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इस चतुर्थ प्रकार के स्नान से भी अधिक आनन्द और शान्ति की प्राप्ति किसी गहरे जल के भीतर डुबकी लगाने में मिलती है। गहरे पानी में लगाई गई थोड़ी सी देर की डुबकी से मानो शरीर का सारा सन्ताप एकदम निकल जाता है, और डुबकी लगाने वाले का दिल आनन्द से भर जाता है ।
उक्त पाँचों प्रकार के स्नानों में जैसे शरीर का सन्ताप उत्तरोत्तर कम और शान्ति का लाभ उत्तरोत्तर अधिक होता जाता है, ठीक इसीप्रकार से पूजा, स्तोत्र आदि के द्वारा भक्त या
आराधक के मानसिक सन्ताप उत्तरोत्तर कम और आत्मिक शान्ति का लाभ उत्तरोत्तर अधिक होता जाता है, ठीक इसी प्रकार से पूजा, स्तोत्र आदि के द्वारा भक्त या आराधक के मानसिक सन्ताप उत्तरोत्तर कम और आत्मिक शान्ति का लाभ उत्तरोत्तर अधिक होता है। स्नान के पाँचों प्रकारों को पूजा-स्तोत्र आदि पाँचों प्रकार के क्रमशः दृष्टान्त समझना चाहिए।
धार्मिक समारोहों में हाथियों के उपयोग पर
श्रीमती मेनका गाँधी की चिन्ता
विश्व में भारतीय और अफ्रीकी हाथियों की दो जातियाँ हैं । भारतीय हाथियों का अस्तित्व तेजी से समाप्त हो रहा है। अनुमानत: 20 हजार से कम हाथियों की संख्या भारत में रह गई है। इसका बहुत बड़ा कारण हाथी का दाँत है। हाथी के दाँतों की मूर्तियाँ और कड़ों के निर्माण के कारण हजारों की संख्या में हाथी मार दिये जाते T
बढ़ते हुए मानवीय आवासों के कारण हाथियों का स्वाभाविक प्राकृतिक आवास समाप्त हो चुका है, अतएव वे गाँवों में आवारा घूमते आते हैं और ग्रामीणों द्वारा जान से मार दिये जाते हैं।
बच्चा-हाथियों को मानव समाज द्वारा चुरा लिया जाता है। उन्हें लट्ठा उठाने, उत्सव, मन्दिर कार्यक्रम, जुलूसों चुनाव प्रचार, प्रदर्शनकारी दौड़, पीठ पर सवारी और चिड़ियाघरों में प्रदर्शन के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। इस काम के लिए उन्हें जंजीरों से बाँधा जाता है, भूखा रखा जाता है, मारा जाता है। भिक्षावृत्ति अधिनियम के अनुसार नगर में प्रदर्शन के लिए किसी भी जानवर का उपयोग करना गैर कानूनी है।
दुर्भाग्य से दिगम्बर जैन समुदाय द्वारा अपने धार्मिक जुलूसों में इनका नियमित रूप से उपयोग किया जाता यह कार्य गैर कानूनी ही नहीं, अनैतिक भी है।
'श्रावकाचार संग्रह, भाग-४ से साभार '
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जिन हाथियों को जुलूस में ले जाया जाता है उससे उनका भारी शोरगुल और अनियंत्रित भीड से गहरा मानसिक उत्पीड़न होता है। भीड़ द्वारा जुलूस में आतिशबाजी, बैण्ड बाजे, ऊँचे स्वर के संगीत से हाथी विचलित भी हो जाते हैं । लेकिन महावत के आतंक के डर से हाथी बताये गये काम को करने के लिए मजबूर हो जाता है। जुलूसों में प्रायः उन्हें भोजन नहीं दिया जाता, ऊबड़-खाबड़ लम्बे रास्तों में उन्हें चलने के लिए मजबूर किया जाता है तथा पानी तक के लिए नहीं पूछा जाता। विषैले पेण्ट्स से उनके मुखमण्डल को सजाया जाता है । अनेक हाथी इन्हीं कारणों से या तो समय से पूर्व मर जाते हैं अथवा पागल हो जाते हैं। हाथियों का मालिक इन घटनाओं को महज व्यवसायिक बात मानता वास्तव में सारा दायित्व उन लोगों पर है जो समारोहों के लिए हाथियों को किराये पर लेते हैं ।
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1960 के पशु अत्याचार निषेध अधिनियम के अनुसार किसी भी जानवर को आतंकित करना गैर कानूनी है। जैन लोग धर्म से अहिंसावादी होते हैं। उनसे यह आशा की जाती है कि धार्मिक जुलूसों में वे हाथियों के प्रति क्रूर रवैया नहीं अपनायेंगे। सच्चाई तो यह है कि जैन धर्म को सादगीवाला धर्म माना जाता है। अब वह भी हिंसा जैसी बुराइयों को पनाह देने वाला हो गया है। जैन समुदाय को हाथी किराये पर लेने की बजाय उनके मालिकों के विरुद्ध एफआईआर दाखिल करना चाहिए। क्या आप दिगम्बर जैन की प्रत्येक इकाई से इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए कह सकते हैं। हाथियों को प्रताड़ित करने की प्रक्रिया जैन समुदाय और उसके आदर्श सिद्धांतों के विरुद्ध है। कृपया इस बारे में सहयोग अवश्य दें।
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ह. - मेनका गाँधी " जैनगजट " 17 फरवरी 2005 से साभार
•अप्रैल 2005 जिनभाषित
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