SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुमान कुछ धार्मिक कुछ पारंपरिक तत्वों पर आधारित | (लीप इयर) लेकिन हर सौ साल में फरवरी की 29 हैं। फिर भी यह कालगणना आज दुनिया की सबसे ज्यादा तारिख भी नहीं पकड़ते। फिर भी इसमें फर्क होता ही है। मान्यता प्राप्त कालगणना है। इसमें भी ज्युलियन पद्धति, तेरहवा पोप ग्रेगरी पद्धति, (मराठी विश्वकोश, खंड 3, पन्ना नं. 782) इंग्लैंड पद्धति ऐसी अनेक मान्यताएँ हैं। इस प्रकार उपरनिर्दिष्ट कालगणनाएँ भारत में देखने यह कालगणना सौर पद्धति से है। इसके वर्ष का में आती हैं। तथा इनका आपसी तालमेल निम्ननिर्दिष्ट तालिका काल सूक्ष्मता से देखा गया तो 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट में बताया गया है। इसकी सहायता से कोई भी एक संवत् और 45.37 सैकंड इतना है। इससे हर वर्ष में जो 5 घंटे से दूसरे में परिवर्तित किया जा सकता है। ज्यादा समय का फर्क पड़ता है, उसे कम करने हेतु हर 4 वर्ष से फरवरी के दिन 28 के बजाए 29 पकड़े जाते हैं क्रम नाम वीर निर्वाण विक्रम संवत् ईसवी सन शक संवत् पूर्व 470 पूर्व 527 पूर्व 57 470 वीर निर्वाण विक्रम संवत् ईसवी सन शक संवत् पूर्व 605 पूर्व 135 पूर्व 78 527 57 605 135 78 हुए है जो जीवन के समग्र विकास में अधूरी है। किसी विद्यालय के 100 वर्ष पूर्ण होना अपने आप में गौरव की बात है। स्याद्वाद महाविद्यालय वर्णी जी के अथक परिश्रम की फलश्रुति है। मुनि श्री के गुरुणांगुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज की शिक्षा स्थली होने से उनको भी याद किया। मुनि श्री ने विद्यालय के नये भवन एवं छात्रावास का भी अवलोकन किया। मुनि श्री प्रमाणसागर जी स्याद्वाद महाविद्यालय में सुप्रसिद्ध दिगम्बर जैनाचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के परम तपोनिष्ठ अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी परमपूज्य मुनि श्री 108 प्रमाणसागर जी महाराज ससंघ सतना (म.प्र.) से अहिंसा सद्भावना पदयात्रा करते हुए काशी नगरी पहुँचे। इस अवसर पर भदैनी, वाराणसी स्थित शताब्दी समारोह वर्ष के अन्तर्गत आयोजित कार्यशाला में मंगल सान्निध्य प्रदान करने भगवान् सुपार्श्वनाथ की जन्म स्थली प्रांगण में महाविद्यालय पहुंचे जहाँ पर श्री स्याद्वाद महाविद्यालय के छात्रों, शिक्षकों, पदाधिकारियों ने प्रवेशद्वार पर पूज्य मुनिश्री की मंगल आरती उतारी तथा पादप्रक्षालन किया। इसके पश्चात् पूज्य मुनिश्री ने श्री 1008 सुपार्श्वनाथ जैन मंदिर में दर्शन किया। इस अवसर पर स्याद्वाद महाविद्यालय, वाराणसी के शताब्दी वर्ष पर आयोजित समारोह को सम्बोधित करते हुए पूज्य जैन मुनि प्रमाणसागर जी महाराज ने कहा कि शिक्षा के साथ-साथ नैतिक संस्कार बढ़ाना जरूरी हैं। गुरुकुलों में जो नैतिकता, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा का पाठ पढ़ाया जाता है वह आज की वर्तमान शिक्षा पद्धति में नजर नहीं आता। आज की शिक्षा अर्थ की प्रधानता लिए कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुरस्कार 2003 कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इंदौर के अध्यक्ष श्री देवकुमार सिंह कासलीवाल ने वर्ष 2003 के कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुरस्कार हेतु अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद् के अध्यक्ष प्राचार्य श्री नरेन्द्र प्रकाश जैन, फिरोजाबाद को प्रदान करने की घोषणा की है। उन्हें यह पुरस्कार उनके लेख संग्रह 'समय के शिलालेख एवं चिन्तन प्रवाह' के साथ ही कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ को दिये गये निस्पृह सहयोग एवं सतत् मार्गदर्शन हेतु प्रदान किया गया। __इस पुरस्कार के अंतर्गत प्राचार्य श्री जैन को 25,000 रुपये की नकद राशि, शाल, श्रीफल एवं प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया जाएगा। डॉ. अनुपम जैन, सचिव 24 जनवरी 2005 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524293
Book TitleJinabhashita 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy