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________________ महिमा को उजागर करते हुए नगर-नगर में रात्रिकालीन पाठशालाएँ । प्रारंभ करवाईं। स्याद्वादमहाविद्यालय काशी, के अलावा अनेकों विद्यालयों की न सिर्फ स्थापना करवाई अपितु उनके सम्यक् संचालन हेतु आर्थिक संसाधन जुटवाने के लिए समाज को प्रेरित करते रहे । वर्णी जी द्वारा स्थापित इन विद्यालयों से विद्वानों की एक धुरंधर टीम तैयार हुई। जिसने समाज में जनचेतना जाग्रत करने का अच्छा कार्य किया। अपने जीवन के अंतिम समय तक इन ज्ञानरथों के संचालन की प्रेरणा देते रहे । आवश्यकता है कि वर्णी जी द्वारा स्थापित इन विद्यालयों को गति देते रहें । 6. कुशलसमाज सुधारक : अज्ञानता एवं रूढ़ियों से ग्रसित समाज में वर्णी जी ने एक कुशल समाज सुधारक के रूप में कार्य किया है। अनेक पीढ़ियों से उपेक्षित अनेक परिवारों को समाज में सम्मिलित किया। इस प्रकार की अनेकों घटनाओं का उल्लेख मेरी जीवन गाथा में दिया हुआ है। 7. उपेक्षित नारी समाज के उन्नायक : वर्णी जी के समय में नारी समाज की उपेक्षा बहुत थी। शिक्षा के क्षेत्र में नारी समाज को कोई स्थान नहीं था। मंदिरों में शास्त्र स्वाध्याय भी महिलायें नहीं कर सकती थीं। वर्णी जी ने इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य किये। आपने प्रवचनों में कहा - 'एक सुशिक्षित, सभ्य, सदाचारिणी, धर्मपरायण माँ अपने बच्चों में जो संस्कार दे सकती है, उन संस्कारों को सौ शिक्षक भी मिलकर नहीं दे सकते हैं। जिस कार्य को करने में राज्य सत्ता भी हार मानती है उस कार्य को सदाचारिणी स्त्री समाज सहज ही कर सकती है। पंचमकाल में यदि चतुर्थकाल का दृश्य देखना हो तो स्त्रीसमाज की उपेक्षा न कर उसे सुशिक्षित किया जावे' इस प्रकार के प्रेरक उपदेश देते हुए गया में महिला कालेज का उद्घाटन करवाया। सागर और ईसरी में विधवा महिला आश्रम खुलवाकर महिलाओं को गौरवपूर्ण स्थान दिलवाया। समाज में एक चेतना जाग्रत हुई और स्त्री समाज शिक्षा का प्रचार प्रसार तीव्र गति से हुआ । 8. उदारहृदय की बेजोड़ मिसाल : वर्णी जी का हृदय अत्यंत उदार एवं सहिष्णु था । वे किसी भी प्राणी को क्षणभर के लिए भी दुःखी नहीं देख सकते थे। स्वयं दुःख में पड़कर दूसरों के दुःख दूर करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे। उनकी यह उदारता मानव प्राणी तक ही सीमित नहीं थी अपितु पशुओं के प्रति भी उतने ही उदार थे। सागर की एक घटना है - एक गधा नाले में गिर गया था और सभी चिल्ला रहे थे कि गधा मर जायेगा, निकालो, किन्तु कोई भी आगे नहीं बढ़ रहा था। वर्णी जी उस समय ब्रह्मचारी थे, कुछ बच्चों को लेकर आए और गधे को निकालकर बाहर किया। इस प्रकार की अनेकों घटनायें मेरी जीवन गाथा में मिलतीं हैं। 9. विलक्षण चुम्बकीय व्यक्तित्व के धनी : वर्णी जी का अपना अलौकिक आदर्श था। हर वर्ग व्रती - अव्रती, गरीबअमीर, विद्वान - मूर्ख, संत- नेता सभी उनके पास खिचे हुए चले 20 फरवरी-मार्च 2005 जिनभाषित Jain Education International आते थे। उनकी मधुरवाणी 'काय भैया' सभी को आकर्षित कर लेती थी। उनके पास जो एक बार आ जाता था वह ऐसा अनुभव करने लगता था कि वर्णी जी सिर्फ हमारे ही हैं किन्तु वर्णी जी तो जन-जन के हो चुके थे। संत बिनोवा जी एवं राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र कुमार जी भी वर्णी जी से मिलकर बहुत प्रभावित हुए थे। 10. प्रभावक उपदेष्टा : आपके प्रभावक, मिष्ठ वचनों को सुनने के लिए लोग व्याकुल रहते थे। आपका एक-एक शब्द गंभीर और प्रभावक हुआ करता था । जनमानस पर आपके वचन स्थायित्व पा जाते थे । श्रोताओं को भी मित शब्दों में अपरिमित जैनदर्शन का सार सुनने को मिल जाता था । यथा- (1) चित्त को उदार बनाओ। (2) पर पदार्थों की आशा छोड़ो। (3) वैराग्य दृष्टि विकसित करो। (4) वैराग्य ही मोक्षमार्ग है । (5) पर के दोष देखने का जो स्वभाव बना रखा है, उसे त्यागो। (6) जितना परिकर उतना दुःख । (7) जब अमल करो तब बात बने । (8) समय पाकर ही कार्य होता है। (9) विद्वानों के समागम से संतोष होता है। (10) नियत साफ रखकर व्यापार करो । प्रतिदिन कुछ दान अवश्य करो। (11) अपने बनो। 11. जाग्रति और शांति के अग्रदूत : अपनी सरल, सहजवृत्ति, मृदुवाणी, मंद मुस्कान, सतत अध्यवसाय आदि गुणों से मण्डित बाबाजी ने बुंदेलखण्ड के साथ भारतवर्ष के बहुभाग में भ्रमणकर सहधर्मी -- विधर्मी बंधुओं के मध्य सशक्त जन चेतना जाग्रत की। क्रोधी से क्रोधी व्यक्ति भी आपके संपर्क में आकर अपने को बदला हुआ महसूस करता था । त्यागीवर्ग को भी प्रभावक आध्यात्मिक ज्ञानामृत का पान कराकर भेदविज्ञान की प्राप्ति हेतु पुरुषार्थ करने की प्रेरणा दिया करते थे । शांति के पिपासु सद्गृहस्थों के लिए वर्णी जी के शांतिसूत्र आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं यथा - 1. प्रतिदिन जिनेन्द्र भगवान की सच्चे हृदय से भक्ति करो। भक्ति में बड़ी शक्ति होती है । 2. प्रतिदिन जितना खर्च गृहकार्यों में करते हो उसमें से कम से कम एक रुपये पर एक पैसा दानकार्यों के लिए जरूर निकालो। घर में बच्चों के लिए धार्मिक शिक्षा जरूर दो । अष्टमी - चतुर्दशी, दशलक्षणपर्व एवं अष्टान्हिका पर्व पर ब्रह्मचर्य का पालन नियम से करो । 5. संतोष धारण करो । 12. समयसारमयवर्णी जी : आध्यात्मिक शिरोमणि आ. कुन्दकुन्द स्वामी की अमरकृति समयसार ग्रंथराज का न सिर्फ अध्ययन किया अपितु वर्णी जी का जीवन ही समयसारमय हो गया था। आप समयसार की कला के सर्वोपरि कलाकार थे। समयसार की गाथाएँ एवं उनपर लिखी आत्मख्याति टीका आपकी श्वांसों पर बस गई थी। एक बार वर्णी जी ने कुछ समय के लिए इस प्रकार प्रतिज्ञा ली कि 'मैं प्रतिदिन सटीक समयसार का आद्योपांत स्वाध्याय करूँगा जिस दिन नहीं कर पाऊँगा तो दूसरे - 3. 4. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524294
Book TitleJinabhashita 2005 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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