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समझदार को समझाया जा सकता है ? लोकैषणा और आत्मप्रभावना | लेख पढ़े। मार्च ०४ के सम्पादकीय लेख को लेकर टी.टी. नगर की तीव्र चाहत 'अहो रूपम् अहो स्वरम्' के समीकरण को जन्म | मंदिर जी में जो आयोजन हुआ, वह धर्म एवं मंदिर की गरिमा के देती है और धर्म की तथाकथित ध्वजा के तले अनाचार का व्यापार | प्रतिकूल था। यह सब स्वार्थी लोगों द्वारा प्रायोजित था। अधिकांश फलने-फूलने लगता है। धंधेबाजों द्वारा निर्मित ये समीकरण धर्म | श्रोताओं को वस्तुस्थिति का ज्ञान नहीं था। आधा सच बताकर तो नहीं, केवल धर्म का मुलम्मा चढाए सम्प्रदाय मात्र ही हैं। अब | लोगों को भ्रमित किया गया। आपने मार्च के सम्पादकीय में ही यदि आपने इन दुकानदारों की मल्टीलेविल मार्केटिंग चैन पर चोट | 'मैं मुनिश्री में एक प्रतिशत भी शिथिलाचार नहीं मानता' लिखकर की, तो उनका तिलमिलाना स्वाभाविक ही है।
स्थिति एकदम स्पष्ट कर दी है। धन और भौतिक वैभव की अंधी दौड़ में फँसे इस समाज | आपकी मुनिभक्ति एवं विद्वत्ता मैंने करीब से देखी है, के नेतृत्व हेतु आज चारित्र्य और आचरण नहीं, बल्कि धन और | जानी है। बढ़ती कुरीतियों पर आपका प्रहार उचित एवं जैन बाहुबल के रथ पर आरुढ़ होना जरूरी है। इसीलिए किसी शहर | सिद्धान्त के अनुरूप है। टी.टी. नगर मंदिर जी में घटना के बाद में शराब किंग तो किसी में कीटनाशक दवाओं के निर्माता समाज पाँच-छह पत्र नोटिस बोर्ड पर चिपके देखे गये, जो विभिन्न के अध्यक्ष बने हुए हैं।
जिनमन्दिरों के पदाधिकारियों द्वारा लिखे गये थे। सभी ने घटना समाज के ये नादिरशाही ठेकेदार शाम ढलते ही सुरा-सुंदरी पर क्षोभ तथा आपके अपमान पर गहरा दुःख प्रकट किया था। का संध्यावंदन कर प्रातः काल मुनियों को बाकायदा पड़गाहने हेतु स्पष्ट है कि घटना के बाद लोगों ने वास्तविकता को जानने का हाजिर रहने का दुःस्साहस भी रखते हैं।
प्रयास किया। आपने अपने धर्म का पालन करते हए लेखनी चलाने का इस प्रकार के अवसर सभी पैनी लेखनीवालों के जीवन में कर्तव्य निभाया। उसमें बगैर लाग-लपेट आगम-अनुसार स्पष्ट आते हैं। कुछ स्वार्थी लोग थोड़े समय तक 'आड़' लेकर भ्रमित कहा। यह अभिनन्दनीय है। जीवों के कल्याण एवं उन्हें आत्मधर्म कर सकते हैं, पर हमेशा के लिए नहीं। कुप्रथा, कुरीतियों एवं में प्रवृत्त करने हेतु आप्तवाणी खिरती है। इसी तरह विद्वानों की | धर्मप्रतिकूल कार्यकलापों पर आपकी लेखनी और पैनी हो. यह लेखनी समाज को पटरी से उतरता देख करुणावश चलती है, ताकि कामना है। उसे विनाश से बचाया जा सके। दोनों के मूल में करुणा ही प्रेरणा
सुमतिचन्द्र जैन
पूर्व मुख्य कार्य प्रबन्धक स्रोत है। यह और बात है कि प्राणी अपने कर्मोदय से अपने परिणाम
म.प्र. राज्य परिवहन निगम भोगता ही है। आपने निर्भीक लेखनी से सामाजिक भटकाव को
७/३, संजय कॉम्पलेक्स, भोपाल-०३ रेखांकित किया और आगम अनुकूल राजमार्ग भी समझाया, किंतु
मैंने अप्रैल २००४ के 'जिनभाषित' में आपका विस्तृत प्रतिक्रिया दर्शाती है कि समाज के ठेकदारों ने उसे कहाँ पहुँचा दिया लेखपदा अशान्त मन को शान्ति मिली होती है ! आपकी कर्त्तव्यनिष्ठा ने निर्विवाद रूप से सुधी पाठकों की श्रद्धा
आयोजित धर्मसभा में मार्च २००४ के 'जिनभाषित' में छपे
आपके लेख को लेकर जो विवाद उत्पन्न हुआ उससे मुझे गहरी करता हूँ। संपादक एक लाईट हाऊस की भाँति समाज को विनाश
चोट पहुंची थी। इस लेख के कुछ ही अंश पढ़कर धर्मसभा में की ओर न बढ़ने की चेतावनी देता है। अब इस कारण उसे ही। उपस्थित समुदाय को सुनाये गये थे, पूरा लेख नहीं सुनाया गया। आक्रामक समाज का शिकार होना पड़े, तो यह समाज के दुर्दिनों
मुझे अच्छी तरह से स्मरण है कि श्री नरेन्द्र वंदना जी ने यह का सूचक है। अपनी पाप की कमाई के आतंक के बल पर समाज
लेख पढ़कर सुनाया था। उन्होंने जानबूझकर आपका लिखा यह का नव धनाढ्य वर्ग उसे एक डिजिटल डिवाइड की ओर ले जा
अंश पढ़कर नहीं सुनाया कि 'मैं तो उन मुनिश्री में एक प्रतिशत रहा है। इन गुंडों और उनके द्वारा पोषित पंडों से समाज को आपके
भी शिथिलाचार नहीं मानता हूँ।' मुझे दृढ़विश्वास है यदि पूरा समान निर्भीक बुद्धिजीवी एवं विद्वान सज्जन ही बचा सकते हैं। | लेख पढ़ा जाता तो पतिकिया ऐसी होती ही नहीं। एक धर्मसभा अतः अपनी धार को और पैना करें, यही इस बीमार समाज की | में विराजमान समुदाय को गुमराह करने के लिए जानबूझकर यह सामयिक औषधि होगी। हम सरीखे पाठक प्राण-प्रण से आपके
कृत्य किया गया। उस धर्मसभा में जिन व्यक्तियों ने इस लेख को साथ आगम की रक्षा हेतु कृत-संकल्प रहेंगे।
लेकर आपकी निंदा का प्रस्ताव रखा था और जिन्होंने उसका जिनेन्द्र कुमार जैन समर्थन किया था मैं उन सभी व्यक्तियों की घोर निंदा करता हूँ ६३/ए, औद्योगिक क्षेत्र, गोविन्दपुरा, भोपाल |
अगर ऐसे बुद्धिमान लेखकों (सम्पादकों)के लिखने पर रोक मार्च और अप्रैल २००४ के 'जिनभाषित' में सम्पादकीय | लगायी गई तो भविष्य में कोई भी सत्य को लिखने का साहस
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मई 2004 जिनभाषित
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