SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदिनाथ, भगवान पार्श्वनाथ आदि के जन्मदिवस व्यापक स्तर पर | 'जिनभाषित' पत्रिका के मार्च और अप्रैल २००४ के अंकों मनाने के कुछ वर्षों से जो प्रयास किये जा रहे है, वे बहुत ही प्रशंसनीय | में प्रकाशित सम्पादकीय पढ़े। आपकी निर्भीकता, साहस एवं हैं, इसलिये कि उनसे यह भ्रान्ति दूर करने में सहायता मिलती है कि | आगम के प्रति निष्ठा सराहनीय एवं अनुकरणीय है। जैनधर्म के संस्थापक' भगवान महावीर थे। लेकिन जन्मदिन मनाने अक्सर ऋषभकथा का मंचन पंचकल्याणक प्रतिष्ठाऔर उसको 'नाटकीय' रूप देने में परस्पर विरोध है। महोत्सवों में देखने को मिलता है। उत्सुकतावश मैंने भी अंतिम दिन मुझे यह आशंका भयभीत कर रही है कि इस प्रकार की | ऋषभकथा का मंचन देखा था। महाव्रती दिगम्बर मुनियों की बारातों की अगली परिणति कहीं यह न हो कि जन्म कल्याणक के | उपस्थिति में नीलाजंना -नृत्य, फिल्मी तर्ज पर नृत्य एवं गायन तथा अवसर पर 'बर्थ-डे केक' भी काटा जाने लगे, जैसा कि गर्भ | संवाद डिलीवरी आदि कुल मिलाकर गरिमापूर्ण नहीं लगे। कल्याणक के उत्सव में तीर्थंकर की माता का रोल अदा करने वाली ऋषभकथा का भावपूर्ण शास्त्रोक्त मंचन भी श्रीमज्जिनेन्द्र महिला के लिये 'साधौं' का उत्सव मनाना प्रारंभ हो चुका है। पंचकल्याणकों में ही प्रासंगिक होता है। रामकथा का मंचन भी तो मैं समाज को यह स्मरण दिलाना चाहता हूँ कि पूज्यपाद | अक्सर दशहरा-दीवाली के अवसरों पर ही होता है गणेशप्रसाद जी वर्णी ने गजरथ चलाने के विरुद्ध एक मुहिम चलाई धरमचन्द्र वाझल्य थी और उन्होंने समाज के सामने यह आदर्श रखा था कि शिक्षा एवं ए-९२, शाहपुरा भोपाल गुरुकुल तथा छात्रावास जैसी संस्थाओं पर ही समाज के धन का _ 'जिनभाषित' के अप्रैल २००४ के अंक में प्रकाशित व्यय हो। उन्होंने अनेक विद्यालय, छात्रावास एवं गुरुकुल खुलवाये संपादकीय 'मेरी बात भी सनिए' एक सारगर्भित लेख है। आपके और निर्धन छात्रों के लिये छात्रवृत्तियाँ दिलाने की व्यवस्था पर जोर जैनशास्त्रोक्त सटीक कथनों से वस्तुस्थिति स्पष्ट हुई है तथा दिया। क्या गणेशप्रसाद जी वर्णी आज के यग के लिये अप्रासंगिक | आलोचनाओं का समीचीन उत्तर दिया गया है। समाधान भी प्रस्तुत हो गये हैं? किया गया है। मैं पत्रिका में प्रकाशित श्री गुलाब सिंघई, अरेरा कन्हैयालाल जैन, पूर्व आई.ए.एस. कॉलोनी, भोपाल के पत्र से सहमत हूँ, जिसमें कहा गया है कि सच ई-४/३९, महावीर नगर,भोपाल बोलने-लिखने वालों को डराने-धमकाने आदि से भविष्य में कोई ' जिनभाषित' नियमित प्राप्त हो रहा है, आभारी हूँ। मार्च मार्गदर्शन देने आगे नहीं आएगा। ०४ के अंक में आपका सम्पादकीय 'नाटक का अनाट्यशास्त्रीय 'तमस्काय तथा लौकांतिक देवों का निवास स्थान : एक प्रयोग' पढा। मैं आपकी निर्भीकता एवं स्पष्टवादिता पर आपको चितंन' लेख में अत्यंत ज्ञानवर्धक, गवेषणात्मक जानकारी प्रस्तुत धन्यवाद देता हूँ। की गई है, लेकिन चित्र क्र. १,२,३ के मद्रित न होने से लेख बिना १०८ मुनि संघ दिगम्बर जैन समाज के कर्णधार हैं। इन्हें आत्मा के जान पड़ा। दिगम्बर जैन धर्म की प्रतिष्ठा का ध्यान रखकर ही कार्य करने की | "जिज्ञासा-समाधान' स्तम्भ पं. रतनलाल जी बैनाड़ा का अनुमति देनी चाहिए। बूंद में सागर समेटने का उत्कृष्ट प्रयास है तथा ज्ञान-वर्धन के द्वार डॉ. नेमीचन्द्र जैन | खोलता है। सेवानिवृत प्राचार्य - गुरुकुल खुरई डी.के. जैन उपमंत्री-अ.भा.दि.जैन विद्वत् परिषद् १८/३० साउथ टी.टी. नगर,भोपाल-४६२ ००३ वीतराग वनाम वित्तराग धरमचन्द्र बाझल्य वीतराग के दर्शन कर, वित्तराग का पोषण करते। अपने हित के साधन में निशि दिन सबका शोषण करते॥ अपने दोष ढाँक, सदा औरों पर दोषारोपण करते। निवृत्तिमार्ग को त्याग, सदा ही प्रवृतिमार्ग पर चलते रहते॥ महावीर की चर्या का गुणगान सदा ही करते रहते। चौराहे पर उन्हें खड़ा कर, मंदिर-मंदिर स्वयं विचरते॥ ए/९२, शाहपुरा, भोपाल 4 मई 2004 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524285
Book TitleJinabhashita 2004 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy