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________________ रजि नं.UPIHIN/29933/24/1/2001-TC डाक पंजीयन क्र.- म.प्र./भोपाल/588/2003-05 सम्यक-अनुप्रेक्षा महेन्द्र कुमार जैन सोच रहा मैनें तो भगवन,कुछ न पाप किया है। फिर भी क्यूं मुझको इस भव में,क्यं कर दण्ड दिया है। पर अनादि से संचित कर्मों का ही,पल तो पाया, नही सोच पाऊं मैं ऐसा, जिनवर जो बतलाया॥5॥ थोड़ी सी पीड़ा से प्रभु, मैं तो विचलित हो जाता, जिनवर का दर छोड़ के, मैं तो देवमढ हो जाता। वीत-राग जिनदेव को रागी, मान के पूजा करता, आश नहीं जब पूरी होती, तो मैं पलायन करता॥6॥ रागी-द्वेषी देव-कुदेव की मैं पूजन करता, शुभ्र चांदनी का पथ तज कर, मिथ्या पथ पर चलता। अपने कर्मों का ही लेखा, मुझे समझ नहीं आता, और जिनेद्र को दोष लगाकर, देवमूढ़ हो जाता॥7॥ निश्चल मन से सोचूं तब,पीड़ा से मन भर आता, दिव्य द्वार को तज कर मैं, क्यूं देवमूढ़ हो जाता। कुगुरु की संगत में करके, नाहक पाप कमाता, गंडा मुदरी तावीजों से,मन लांछित कर आता॥8॥ कैसे-कैसे महामुनी,जिन सहे उपसर्ग घनेरे, नहीं किया पर दोषारोपण, कर्म विपाक हैं मेरे। जिन श्रद्वा से किंचित भी,न उनने मन को फेरा, अडिग रहे,निज आत्मलीन हो, मेट लिया भव फेरा॥9॥ आओ विचारें उनकी गाथा, जिन उपसर्ग सहे हैं, कालजयी वे बने सभी, जिन सम्यक मार्ग गहे हैं। काल भी जिनसे हार गया, ऐसे वे आत्मध्यानी, मुक्ति-वधू के कंत बने, ऐसे वे भेदविज्ञानी // धन्य धन्य वे महामुनि, कोल्हू में जो पिल जाते, अभिनन्दन आदि मुनिवर, सव पंच सहस है आते। पंक्तिबद्ध चलते आते, कोल्हू में जो पिलते जाते, हम विचार से ही घबड़ाते, पर वे न घबड़ाते॥11॥ नहीं क्रोध, नहीं क्षोभ, नहीं आक्षेप किसी पर करते, शांत भाव से कर्मोदयफल मान,निर्जरा करते। वे बड़भागी महाव्रती तब, निज स्वरूप में रमण करें, ऐसे ही उपसर्ग विजेता, मोक्ष-लक्ष्मी वरण करें 12 // S-599, नेहरूनगर, भोपाल स्वामित्व एवं प्रकाशक, मुद्रक :रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, जोन-1, महाराणा प्रताप नगर, |.Jain Education Internaभोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं सर्वोदय जैन विद्यापीठ 1/205, प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित। POmPrivate arrersonar use only www.jainelibrary.org
SR No.524287
Book TitleJinabhashita 2004 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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