SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इतिहास में यह आ. शांतिसागर युग और आ. विद्यासागर प्रभावक आ. विद्यासागर जी महाराज ने। युग इस सहस्त्राब्दी को स्वर्णिम युग के रूप में जाना आइए हम सब भी संयम की शीतल छाया तले अपना जायेगा। शेष जीवन बिताने की ओर अग्रसर होने का संकल्प करें। आ. शांतिसागर जी महाराज की स्मृति में मनाया जा | प्रतिक्षण जीवन बीत रहा है और मृत्यु निकट आ रही है। रहा यह संयम वर्ष बातों से नहीं कामों से मनाए जाने का इस संयम वर्ष के उपलक्ष्य में अपने अंदर आत्म बल अभूतपूर्व उदाहरण प्रस्तुत किया है, उनके ही समान उत्कृष्ट उत्पन्न कर आज ही नहीं अभी ही यथाशक्ति संयम धारण साधुचर्या के पक्षधर उनकी ही परंपरा के युग दृष्टा सातिशय | | कर संयम वर्ष को सार्थक रूप में मनाएं। बोध कथा निस्सार का अर्जन, सार का विसर्जन (प्रस्तुत कथा में निस्सार-ग्राही संसार की दशा दर्शाई गयी है।) एक व्यक्ति किसी समय यात्रा के लिए निकला।। लाया था, जिसमें राह के लिए नाश्ता रखा था। उसने उसे यात्रा में पहाड़ के ऊपर चढ़ना था। अतः इस यात्रा इस थैले को तो राह में छोड़ दिया बोझ कम करने के के लिए उसने उपयुक्त जूते खरीदे और जूते पहिनकर लिए, किन्तु उसने उस थैले को नहीं छोड़ा राह में, जो उसने चलना आरम्भ किया। पहाड पर अभी वह कछ उसे पड़ा मिला था, जिसे कि उसने अब तक खोलकर ही दूर चढ़ पाया कि राह में उसे एक सुन्दर थैला पड़ा भी नहीं देखा था। इस थैले को लिए अब फिर चढ़ने दिखाई दिया, रुक गये उसके पैर। वह आगे न बढ़ लगा पहाड़ पर। अब उसे अपने जूते भी भारी लगने लगे सका। उसके मन में उस थैले को उठा लेने के भाव अत: उसने जूते भी उतार कर अलग कर दिये और नंगे उत्पन्न हो गये। पैर ही पर्वत पर आगे चढ़ने लगा। आगे बढ़ते-बढ़ते जब बहुत थक गया तो उसने विश्राम करना चाहा। वह ___ वह उस ओर गया जहाँ थैला पड़ा था। उसने वहाँ रुक गया, एक चट्टान पर विश्राम करने। पर्वत पर जाकर थैला उठाया। थैला भारी था पर देखने में सुंदर अपने को अकेला पाकर उसके मन में थैले में भारी वस्तु था। उस थैले को इसतरह अपने कंधे पर रख लिया जैसे क्या है? यह जानने की उत्सुकता हुई। उसने थैले को थैले में स्वर्णादि श्रेष्ठ बहुमूल्य वस्तुएँ रखीं हों। अभी खोला। उसने देखा कि थैले में तो मात्र एक पत्थर का पहाड़ पर चढ़ने का उत्साह था। इस उत्साह के आगे टुकड़ा है, जिससे सिल पर चटनी आदि पीसी जाती है। थैले में क्या है? यह जानने/समझने का भी उसके पास वह पछताया अपनी करनी पर । सोचता है कि मैं कितना समय नहीं था। मूर्ख हूँ जिसने बोझा कम करने के लिए सार रुप राह का वह पहाड़ पर बढ़ रहा है आगे। जैसे-जैसे वह नाश्ता तो छोड़ा ही चलने में सहायक जूते भी त्यागे और पहाड़ पर चढ़ता गया वैसे-वैसे उसे वजन अपने साथ जो निस्सार वाह्य पर पदार्थों को आप उठाकर आगे बढ़ ले जाने में कठिनाई प्रतिभाषित होने लगी। उसके पास रहा है और व्यर्थ का बोझ ढो रहा है। एक दूसरी थैली और थी जो वह अपने साथ यात्रा में 'विद्या-कथाकुञ्ज' शाकाहार हमारे उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन के लिए नैतिक और धार्मिक दोनों रूपों में सही आहार है। 6 अक्टूबर 2004 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524290
Book TitleJinabhashita 2004 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy