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नहीं कर सकेगा।
भी बड़ा सुन्दर है। मैं पत्रिका के उज्ज्वल भविष्य की कामना मैं इस पत्र के माध्यम से सभी व्यक्तियों से अनुरोध करता करता हूँ। हूँ कि उन व्यक्तियों की निंदा करें, जिन्होंने धर्मसभा में सम्पादक
डॉ. ताराचन्द्र जैन बख्शी जी की निंदा की थी।
सम्पादक - अहिंसावाणी
बख्शी भवन, न्यू कॉलोनी, जयपुर विमल जैन जी-४०/५, साउथ टी.टी. नगर, भोपाल 'जिनभाषित' अप्रैल २००४ का सम्पादकीय 'मेरी बात .. 'जिनभाषित' (मार्च एवं अप्रैल २००४) में आपके
भी सुनिये' पढ़ा। विद्वान सम्पादक प्रो. रतनचन्द्र जैन श्रावकों को सम्पादकीय लेख पढ़े। 'मेरी बात भी सुनिए' इस लेख से अच्छी
श्रावकधर्म और मुनिधर्म पर आगमोक्त ही विचार सूत्र दे रहे हैं,
इसे अन्यथा न लिया जाये। सारा पत्रकारजगत् उनके साथ है। तरह स्पष्ट हो जाता है कि आपके द्वारा दिया गया दृष्टान्त पूरी तरह आगमानुकूल एवं स्वस्थ है। रात में बारात निकालने का समाचार
आशा है जितना उनका अपमान किया गया है उससे चौगुना हम छाप देने से क्रुद्ध हुए आयोजकों ने उस दृष्टान्त को आपके प्रति
उनका सम्मान करें। मुनिश्री क्षमासागर जी की 'भगवान' कविता विषवमन का माध्यम बनाया, यह निन्दनीय है।
पढ़कर हम सम्पादक के ईमान की कद्र करें। आपकी प्रगाढ़ मुनिभक्ति और आगमनिष्ठता से हम सब
योगेन्द्र दिवाकर, सतना (म.प्र.) सुपरिचित हैं। आप चालीस वर्षों से जिनवाणी की जो नि:स्वार्थ 'जिनभाषित' मार्च २००४ के सम्पादकीय (नाटक का सेवा कर रहे हैं और श्रावकों को धर्मग्रन्थ पढ़ाकर और 'जिनभाषित' अनाट्यशास्त्रीय प्रयोग) के लिये मैं आपको बधाई देना चाहता हूँ, जैसी उच्चकोटि की पत्रिका का कुशल सम्पादन कर उनके | इसलिये भी कि जिस वातावरण में आप रह रहे हैं उसमें इस प्रकार अज्ञानान्धकार का विनाश कर रहे हैं, इसके लिए आप शतशः का सम्पादकीय लिखना एक साहसपूर्ण कार्य है। आपने आदिकुमार अभिनन्दनीय हैं।
की बारात रात्रि में निकालने पर आपत्ति की है और आपत्ति के लिये हम आपकी निर्भीक लेखनी और वाणी का सम्मान करते पर्याप्त आधार दिये हैं। किन्तु आप से आगे जाकर मैं यह जानना हैं और कामना करते हैं कि आप अपनी लेखनी और वाणी से| चाहता हूँ कि इस प्रकार की बारातों का आयोजन करने से जैनधर्म सदैव आगमानुकूल मार्ग का प्रदर्शन और आगमविरुद्ध मार्ग का | की क्या प्रभावना हुई और जैन समाज को क्या पुण्य लाभ हुआ? विरोध करते रहें। आप न्याय के पथ से कभी विचलित न हों। यह देखा जा रहा है कि अब अवतारवादी धारणा पर
सुरेश जैन, आई.ए.एस. | आधारित रामलीला, कृष्णलीला आदि की तर्ज पर जैन समाज ने
भी व्यापक स्तर पर आयोजन करना प्रारंभ कर दिया है, जिनमें 'जिनभाषित' मासिक पत्रिका अंक अप्रैल २००४ में करोड़ों रुपयों की राशि का व्यय होता है। यदि तर्क के लिये यह प्रकाशित सम्पादकीय 'मेरी बात भी सुनिये' पढ़ा। मुलगणों में | मान भी लिया जाय कि तीर्थंकर भगवान के कथा-नाटकों का शिथिलाचार करने वाले मुनि के प्रसंग में सम्पादकद्वारा व्यभिचारिणी| प्रदर्शन करने से जैन धर्म की प्रभावना होती है, तो भी इस बात का स्त्री का दृष्टांत देने पर टी.टी. नगर के जिनालय में विराजमान | क्या औचित्य है कि इनमें विवाह कल्याणक' भी जोड़ दिया, जैसा जिनभक्तों ने सम्पादक के प्रति अशुभ वचनों की बौछार कर जो कि आपके द्वारा वर्णित आदिकुमार की बारात से परिलक्षित होता हिंसाभाव प्रदर्शित किया वह निन्दनीय है।
है। जैनधर्म में तप, त्याग, आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य को धर्म का सम्पादक के विचारों से मैं पूर्णत: सहमत हूँ। जहाँ तक मैं | महत्त्वपूर्ण अंग माना गया है। कुछ तीर्थंकर बालब्रह्मचारी रहे हैं और समझता हूँ शायद कुछ बन्धुओं द्वारा दिशाभ्रमित किये जाने के | पुराणों की कथाओं के अनुसार कुछ तीर्थंकरों के विवाह, और कुछ कारण भोपाल के जैन समाज ने धर्मसभा को निन्दा सभा में | के तो एक से अधिक विवाह हुए थे, किन्तु जहाँ तक मेरी जानकारी परिवर्तित कर सम्पादक के विरुद्ध निन्दा प्रस्ताव पास कर दिया। है, जैन धर्म ने किसी के विवाह को कभी महत्त्वपूर्ण या प्रभावनाकारी
आशा है आपका सम्पादकीय पढ़ने के बाद समाज भूल | घटना नहीं माना है। निश्चय ही विवाह और बारात त्यागप्रधान धर्म - सुधार करेगा।
के लिये प्रासंगिक भी नहीं हो सकते। ऐसी स्थिति में आदिकुमार मैं 'जिनभाषित' पत्रिका का नियमित पाठक हूँ। इस | की बारात निकालना, वह भी जोरशोर से, इस बात का द्योतक है प्रत्रिका के अध्ययन से मन प्रफुल्लित हो जाता है। पत्रिका में कि हमारा समाज धर्म के मूल तथ्य से भटककर जैनेतर धर्मों में चल सारगर्भित एवं सटीक रचनायें होती हैं। पत्रिका जैन समाज के रही परम्पराओं का अनुकरण करने लगा है। लिये सही दिशा में मार्गदर्शक एवं प्रेरक है। पत्रिका का स्वरूप । इस तारतम्य में, मैं यह स्पष्ट करना चाहता है कि भगवान
मई 2004 जिनभाषित
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