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________________ -समाधान पं. रतन लाल बैनाड़ा प्रश्नकर्ता : अनन्त कुमार जैन, आगरा संख्यात के भेद हैं इसके आगे संख्या से रहित - असंख्यात जिज्ञासा : यदि किसी भोगभमियाँ जीव की आय एक [ है ॥ २२२-२२७ ॥ करोड पूर्व एक वर्ष हो तो उसे गिनने योग्य होने पर भी असंख्यात विशेष : अचल =८४ ४९०३१ शून्य होता है। यह संख्या वर्षायुष्क क्यों कहा जाता है ? डेढ़ सौ अंक प्रमाण है। अर्थात् इससे आगे की संख्या को असंख्यात समाधान : एक करोड़ पूर्व तक की आयु वालों को | मानना चाहिए। संख्यात वर्षायुष्क और इससे एक समय भी अधिक आयु वालों श्री तिलोपयण्णत्ति अधिकार - ४, गाथा २९६ से ३१२ को असंख्यात वर्षायुष्क कहना रुढ़ी है। वास्तव में यह संख्या तक भी उपरोक्त प्रकार ही वर्णन है। परन्तु गाथा ३१३ में उन्होंने संख्यात वर्ष में आती है। संख्यात और असंख्यात के संबंध में आ. अचल से बहुत आगे जाकर असंख्यात वर्ष माना है। जिनसेन ने आदिपुराण पर्व ३, श्लोक नं. २१८ से २२७ में इस प्रश्नकर्ता : नरेन्द्र कुमार जैन, सनावद प्रकार कहा है (टीका पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य) जिज्ञासा : कोई देव उपपाद शैया में जन्म लेकर बाहर __चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वाङ्ग होता है। चौरासी लाख निकलते समय क्या मनुष्यवत् वस्त्र रहित होते हैं या आगम में का वर्ग करने अर्थात् परस्पर गुणा करने से जो संख्या आती है उसे कुछ और वर्णन मिलता है स्पष्ट करें? पूर्व कहते हैं। समाधान : आगम में इस संबंध में ऐसा वर्णन मिलता है ” (८४००००४८४०००००-७०५६००००००००००) इस कि उपपाद शैया से बाहर आते समय देवगण मुकुट, माला आदि संख्या में एक करोड़ का गुणा करने से जो लब्ध आवे उतना एक सहित ही बाहर निकलते हैं। बाहर आने के बाद उनका विविध पूर्व कोटि कहलाता है। पूर्व की संख्या में चौरासी का गुणा करने | रूप से श्रृंगार किया जाता है। कुछ प्रमाण इस प्रकार हैंपर जो लब्ध आवे उसे पाङ्ग कहते हैं तथा पर्वाङ्ग में पर्वाङ्ग १. आदिपुराण पर्व ५, श्लोक २५७ अर्थात चौरासी लाख का गुणा करने से पर्व कहलाता है ।। २१८ ज्वलत्कुण्डलकेयूरमुकुटाङदभूषण। २१९ । इसके आगे जो नयुताङ्ग, नयुत आदि संख्याएँ कही हैं स्त्रग्वी सदंशुकधरः प्रादुरासीन्महाद्युति ॥२५७॥ उनके लिए भी क्रम से यही गुणाकार करना चाहिए। भावार्थ - अर्थ- दैदीप्यमान कुण्डल, केयूर, मुकुट और बाजूबन्द पर्व को चौरासी से गुणा करने पर नयुताङ्ग, नयुताङ्ग को चौरासी आदि आभूषण पहने हुए, माला से सहित और उत्तम वस्त्रों को लाख से गुणा करने पर नयुत, नयुत को चौरासी लाख से गुणा धारण किये हुए ही वह अतिशय कान्तिमान ललितांग नामक देव करने पर कुमुदाङ्ग, कुमुदाङ्ग को चौरासी लाख से गुना करने पर उत्पन्न हुआ। २५७॥ कुमुद, कुमुद को चौरासी से गुणा करने पर पद्माङ्ग और मदमाङ्ग २. आदिपुराण पर्व ६ में आयु के छह माह शेष रहने पर को चौरासी लाख से गुणा करने पर पद्म, पद्म को चौरासी लाख ललितांग देव के संबंध में इस प्रकार कहा हैसे गुणा करने पर नलिनाङ्ग और नलिनाङ्ग को चौरासी लाख से मालाचसहजा तस्यमहोर: स्थलसंगिनी। गुणा करने पर नलिन होता है। इसी प्रकार गुणा करने पर आगे म्लानिमागादमुष्येव लक्ष्मी विशलेषमीलुका॥२॥ संख्याओं का प्रमाण निकलता है। २२० । अब क्रम से उन संख्या अर्थ - जन्म से ही उसके विशाल वक्ष स्थल पर पड़ी हुई के भेदों के नाम कहे जाते हैं जो कि अनादिनिधन जैनागम में रुढ़ माला ऐसी म्लान हो गयी मानो उसके वियोग से भयभीत हो है।२२॥ उसकी लक्ष्मी ही म्लान हो गयी हो। (इससे प्रतीत होता है कि पूर्वाङ्ग, पूर्व, पर्वाङ्ग , पर्व, नयुताङ्ग, नयुत, कुमुदाङ्ग, जन्म के समय जो माला आदि पहने हुए जन्म होता है, वे जीवन कुमुद, पदमांङ्ग, पदम, नलिनाङ्ग, नलिन, कमलाङ्ग, कमल, तुटयङ्ग, पर्यंत तक शरीर पर रहती हैं) तुटिक, अटटाङ्ग, अटट, अममाङ्ग, अमम, हाहाङ्ग, हाहा, हूहबङ्ग, ३. आदिपुराण दशम पर्व, पृष्ठ २२३ पर, श्लोक नं. १७६ हूहू, लताङ्ग, लता, महालताङ्ग, महालता, शिरः, प्रकम्पित, | में इस प्रकार लिखा है- 'उस अच्युतेन्द्र का सुन्दर शरीर साथहस्तप्रहेलित और अचल ये सब उक्त संख्या के नाम हैं जो कि | साथ उत्पन्न हुए आभूषणों से ऐसा मालूम होता था मानो उसके कालद्रव्य की पर्याय हैं। यह सब संख्येय हैं प्रत्येक अंग पर दया रूपी लता के प्रशंसनीय फल ही लग रहे हों। मई 2004 जिनभाषित 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524285
Book TitleJinabhashita 2004 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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