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वनस्पतिकाय : जैन मान्यता और आधुनिक विज्ञान
___ डॉ. फूलचंद जैन 'प्रेमी' जैन धर्म ने अपने जिन शाश्वत सिद्धांतों का प्रतिपादन | की मांसपेशियों पर होती है। पौधों में भी हमारी तरह जीवत्व गुण प्रारंभ से किया, हजारों-हजार वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी आज वे | होता है, जिसकी मदद से वे अपने आप को और अपने परिवेश चिरनवीन हैं तथा आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर पूर्णतः सत्य ] को जानते -समझते हैं। भारत में इस वैज्ञानिक खोज का प्रथम सिद्ध होते हैं। 'वनस्पति' संबंधी मान्यता को ही लें। वनस्पति में | श्रेय प्रो. बसु को प्राप्त है। 'जीव' संबंधी जैन मान्यता को काफी समय तक एक वर्ग स्वीकार | पेड़-पौधे भावनाप्रधान होते हैं- यह बात अब वैज्ञानिक नटी करना था किंत विज्ञान ने जब इसे सिद्ध कर दिया तो यह | तथ्य है। बेजबान होने के बावजद वे बहत-कछ महसस कर वर्ग निरुत्तर हो गया। विज्ञान के प्रयोगों से उसे पूर्णतः सत्य सिद्ध | सकते हैं। वे अपने संरक्षणदाता से प्यार और यातना देने वाले से करने का श्रेय भारतीय वैज्ञानिक प्रोफेसर जगदीशचंद्र बसु को प्राप्त । नफरत भी करते हैं। पेड़ पौधों की संवेदनशीलता पर विभिन्न हुआ। अनेक वर्षों के गहन अनुसंधान के बाद उन्होंने प्रयोगों के | देशों में चल रही खोजों ने ऐसे अनेक रहस्यों से परदा हटाया है, द्वारा पौधों में जीवन के लक्षण सिद्ध किए और यह निष्कर्ष | जिन पर सहसा विश्वास नहीं होता। अमेरिकी वैज्ञानिक क्लाईव निकाला कि पौधे भी संवेदनशील होते हैं, वे भी बाहरी उत्तेजना | वेक्सीटर ने पेड़-पौधों की संवेदनशीलता पर कई दिलचस्प प्रयोग या बाधाओं पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। प्रोफेसर बसु ने वनस्पति | किए हैं। एक बार उन्होंने पौधे की यातना और दुख की अनुभूति के जीवन को साक्षात् देखने, मापने के लिए 'क्रेस्कोग्राफ' नामक | को रिकार्ड करने का प्रयोग किया। उन्होंने एक पौधे को सूक्ष्म एक अत्यंत संवेदनशील यंत्र बनाया। इसकी सहायता से पौधों की | संवेदना दर्ज करने वाली एक मशीन से जोड़ा और फिर उस पौधे अनुक्रियाओं (रेस्पांसेज) के 'ग्राफ' तैयार किए जाते हैं और यह | को गमले से उखाड़ फेंकने के बारे में सोचा। उनके आश्चर्य की जाना जाता है कि पौधों को आघात (कष्ट आदि) पहुँचाने पर वे | तब सीमा नहीं रही जब उन्होंने पाया कि उनके ऐसा सोचने-भर क्या अनुभव करते हैं ? उन्होंने पौधों पर अनेक तरह के प्रयोग | से पौधे से जुड़ी मशीन के ग्राफ में कंपन पैदा होने लगा। उन्होंने किए और जाना कि जिस तरह मनुष्य, पशु आदि थकान अनुभव | यह प्रयोग कई बार दोहराया। करते हैं और थकान के जो लक्षण इन पर दिखते हैं उसी तरह के | पेड़-पौधे काफी संवेदनशील होते हैं। उनके प्रति स्नेह लक्षण पौधों में भी पाए जा रहे हैं। जैन दर्शन में प्रयुक्त वनस्पति | रखने वालों से वे गहरा अपनत्व महसूस करते हैं। इसका प्रमाण संबंधी यह अवधारणा लाखों वर्ष प्राचीन है जिसे विज्ञान जगत में | उक्त अमेरिकी वैज्ञानिक को तब मिला जब एक दिन प्रयोगशाला भारतीय वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बसु ने सिद्ध कर बताया। पेड़ पौधों में पौधों पर अध्ययन के दौरान उनकी अंगुली कट गई और उससे अर्थात् वनस्पति में भी जीवन होता है- इस वैज्ञानिक निष्कर्ष से | खून बहने लगा। उसी समय उनकी नजर पौधे से जुडे सारे विश्व में हलचल सी मच गई। जैन मतावलंबी और मनीषी | 'गैलोविनोमीटर' नामक उपकरण पर पड़ी। उन्होंने देखा कि यह सब देख सुनकर आश्चर्यचकित थे कि प्राचीन जैन आगमों एवं | मीटर की सुई में कंपन पैदा हो रहा था। उनकी वेदना पौधे को शास्त्रों में तो यह तथ्य पहले से ही सिद्ध है। विज्ञान ने जब इसे | महसूस हो रही थी। एक अन्य प्रयोग में उक्त वैज्ञानिक ने अपने सिद्ध करके बताया तो लोगों को यह एक नई खोज लगी। । संरक्षित पौधों के सामने एक माली को गुजारा। इस दौरान मशीन
सर जगदीशचंद्र बसु ने एक प्रयोग से यह भी सिद्ध किया | से जुड़ी मीटर की सुई शांत रही। लेकिन जैसे ही एक लकड़हारे कि पौधों को 'क्लोरोफार्म' के द्वारा निष्चेत किया जा सकता है। को उन पौधों से होकर गुजारा, मीटर की सुई ने कंपन पैदा कर उसका प्रभाव समाप्त होने के बाद वनस्पतियाँ भी हमारी ही तरह | पौधे की बेचैनी प्रकट कर दी। रूसी वैज्ञानिक तथा मनोरोग सचेत हो उठती हैं। उन्होंने पौधों पर मदिरा का प्रयोग भी किया।। विशेषज्ञ वी.एन. पुश्किन ने अपने अनुसंधानों में भी यह सिद्ध यह देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ कि मदिरा के प्रभाव से अन्य | किया है कि पेड़ पौधों एवं मानव के तंत्रिका तंत्र (नर्वसप्राणियों की तरह वे भी मदहोश हो उठते हैं। उन्होंने यंत्र के | सिस्टम) में कहीं न कहीं गहरा संबंध जरूर है (दैनिक राष्ट्रीय माध्यम से यह भी देखा कि पत्तागोभी और गाजर को चाकू आदि | सहारा, १६/२/१९९९ के अंक से)। से काटने पर वे काँप उठते हैं। लोग यह जानकर आश्चर्यचकित | दक्षिणी यूरोप में पाए जाने वाले 'मैड्रांक' नामक वृक्ष की रह गए कि वनस्पति आदि जिन पदार्थों को लोग प्रायः निर्जीव | संवेदना को वहाँ के निवासी प्रायः प्रत्यक्ष ही देखते हैं। यह वृक्ष (निष्प्राण) एवं संज्ञाहीन मानते थे- उन पर भी मदिरा, विष, | दूर से देखने पर कंधे पर हाथ रखे आदमी की तरह नजर आता है। चोट, आघात की वही प्रतिक्रिया होती है जो मनुष्य या पशु आदि । इसकी विशेषता यह है कि इसे जड़ समेत उखाड़ने पर यह बच्चों
मई 2004 जिनभाषित 17
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