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________________ नवीन मुनिदीक्षाओं के संदर्भ में कविताएं मुनि श्री चंद्रसागर पढ़े-लिखों की भीड़, नीड़ को छोड़कर भाग निकली, तटपर खड़ा कोई बेचारा, रहा सुखा कपड़े, जोर जोर से वर्षा हुई, चला झंझावात, था सो दिगम्बर हो गया अब बहायेगी वैराग्य का नीर, पढ़े लिखों की भीड़ त्याग बनाम भोगवाद इजी. धरमचन्द्र जैन बाझल्य दुनिया ने जो पहनाये थे कब से दिये हैं उन्हें उतार। त्यागा घर परिवार तभी से त्यागे उनने भोग अपार ॥ घर त्यागा है जबसे प्रभु ने ग्रहण किया मठ पर अधिकार। त्याग न पाये मूर्छापरिग्रह मन से बंधा हुआ संसार ।। मंथन खूब किया आगम का करते निज पर का उद्धार । सबको दिखते निर्विकार पर भीतर चलता है व्यापार ।। सफल हुए है संत शिरोमणी ख्याति लाभ हित धर्म प्रचार । श्रावक दबे बोझ से उसके चैनल पर चल रहा प्रचार ॥ ऊपर चढ़ते नीचे गिरते बालकवत् रहते अविकार। स्थिर होकर पुनः भटकते क्योंकि अगल नहीं संसार ।। देश दोष है, काल दोष है, है परिवर्तित चर्या स्वीकार। महावीर की वाणी है यह उसे बनाया आस्रव द्वार।। ए-92 शाहपुरा, भोपाल-462039 2 सितम्बर 2004 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524289
Book TitleJinabhashita 2004 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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