके हित एवं उत्कर्ष साधन में | | आप्तवाक्य होने की बात को अमान्य करते हैं और मृत समान रूप से साधक रहे हैं । कतिपय अपवादों को छोडकर | व्यक्ति की आत्मा की मुक्ति के लिए किए जाने वाले अन्त्येष्टि इन दोनों में परस्पर सौहार्द भी प्रायः बना ही रहा है। संस्कारों, पितृतर्पण,श्राद्ध, पिण्डदान आदि से सम्बंधित .. इस वस्तुस्थिति को सभी विषेशज्ञ विद्वानों ने और | ब्राहमणीय सिद्धान्तों का विरोध करते हैं । उनका ऐसा कोई राजनीतिज्ञों ने भी समझा है और मान्य किया है । प्रो0 रामा | विश्वास नहीं है कि ओरस या दत्तक पुत्र पिता का आत्मिक
आयंगर के शब्दों में जैन धर्म. बौद्ध धर्म अथवा | हित (पित-उद्धार आदि) करता है । अन्त्येष्टि के संबंध में ब्राहमण धर्म (हिन्दू धर्म) से विसृत तो है ही नहीं, वह | भी ब्राह्मणीय हिन्दुओं से वे भिन्न हैं और शवदाह के उपरान्त भारतवर्ष का सर्वाधिक प्राचीन स्वदेशीय धर्म रहा है, (जैन | (हिन्दुओं की भाँति) कोई क्रियाकर्म आदि नही करते । यह गजट, भा० १६,पृ० २१६) प्रो0 एफ0 डबल्यू0 टामस के | सत्य है, जैसा कि आधुनिक अनुसंधानों ने सिद्ध कर दिया अनुसार 'जैन धर्म ने हिन्दू धर्म के बीच रहते हुए भी प्रारंभ | है, कि इस देश में जैन धर्म ब्राह्मण धर्म के उदय के अथवा से वर्तमान पर्यन्त अपना पृथक एवं स्वतन्त्र संसार अक्षुण्ण | उसके हिन्दू धर्म में परिवर्तित होने के बहुत पूर्व से प्रचलित बनाए रखा है।' (लिगेसी आफ इंडिया, पृ० २१२) 'कल्चरल | रहा है । यह भी सत्य है कि हिन्दुओं के साथ,जो कि इस हेरिटेज आफ इंडिया' सीरीज की प्रथम जिल्द (श्री रामकृष्ण | देश में बहुसंख्यक रहे हैं, चिरकालीन निकट सम्पर्क के शताब्दी ग्रन्थ) के पृ० १८५-१८८ में भी जैन दर्शन का हिन्दू कारण जैनों ने अनेक प्रथाएँ और संस्कार भी जो ब्राहमण दर्शन जितना प्राचीन एवं उससे स्वतंत्र होना प्रतिपादित | धर्म से संबंधित हैं तथा जिनका हिन्दू लोग कट्टरता से किया है । भारतीय न्यायालयों में भी हिन्दू-जैन प्रश्न की | पालन करते हैं, अपना लिए हैं (आल इंडिया लॉ रिपोर्टर, मीमांसा हो चुकी है । मद्रास हाईकोर्ट के भूतपूर्व जज तथा | १९३९ बम्बई ३७७), स्व0 पं0 जबाहरलाल नेहरू ने भी विधान सभा के सदस्य टी0 एन0 शेषागिरी अय्यर ने जैन | अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'डिस्कवरी आफ इंडिया' में लिखा है धर्म के वैदिक धर्म जितना प्राचीन होने की संभावना व्यक्त | कि जैन धर्म और बौद्ध धर्म निश्चय से न हिन्दू धर्म हैं और न करते हुए यह मत दिया था कि जैन लोग हिन्दू डिसेन्टर्स | वैदिक धर्म भी, तथापि उन दोनों का जन्म भारतवर्ष में हुआ (हिन्दू धर्म से विरोध के कारण हिन्दुओं में से ही निकले हए | और वे भारतीय जीवन, संस्कृति एवं दार्शनिक चिन्तन के सम्प्रदायी) नही हैं और यह कि वह इस बात को पूर्णतया
-अप्रैल 2005 जिनभाषित 13
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