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________________ का आठवां भाग है या साधिक पल्य का आठवां भाग। । मुनिदीक्षा गुरु कौन थे? १. सर्वार्थसिद्धिकार के अनुसार तो पल्य का आठवां भाग | समाधान : आपके प्रश्न का उत्तर अभी तक किसी को ही कहा गया है। स्पष्ट नहीं। पूज्य आचार्य श्री को मुनि दीक्षा किन आचार्य ने दी, २. राजवार्तिककार ने भी वार्तिक ८ में पल्य का आठवाँ | इस संबंध में निम्नप्रकार तीन प्रमाण मिलते हैं। भाग ही जघन्य स्थिति स्वीकार की है। १. चारित्र चक्रवर्ती लेखक पं. सुमेरचन्द्र जी दिवाकर ३. श्लोकवार्तिककार ने भी तत्वार्थसूत्र ४/४१ की टीका | पृष्ठ ७१-७२ के अनुसार यरनाल में पंचकल्याणक महोत्सव के में पल्य का आठवाँ भाग ही जघन्य आयु स्वीकार की है। अवसर पर, निर्ग्रन्थ मुनि देवेन्द्रकीर्ति ने, तप कल्याणक के मंगल ४. तत्वार्थवत्तिकार श्रुतसागर सूरि ने भी पल्य का आठवाँ | दिन. आपको ऐलक से मनि बनाया। (जिनदीक्षा प्रदान की) भाग ही जघन्य स्थिति स्वीकार की है। २. चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ के अंत में श्रमणों के संस्मरण छपे ५. तिलोयपण्णत्ति अधिकार ७ की गाथा ६२० में पल्य | हैं। उनमें पूज्य आचार्य श्री के गृहस्थ अवस्था के बड़े भाई मुनि का आठवां भाग ही कही है। वर्धमानसागर जी के संस्मरणों में पृष्ठ ४१० पर लिखा है, 'आचार्य ६. श्री त्रिलोकसार में गाथा ४४६ में भी जघन्य आयु १/८ | महाराज ने भौंसेकर आदिसागर मुनिराज से यरनाल में मुनि दीक्षा पल्य प्रमाण कही है। ली थी।' ७.सिद्धान्तसार संग्रह (आ. नरेन्द्रसेन विरचित) के आठवें मुनिश्री वर्धमानसागर जी के दीक्षा गुरु आ. शांतिसागर जी अध्याय के ५० वें श्लोक में इस प्रकार कहा है महाराज थे। तथा ये गृहस्थ अवस्था के भी बड़े भाई थे, अत: एकपल्योपमः कालस्तेषांसमधिकः कियान्। इनके कथन को अप्रमाणिक कैसे कहा जा सकता है? आयुरुत्कृष्टमाख्यातंतदष्ठंसोजघन्यकम्।।५०॥ . . चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ (लेखक : पं. सुमेरचन्द्र जी अर्थ- ज्योतिष्क देवों की उत्कृष्ट आयु एक पल्योपम और दिवाकर) का प्रथम संस्करण १९५३ में छपा था। इससे पूर्व के कुछ अधिक है और जघन्य आयु पल्योपम का अष्टमांश है ॥५०॥ छपे हुए जैन गजट हीरक जयंती विशेषांक (१३.६.५२ को छपा) ८. श्री सिद्धान्तसार दीपक अधिकार १४ के ११८ वें | के पृष्ठ २७ पर लिखा है, 'यरनाल गाँव में पंचकल्याणक महोत्सव श्लोक में जघन्य आयु १/८ पल्य प्रमाण कही है। के बीच मुनि दीक्षा उन्हीं साधु सिद्धसागर से ली थी।' पृष्ठ ७६ ९. हरिवंशपुराण सर्ग ६, पेज १२१, श्लोक ९ में जघन्य पर श्री परसादीलाल जी पाटनी के लेख 'तेजस्वी जीवन का आयु पल्य के आठवाँ भाग कही है। उत्कर्ष' में लिखा है कि यरनाल में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के १०. मूलाचार गाथा ११२० के अनुसार भी ज्योतिषी देवों अवसर पर, जिनसे क्षुल्लक दीक्षा ली थी, उन्हीं मुनि सिद्धसागर की जघन्य आयु पल्य के आठवें भाग कही है। से फागुनी सुदी १३ सं. १९७७ को साधु दीक्षा ग्रहण की। यद्यपि तत्वार्थसूत्र अध्याय ४/४१ के तत् शब्द से तथा इस प्रकार उपरोक्त तीन प्रमाणों के अनुसार चा.च. आचार्य सिद्धान्तसार संग्रह के उपरोक्त प्रमाण में तत् शब्द से साधिक पल्य श्री के दीक्षा गुरु के रुप में मुनि देवेन्द्रकीर्ति महाराज, मुनि का आठवाँ भाग ग्रहण किया जा सकता है, परन्तु किसी भी अन्य आदिसागर जी भौंसेकर तथा मुनि सिद्धसागर ये तीन नाम प्राप्त आचार्य ने पल्याधिक का आठवाँ भाग ग्रहण नहीं किया है। अतः होते हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि जब २० वीं शताब्दी के ज्योतिषियों की जघन्य आयु पल्य का आठवां भाग ही मानना प्रसंगों में इतनी विविधता है, तो प्राचीन इतिहास के प्रसंगों को उचित प्रतीत होता है। कितना सत्य कहा जाये? प्रश्नकर्ता : मूलचन्द्र जी, नागपुर १/२०५, प्रोफेसर कॉलोनी, जिज्ञासा : चा.च. आचार्य शांतिसागर जी महाराज के । आगरा -२८२ ००२ जिनभाषित के लिए प्राप्त दानराशि श्री कैलाशचन्द जी काला, सांभार का दिनांक २४.४.२००४ को स्वर्गवास होने पर उनकी पुण्य स्मृति में उनके सुपुत्र चि. वर्धमान, सुशीलकुमार, निर्मलकुमार काला द्वारा ५००/- रुपये प्राप्त हुए। मई 2004 जिनभाषित 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524285
Book TitleJinabhashita 2004 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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