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कविताएँ
मुनिश्री क्षमासागर जी
उड़ान
निसर्ग नदी के ऊपर
सूरज ने कहाउड़ती चिड़िया ने
अपने द्वार खोलो आवाज दी
मेरी रोशनी नदी ने मुस्कराकर कहा
तुम्हारी होगी बोलो चिड़िया चिड़िया ने
वृक्षों ने कहाऔर ऊँची उड़ान ली
मेरे करीब बैठो पहाड़ के ऊपर
मेरी छाया उड़ती चिड़िया ने
तुम्हारी होगी आवाज दी
नदियों ने कहापहाड़ ने धीरे से कहाबोलो चिड़िया
मेरे किनारे आकर चिड़िया ने
हाथ बढ़ाओ और ऊँचे उड़ते-उड़ते पुकारा
मेरी बहती धारा पर आवाज खो गयी
तुम्हारी होगी चिड़िया लौट आयी है
मैंने ऐसा ही किया वह कहती है
अब रोशनी मेरी है कि अपनी आवाज अपने तक आती रहे
छाया भी मेरी है इतना ही
मेरे जीवन की धारा ऊँचे उड़ना।
निर्बाध बहती है। 'अपना घर' से साभार
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