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________________ प्रश्नकर्ता श्रीमति सरिता जैन, नन्दुरवार जिज्ञासा - भगवान महावीर के समवशरण में जम्बूस्वामी कितनी उम्र के थे? समाधान - भगवान महावीर के समवशरण में जम्बूस्वामी के गमन का कोई प्रकरण किसी शास्त्र में नहीं मिलता है । जम्बूस्वामी के जीवन चरित्र के अनुसार निम्न बातें स्पष्ट होती हैं 1 राजगृही नगरी के सेठ अर्हद्दास तथा सेठानी जिनमती की कोख से भगवान महावीर के निर्वाण से 22 वर्ष पूर्व फागुन सुदी पूर्णमासी को जम्बूकुमार का जन्म हुआ । अर्थात् जब भगवान महावीर को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था तब आप देव पर्याय में थे । उत्तर पुराण पर्व 76 श्लोक 31 से 42 में इस प्रकार कहा है ' श्रेणिक ने गणधर स्वामी को पूछा कि हे प्रभो, इस भरत क्षेत्र में सबसे पीछे स्तुति करने योग्य केवलज्ञानी कौन होगा? इसके उत्तर में गणधर कुछ कहना ही चाहते थे कि उसी समय वहाँ विद्युन्माली नामक ब्रह्मस्वर्ग का इन्द्र आ पहुँचा। ...... उसकी ओर दृष्टिपात कर गणधर स्वामी कहने लगे आज से सातवें दिन यह ब्रह्मेन्द्र स्वर्ग से च्युत होकर इसी नगर के सेठ अर्हद्दास के यहाँ जन्म लेगा । यह यौवन के प्रारंभ से ही विकार से रहित होगा। मैं जब केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद विहार करता हुआ विपुलाचल पर आऊँगा तब जम्बूकुमार दीक्षा लेने को उत्सुक होगा पर भाई-बंधु के समझाने से वह तब दीक्षा न ले पाएगा आदि । अर्थात् भगवान महावीर के समवशरण में जम्बू कुमार नहीं आ पाये थे। बाद में उन्होंने सुधर्माचार्य गणधर के समीप दीक्षा धारण की। जब गौतम स्वामी को मोक्ष हुआ था तब सुधर्मा स्वामी को केवलज्ञान हुआ और जम्बूस्वामी श्रुत केवली हो गये । बारह वर्ष बाद सुधर्मास्वामी को मोक्ष हो गया और जम्बूस्वामी केवली बने। 40 वर्ष तक धर्मोपदेश देकर उनको मोक्ष प्राप्त हुआ अर्थात् जन्म - वीर निर्वाण से 22 वर्ष पूर्व दीक्षा - वी. नि. संवत् 2 केवल ज्ञान - वी. नि. संवत् 23 जेठ शुक्ला 7 मोक्ष - आयु 84 वर्ष, वी. नि. संवत् 62 प्रश्नकर्ता - पं. नवीन जैन शास्त्री, ललितपुर जिज्ञासा अकृत्रिम जिनालयों में कौन सी प्रतिमाएँ होती हैं ? अर्हंत भगवान या सिद्ध भगवान की । समाधान - इस प्रश्न के समाधान में यह भी समझना 30 जनवरी 2005 जिनभाषित -- जिज्ञासा समाधान Jain Education International पं. रतनलाल बैनाड़ा उपयुक्त होगा कि अर्हत और सिद्ध प्रतिमाओं में क्या अन्तर होता है । श्री त्रिलोकसार पृष्ठ 759 पर कहा है कि जो अष्टप्रातिहार्य संयुक्त होती हैं वे अर्हंत प्रतिमा हैं और जो अष्टप्रातिहार्य रहित होती हैं, वे सिद्ध प्रतिमा होती हैं। वसुनन्दि प्रतिष्ठा पाठ तृतीय परिच्छेद के अनुसार प्रमाण इस प्रकार हैं: प्रातिहार्याष्टकोपेतं, सम्पूर्णावयवं शुभम् भावरुपानुविद्धाङ्ग, कारयेद् बिम्वमर्हता ॥ 69 ॥ प्रातिहार्यैर्विना शुद्धं, सिद्धं बिम्बमपीदृशः । सूरीणां पाठकानां च साधूनाम् च यथागमम् ॥ 70 ॥ अर्थ : अष्टप्रातिहार्यों से युक्त, सम्पूर्ण अवयवों से सुन्दर तथा जिनका सन्निवेष (आकृति) भाव के अनुरूप है ऐसे अरहन्त बिम्ब का निर्माण करें || 69 ॥ सिद्ध प्रतिमा शुद्ध एवं प्रातिहार्य से रहित होती हैं। आगमानुसार आचार्य, उपाध्याय एवं साधुओं की प्रतिमाओं का भी निर्माण करें ॥ 70 ॥ इसी प्रकार जयसेन प्रतिष्ठा पाठ तथा श्री आशाधर प्रतिष्ठा सारोद्धार में भी प्राप्त होता है । अब प्रश्न के उत्तर पर विचार किया जाता हैश्री त्रिलोकसार में इस प्रकार कहा है मूलगपीठणिसण्णा चउद्दिसं चारि सिद्धजिणप्रडिमा । तप्पुरदो महकेदू पीठे चिट्ठति विविहवण्णणगा ॥ (1002) गाथार्थ : चारों दिशाओं में उन वृक्षों के मूल में जो पीठ अवस्थित हैं उन पर चार सिद्ध प्रतिमाएँ और चार अरहन्त प्रतिमाएँ विराजमान हैं। उन प्रतिमाओं के आगे पीठ हैं जिनमें नाना प्रकार के वर्णन से युक्त महाध्वजाएँ स्थित हैं ॥ 1002 ॥ श्री तिलोयपण्णत्ती में इसप्रकार कहा है: भवण-खिदि-प्पणिधीसुं, वीहिं पडि होंति णव णवा थूहा । जिण- सिद्ध-प्पडमाहिं, अप्पडिमाहिं समाइण्णा ॥ 853 ॥ अर्थ : भवन भूमि के पार्श्वभागों में प्रत्येक वीथी के मध्य में जिन (अर्हन्त ) और सिद्धों की अनुपम प्रतिमाओं से व्याप्त नौ-नौ स्तूप होते हैं ॥ 853 ॥ उपरोक्त प्रमाणों के अनुसार अकृत्रिम चैत्यालयों में अर्हत प्रतिमा और सिद्ध प्रतिमा दोनों होती हैं । प्रश्नकर्ता - कान्ताप्रसाद जी, मुज्जफरनगर जिज्ञासा - क्या नरक में पंचस्थावर जीव पाये जाते हैं ? समाधान स्थावर जीव सर्वलोक में पाये जाते हैं। श्री षटखण्डागम में इस प्रकार कहा है : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524293
Book TitleJinabhashita 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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