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अभूतपूर्व संयम प्रभावना
मूलचंद लुहाड़िया
देश की सम्पूर्ण दि. जैन समाज ने इस युग के प्रथमाचार्य | टी.वी. युग के भोगाकर्षक वातावरण में जीते हुए, सम्पन्न आचार्य शांतिसागर जी महाराज की पुण्य स्मृति में इस वर्ष | घरानों में जन्म लेने वाले इन महाभाग्य युवकों में ऐसी तीव्र को संयम वर्ष के रूप में मनाए जाने का संकल्प किया है। | वैराग्य की भावना का उदय हुआ कि उन्होंने प्रथम बार में किंतु संयम वर्ष को किस प्रकार मनाया जाना चाहिए, ही उत्कृष्ट संयम का पद धारण करने का साहस कर लिया संभवतः इस दिशा में हमने अधिक विचार नहीं किया है। यह अपने आप में एक अत्यंत विस्मयकारी घटना है। ___ जिस प्रकार विषय भोगों को पुष्ट करने वाले लौकिक
वस्तुतः उन पुण्य श्लोक युवाओं के हृदयों में अध्यात्म कार्यक्रमों को मनाये जाने के तरीकों में हम स्वयं विभिन्न
और वैराग्य की वेगवती धारा बहाने में पू. आचार्य प्रकार के इन्द्रियों के भोगोपभोग के ही साधन आयोजित
विद्यासागर जी महाराज का व्यक्तित्व प्रमुख निमित्त बना करते हैं। जिस कार्यक्रम में जितने अच्छे और विशाल रूप
है। आचार्य श्री की वैराग्योत्पादक तेजस्वी मुद्रा के बारे में से इन्द्रिय विषयों के साधनों को उपलब्ध कराया जाता है,
आचार्य पूज्यपाद स्वामी के शब्द "अवाक विसर्ग वपुषां उस कार्यक्रम को उतना ही अधिक सफल माना जाता है।
मोक्षमार्ग निरूपयंति" सार्थक सिद्ध होते हैं। इस निकृष्ट
पंचमकाल में भी चतुर्थकाल जैसा यह उत्कृष्ट संयम प्रभावना विवाह, जन्मदिन, गृहप्रवेश, उद्योग-व्यापार का
का आयोजन देखने को मिला है यह हम सब का सौभाग्य शुभारंभ आदि के अवसरों पर इन्द्रिय विषयों की भरपूर
है। पू. आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने इस युग में अब सामग्रियां एकत्र कर उन आयोजनों को भव्यता से मनाया
तक सर्वाधिक 241 दीक्षाएं प्रदान की हैं। केवल दीक्षाओं जाता है। इसी प्रकार संयम वर्ष मनाए जाने का सर्वाधिक
की संख्या में ही उत्कृष्टता नहीं है अपितु गुणात्मकता में भी उपयुक्त विधान यही हो सकता है कि धार्मिकजनों द्वारा
आचार्य श्री से दीक्षा प्राप्त साधुजन उत्कृष्ट हैं । इस संघ की संयम को यथाशक्ति जीवन में प्रयोगात्मक रुप से ग्रहण
यह एक विशेषता है कि सभी दीक्षित साधु जन बाल किये जाने और संयम के प्रति उत्साह एवं आकर्षण उत्पन्न
ब्रह्मचारी हैं, सभी साधु अपनी पदानुकूल निर्दोषचर्या पालन करने वाले कार्यक्रम आयोजित किए जायें। केवल आचार्य
करते हुए ज्ञान, ध्यान, तप में लं न रहते हैं। अब तक शिक्षा शांतिसागर जी महाराज के गुणगान कर लेना पर्याप्त नहीं
प्राप्त 241 साधुओं के अतिरिक्त अभी बड़ी संख्या में बाल होगा और न यह संयम वर्ष मनाए जाने का प्रभावी तथा
ब्रह्मचारी युवक-युवतियां साधनारत रहते हुए दीक्षा के सार्थकरूप ही होगा।
लिए कतार में खड़े हैं। आने वाले समय में हम ऐसे पू. आचार्य शांतिसागर जी पहाराज की परंपरा के प्रेरणास्पद एवं प्रभावक दृश्य देखने के लिए प्रतिक्षारत हैं, सातिशय प्रभावक आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने संयम दूसरी ओर पू. आचार्य श्री से देशव्रत के नियम ग्रहण कर वर्ष मनाने की दिशा में एक अभूतपूर्व कीर्तिमान स्थापित श्रावक धर्म की साधना करने वाले भारी संख्या में पुरूष किया है। दिनांक 21 अगस्त 2004 को तिलवारा घाट और महिलाएं घर में रहते हुए साधना कर रहे हैं। इस जबलपुर में 25 बाल ब्रह्मचारी उच्च शिक्षा प्राप्त युवकों प्रकार मुनि-आर्यिका-श्रावक- श्राविका चतुर्विध संघ का को संयम के सर्वोकृष्ट पद दिगम्बर मुनि दीक्षा प्रदान की निर्माण कर आचार्य परमेष्ठी संयम की अभूतपूर्व प्रभावना गई। भारत वर्ष में दिगम्बर जैन जगत में गत 400-500 कर रहे हैं। वर्ष के इतिहास में संयम प्रभावना की यह अद्वितीय
__ आचार्य शांतिसागर जी महाराज ने विलुप्त प्राय हुई अतिशयकारी घटना है। आज के युग में जबकि युवा वर्ग
दिगम्बर जैन मुनि परंपरा को पुनर्जीवित किया और उनकी पर भोग प्रधान उपभोक्ता वादी संस्कृति ने सर्वत्र अपने पांव
ही परंपरा के आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने इस परंपरा पसार कर अपना एक छत्र शासन स्थापित किया हुआ है,
को उल्लेखनीय ऊंचाइयाँ प्रदान की। दि. जैन जगत के तब सह शिक्षा के साथ कॉलेज में उच्च अध्ययन प्राप्त,
अक्टूबर 2004 जिनभाषित 5
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