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________________ रजि नं. UPIHIN/29933/24/1/2001-TC डाक पंजीयन क्र.-म.प्र./भोपाल/588/2003-05 जैन वाङ्मय के प्रामाणिक दस्तावेज : पू. प्रमाण सागर जी (27 जून 04 : 38वें जन्म दिवस पर विशेष) सुरेश जैन 'सरल' Oअल्पवय में अंतर्यात्रा की अंग्रेजी के महत्त्वपूर्ण भाषाविद् के रूप में जाने ओर उन्मुख होने वाले श्रेष्ठ जाते हैं। श्रमण परमपूज्य प्रमाणसागर 0 वे जैनागम, साहित्य, इतिहास, पुरातत्त्व, वास्तु जी मुनि साधना संयम और और दर्शन के मूर्तमान प्रमाण हैं। ज्ञान, ध्यान और सर्जना के सशक्त हस्ताक्षर तपकी त्रिवेणी के महान संगम सिद्ध हो चुके हैं। सिद्ध हो चुके हैं। 0 झारखंड प्रान्त के हजारीबाग नगर में 27 जून 0 धाराप्रवाह प्रांजल और प्रामाणिक प्रवचन प्रस्तत 1967 को श्रेष्ठ श्रावक श्री सुरेन्द्र कुमार जैन की करने का ढंगराष्ट्र में निराला सिद्ध हो चुका है। धर्मपत्नी, पूज्य मातेश्वरी श्रीमती सोहनीदेवी जी 0 प्रवचन और लेखन के समय समान रूप से शब्द की पावन कुक्षि से जन्म लेने वाले शिशु नवीन सौष्ठव पर अधिकार रखने वाले एक मात्र कुमार की हिमालयी प्रगति का वर्तमान स्वरूप हैंप्रवचनकार और कृतिकार सिद्ध हो चुके हैं। प.पू. मुनि प्रमाणसागर जी महाराज। मधुवन (शिखरजी) के समीप हजारीबाग में 031 मार्च 1988 महावीर जयंती के पावन दिवस उदित प्रज्ञा-सूर्य की तरह संतवर हमारे समक्ष हैं, पर श्री सिद्धक्षेत्र सोनागिरि की पवित्र भूमि पर उनके प्रवचन प्रस्तुतीकरण के समय प्रतीत होता / दिगम्बरी दीक्षा प्राप्त करने वाले श्रमण का हमारी है कि मधुवन में बांसुरी की मोहकता गुंजायमान साँसें पल-पल जयघोष करती हैं। हो रही है। 0 उनके द्वारा रचित, सर्जित, प्रवर्तित 8 महान उनका पथ अध्ययनप्रियता के घाटों से होकर कृतियाँ साहित्य संसार की धरोहर बन चुकी हैं। जाता है, उनकी शैली में उनका संयम तरंगित होता जिन्हें महान आचार्यों और वरिष्ठ विद्वानों ने जी है, उनका गुण समूह उनकी साधना का भरकर सराहा है। उन पुस्तकों के नाम याद रखें ध्वजारोहण करता है। और प्रयास कर पढ़ेंवे आगम के तलस्पर्शी अध्येता, जिनवाणी के 1.जैन तत्त्व विद्या प्रखर प्रवक्ता और साम्यभाव की तुला पर 2.जैनधर्म और दर्शन वात्सल्य लुटाने वाले सर्वमान्य शिरोमणि श्रमण 3. जैन सिद्धान्त शिक्षण 4.दिव्य जीवन का द्वार 0 जैनागम के आलोक-लोक के अमर नक्षत्र, संत 5. अंतस की आँखें शिरोमणि प.पू. आचार्यवर्य श्री विद्यासागर जी 6.धर्म जीवन का आधार महाराज के भास्वर-शिष्यों में से एक पू. प्रमाण 7. ज्योतिर्मय जीवन सागर जी मुनि के आत्मवैभव में 28 मूलगुणों के 8. पाठ पढें नव जीवन का। साथ-साथ, अन्य अनेक गुण भी परिलक्षित होते 0 धर्म प्रभावना में अग्रणी, श्रावक-संस्कारों को हैं। जैसे, चिन्मयि-धरातल पर सृजन के सोपान, जीवंतता प्रदान करने वाले, मृदुता, सहजता और ओजस्वी किन्तु ललित स्वर में प्रवचन का सरलता की मूर्ति, साहित्य-काव्यादि कला में सम्मोहन और वचनों से झरते मंत्र।। निष्णात मनीषी, दार्शनिक और प्रखर तपस्वी को 0 हिन्दीभाषी महान साधक, संस्कृत, प्राकृत और हमारे विनम्र प्रणाम।नमोऽस्तु। स्वामी, प्रकाश एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, जोन-1, महाराणा प्रताप नगर, Jain Education intenभोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं सर्वोदय जैन विद्यापीठ/1/205 प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित। www.jainelibrary.org.
SR No.524285
Book TitleJinabhashita 2004 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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