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________________ नन्दीश्वरद्वीप मढ़ियाजी : एक परिचय (यह लेख तब लिखा गया था, जब माननीय पं. डॉ. पन्नालाल जी साहित्याचार्य जीवित थे भारत वर्ष के केन्द्र में स्थित जबलपुर पुराने और नये मध्यप्रदेश का प्रमुख शहर है। यहाँ की विपुल वनसंपदा, अपरिमित जलराशि और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इस नगर की प्रगति का प्रमुख कारण रही है। स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी त्रिपुरी कांग्रेस की क्रीडास्थली तथा बौद्धिक, धार्मिक और सांस्कृतिक धरातल पर दो-दो विश्वविद्यालय के पीठ और अनेक साहित्यिक गतिविधियों ने इस नगर को सही रूप में 'संस्कारधानी' बनाया है । यहां जैन धर्म के लगभग चालीस हजार अनुयायी और लगभग 24 दिगम्बर जैनमंदिर विद्यमान हैं। शहर से 7 किलोमीटर दूर पुरवा और त्रिपुरी के बीच एक छोटी सी पहाड़ी है, जो धरातल से 300 फीट ऊँची है । पिसनहारी की मढ़िया इसी पहाड़ी पर हैं। इसके पार्श्व में मदनमहल की पहाड़ियाँ भी हैं। इस पिसनहारी की मढ़िया को लेकर एक जनश्रुति है कि जबलपुर नगर की पुरानी बस्ती गढ़ा में एक विधवा माँ रहती थी। वह आटा पीसकर अपना निर्वाह करती थी । एक दिन उसने जैन मुनि का उपदेश सुना । उपदेश सुनकर उसने तभी मन में एक जैन मंदिर का निर्माण करने का संकल्प कर लिया। जिसने जीवन में दूसरों के समक्ष कभी हाथ नहीं पसारा वह मंदिर के लिए दूसरों से भिक्षा कैसे माँगती। अतः उसने संकल्प कर लिया कि श्रम द्वारा धन संग्रह करके मंदिर निर्माण कराना है। इस संकल्प का संबल लेकर वह दिन रात श्रम करने में जुट गयी और तब एक दिन वह आया जब मंदिर तैयार हो गया। एक निर्धन असहाय अबला के पास इतनी पूँजी कहाँ थी, जिससे वह स्वर्ण कलश चढ़ा पाती । तब उस पुण्यशाली ने अपनी चक्की के दोनों पाट शिखर में चिनवा दिये। जिन पाटों ने उसे जीवन में रोटी दी, जिन पाटों ने उसके संकल्प को मूर्त रूप दिया, वे ही उसकी एकमात्र पूँजी थे। भगवान लिए उसने अपनी समग्र पूंजी समर्पित कर दी। तभी से इस क्षेत्र का नाम 'पिसनहारी की मढ़िया' हो गया । पहाड़ी पर बने जिन मंदिरों में सिंहासन पीठ पर उत्कीर्ण प्रतिष्ठा संवत् 1587 इन मंदिरों की प्राचीनता की उद्घोषणा करता है। पहाड़ी पर स्थित सभी जिन मंदिरों के उन्नत शिखर और उनके ऊपर लहराती ध्वजायें बरबस ही हमारा 4 जनवरी 2005 जिनभाषित Jain Education International मुनिश्री क्षमासागर जी मन आकर्षित कर लेती हैं। यहाँ पर बनायी गयी चौबीसी लगभग चौंतीस - पैंतीस वर्ष पुरानी है । पर्वत की तलहटी के प्रांगण में बना 'ब्राह्मी विद्या आश्रम' आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शुभाशीष से सन् 84 में स्थापित हुआ । यहाँ रहकर ब्रह्मचारिणी बहिनें अपने जीवन को संयम से सँवारती और अध्ययन चिंतन, मनन से उसे परिपक्व बनाती हैं। जैनधर्म / दर्शन में निष्णात होकर सारे देश में भ्रमण करके यथाशक्ति धर्मप्रभावना करती हैं और आचार्य महाराज की श्रीकृपा से आर्यिकापद प्राप्त स्वपर कल्याण करती हैं। यहीं पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णी की प्रेरणा से स्थापित 'वर्णीगुरु कुल' और 'व्रतीआश्रम' भी उल्लेखनीय है । गुरुकुल में रहकर युवा जैन एक साथ बैठकर धर्मका अध्ययन करते हैं और सदाचार का पालन करते हैं। वर्तमान डा. पण्डित पन्नालाल जी साहित्याचार्य के सामीप्य में रहकर लगभग दस-बारह युवा अध्ययनरत हैं । व्रती आश्रम में भी त्यागी - व्रती जनों के लिए आवास, भोजन और अध्ययन की सुविधायें उपलब्ध हैं। विद्यासागर शोध संस्थान की स्थापना सन् 84 में हुई थी । एक समृद्ध लाइब्रेरी और गणितशास्त्र के प्रोफेसर श्री लक्ष्मीचंद जी जैन का निर्देशन इस संस्थान को प्राप्त है । भारतवर्षीय दिगम्बर जैन प्रशासनिक संस्थान की स्थापना कुण्डलपुर (दमोह) म.प्र. में महावीरजयन्ती 1992 के अवसर पर आचार्य महाराज के सान्निध्य में हुई । उसका संचालन जबलपुर के इसी मढ़ियाजी क्षेत्र में हो रहा है। यह एक अभिनव प्रयोग है। इस संस्थान में प्रतिभाशाली जैनछात्रों को प्रशासनिक सेवाओं में प्रवेश के लिए प्रशिक्षित करने का उद्देश्य है। इसके साथ ही प्रवेश लेने वाले युवाओं में मानवीयता और व्यसनमुक्त अहिंसक जीवनशैली का बीजारोपण करना भी इस संस्थान का उद्देश्य है । पाण्डुक - शिला- प्रांगण जो मढ़िया जी क्षेत्र के सामने स्थित है, इस संस्थान के संचालन की भूमि बनेगा। छात्रावास का निर्माण भी यहीं होगा। यह पाण्डुकशिला- प्रांगण सन् में हुए पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में भगवान जन्माभिषेक की भूमि रहा और 1993 में भी ऐतिहासिक नन्दीश्वरद्वीप - रचना, पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव तथा 1958 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524293
Book TitleJinabhashita 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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