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________________ के शिष्य ब्र. डॉ. रोहित भैया के निर्देशन में भाग्योदय तीर्थ स्थित 1008 चन्द्रप्रभु जिनालय में विश्वशान्ति के उद्देश्य को लेकर 8 फरवरी से 16 दिवसीय शांति विधान शुरू हो गया है। इन पुण्य दिनों में ही दिनांक 13 फरवरी से 20 फरवरी 2005 तक भाग्योदय तीर्थ में एक विशाल शिविर का आयोजन भी किया जा रहा है । विधान का समापन 24 फरवरी 2005 पूर्णिमा को पूर्णाहुति के साथ होगा । सगोत्रीय विवाह का वैज्ञानिक सच पुरातन काल से यह मान्यता रही है कि एक गोत्रीय परिवार में विवाह संपन्न न हो तो बेहतर है। इसका आधार वह खून ही होता है जो इसान की धमनियों में प्रवाहित होता है । यह वैज्ञानिक सच भी है कि आनुवंशिकता व्यक्ति के खून में शामिल रहती है। समान गोत्र वालों को भाई-बहन के रिश्ते में बांधा जाता है। इसलिए एक ही गोत्र में विवाह नहीं होते। समाज ने विवाह के कुछ नियम-संयम तय किए हैं। जैसे कि एक ही जाति में विवाह ज्यादा अच्छे माने जाते हैं, इससे लड़की और लड़के में अपनी जाति का गौरव बना रहता है। आपस में टकराहट नहीं होती । प्रेम विवाहों की असफलता की वजह से इस विचार को और बल मिला है। इसी तरह समानगोत्रीय विवाहों के सामने भी सामाजिक समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं। एक ही जीन और खून की समानता की वजह से कभी-कभी संतान सुख से भी वंचित रह जाना पड़ता है या फिर उनमें शरीरिक रोग पनपने लगते हैं, जो एक ही बल्ड ग्रुप या एक ही जीन होने की वजह से होते हैं। दूध में दूध मिलाने से उसके परिमाण में तो वृद्धि हो सकती है, लेकिन उसके परिणाम में कुछ हासिल नहीं होता। जब उसमें दही मिला दिया जाता है तो उसके बिलोने से मक्खन की प्राप्ति होती है। वैज्ञानिक उदाहरण भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। जैसे- आक्सीजन और हाइड्रोजन की यौगिक क्रिया से ही जल मिलता है। जीव हो या पेड़-पौधे, उनके विकास की प्रक्रिया आपस की मिश्रण क्रिया से ही संभव है। मिट्टी, जल, आकाश, वायु और अग्नि यानी पंचतत्त्व इस विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । समानगोत्रीय विवाह से बचने की सलाह इसलिए दी जाती है, ताकि एक ही जीन और खून की तासीर के परिणामों से दूल्हा और दुल्हन को बचाया जा सके। आचार्य प्रभाकर मिश्र Jain Education International व प्रेरणा से संचालित 'भा. दि. जैन प्रशा. प्रशि. संस्थान' के ४० प्रशिक्षणार्थियों में से, प्री में उत्तीर्ण २२ प्रशिक्षणार्थी मुख्य परिक्षा में प्रविष्ठ होकर, १० प्रशिक्षणार्थियों ने साक्षात्कार हेतु चयन सूची में स्थान प्राप्त कर प्रशंसनीय सफलता अर्जित की है। इन उत्तीर्ण प्रशिक्षणार्थियों में से क्रमशः जिनेन्द्र, अनुराग, सतीश, सतेन्द्र, मनीष, नीलेश, आलोक, मनीष, हेमंत एवं कु. सरिता जैन हैं। संस्थान डायरेक्टर अजित जैन एवं अधीक्षक मुकेश सिंघई द्वारा बताया गया है कि संस्थान की नियमित प्रशिक्षण व्यवस्था, प्रबंध समिति का सक्रिय सहयोग, प्रशिक्षण की लगन तथा गुरु आशीष का परिणाम ही है कि संस्थान प्रगति के पथ पर है। इस संदर्भ में संस्थान के प्रशिक्षण की सृजनात्मकता एवं सक्रियता का प्रमाण है कि संस्थान के प्रशिक्षणार्थियों की लगातार पहल करने पर, कोटा एक्सप्रेस का नाम 'दयोदय एक्सप्रेस' करना स्वीकृत किया गया है। संस्थान प्रधानमंत्री श्री नरेश चंद्र गढ़वाल ने प्रशिक्षण के विकास हेतु, हर संभव सहयोग देने का प्रबल आश्वासन दिया है। अजीत जैन (एडवोकेट) अद्भुत जानकारियाँ • दक्षिण भारतीय राग शंकराभरण सुनने से पागलपन ठीक हो जाता है । • • छत्तीसगढ मुख्य परीक्षा में १० उत्तीर्ण जैनाचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीष • • • हँसाने वाला विद्यार्थी मूर्ख नहीं होता । मुस्कान के वक्त चेहरे की १४ माँस पेशियाँ खिंचती हैं। चेहरा उदास हो तब ७४-२-७२ माँस पेशियाँ खिंचाव में आ जाती हैं ' राग दरबारी के श्रवण से सिरदर्द में आराम होता है। गिलहरी शुद्ध शाकाहारी नहीं होती । ध्यान के लिये श्रेष्ठ समय रात्रि २ बजे से प्रातः ८ बजे तक है। सामान्यतः महापुरुषों की जन्म कुण्डली में ४,८,९ एवं १२ लग्नें होती हैं । भारतीय समयानुसार पूर्णाहार का श्रेष्ठ काल दिन १० बजे से २ बजे तक है। फोन पर सबसे अधिक बोला जाने वाला शब्द 'मैं' है । हृदय रोगी मैं शब्द का सर्वाधिक प्रयोग करते हैं। For Private & Personal Use Only -फरवरी-मार्च 2005 जिनभाषित 47 www.jainelibrary.org
SR No.524294
Book TitleJinabhashita 2005 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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