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________________ प्राकृतिक चिकित्सा 'आरोग्यं शरणं गच्छामि' डॉ. वन्दना जैन स्वास्थ्य हमारा सबसे बड़ा धन है। यह हमारा स्वरुप | ऑक्साइड की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है। जो मनुष्य जीवन तथा सिद्ध अधिकार भी माना गया है। इसकी साज संभाल हम कैसे | उनकी दीर्घायु के लिए घातक है। इसलिए हमें मॉर्निंग वॉक यानि करें, कि वह सदा खिला-खिला रहे, हमारे धर्म साधन में काम | प्रात:भ्रमण अवश्य करना चाहिए। आये और हम अपने बड़े-बूढों का चिरंजीव भव का आशीर्वाद वाकिंग का मतलब है तेज-चाल/एक मिनिट में १२० पूरा कर सकें। इसके लिये हमें कुछ सावधानियाँ बरतनी होंगी। कदम चलना। मुँह बंद करके चलना चाहिए। थक जाने पर कमर जीवन में सघन हो रहे तनाव अस्वास्थ्यकर ताकतों को हम कैसे | पर हाथ देते हुए, छाती चौरस करके श्वांस को सामान्य रखना शिकस्त दें। क्या खायें-पीयें, अलग-अलग रोगों में क्या सतर्कता | चाहिए। चहल कदमी और वाकिंग में यही अंतर है। बरतें। दिनोंदिन बिगड़ते पर्यावरण में अपने परिवार व खुद को | फास्ट एक्सरसाइज : (तेज व्यायाम) मॉर्निंग वॉक के कैसे स्वस्थ बनाये रखें। बारहों मास अलग-अलग ऋतुओं में कैसे | बाद शरीर को गर्म करने के लिये, कैलोरी को बर्न करने के लिये अपनी संभाल करें, जानने की कोशिश करते हैं। तथा रक्त संचार तीव्र करने के लिये फास्ट एक्सरसाइज करते हैं, यह जीवन बदलते मौसम की तरह है, कभी तूफानी सर्द | इसके बाद ध्यान करें। हवायें, कभी चिलचिलाती तेज गर्मी। कभी रुखा-सूखा उदास | ध्यान : जीवन में सघन हो रहे तनाव से बचने के लिये, पतझड़, तो कभी हरा-भरा बसंत । कभी बारिस की फुहारें, कभी | स्मरण शक्ति बढ़ाने तथा संकल्प शक्ति को दृढ़ करने, मन को सालों-साल सूखा ही सूखा। पर सच्चा राही वही है, जो हर | एकाग्र करने के लिये ध्यान का अभ्यास करें, ध्यान का सहारा लें। मौसम का रस ग्रहण करते हुए समान रुप से जीवन को खुशियों से | 'विश्व में ऐसा कोई हॉस्पिटल नहीं है जो अस्वस्थ्य भरा पूरा बनाये रखे। जिसे जीवन सत्र की क्षण भंगुरता और उसके | भावों का इलाज करता हो, पर ध्यान एक ऐसा औषधालय है जहाँ अस्थिर स्वरूप का बोध हो लेकिन इससे उसकी जीवन शक्ति | विभिन्न प्रयोगों के माध्यम से अस्वस्थ्य भावों का रेचन व स्वस्थ और खिल उठे, उस फूल की तरह जो कड़ी धूप और हवा के तेज झोंके सहकर भी टहनी पर खिला रहता है। उस पानी के बुल- आसन : स्थिर सुखमासनम् । जिसमें शरीर स्थिर रहे और बुलों की तरह जो जल की तरंगों पर तैरते हैं, मगर टूटते नहीं।। मन को सुख की प्राप्ति हो, शरीर की उस स्थिति को आसन कहा उस चांद की तरह जो सारा-सारा दिन अपना अस्तित्व मिटता | जाता है। आसन करने से नाड़ियों की शुद्धि, स्वास्थ्य की वृद्धि देखकर भी विचलित नहीं होता और रात घिरते ही जीवंत हो । एवं तन-मन की स्फूर्ति प्राप्त होती है। आसनों को हम ४ भागों में उठता है। बाँट सकते हैं। सुख में दुख में कठिन और विपरीत घड़ियों में आप विरत १. खड़े होकर किये जाने वाले आसन : रक्त को शुद्ध हुए बगैर अपने स्वास्थ्य की अर्चना में जुटे रहें जीवन का उत्साह | करते हैं इनसे स्नायु दुर्बलता दूर होती है रक्तचाप एनीमिया दूर सदैव अक्षुण्य बना रहे ऐसी जीवन पद्धति को हम अपनायें। । होता है। .. मार्निंग वॉक - प्रात:काल की सैर व्यायाम में सर्वोत्तम २. बैठकर किये जाने वाले आसन : मंदाग्नि दूर करते मानी गई है। प्रातः मुहूर्त का समय निद्रा त्याग का सर्वोत्तम समय | हैं, पाचक क्रिया बढ़ाते हैं। वायु विकार को दूर करते हैं। शरीर व है। इस समय की वायु के एक-एक कण में संजीवनी शक्ति का | चेतना को स्फूर्ति प्रदान करते हैं। अपूर्व सम्मिश्रण होता है। ज्ञान तंतु रात्रि में विश्राम के बाद नव ३. लेटकर किये जाने वाले आसन : आँखों की दुर्बलता शक्ति युक्त होते हैं, अतः प्रात:कालीन एकांत व सर्वथा शुद्ध | दूर होती है। फेफडों की क्रिया व्यवस्थित हो जाती है तथा वातावरण में मस्तिष्क एकदम उर्वरक हो जाता है, इस समय | सवाईकल स्पोन्डलाइटिस की शिकायत कभी नहीं रहती। वातावरण में ४.विपरीत आसन : सर्वांगासन, शीर्षासन, वृक्षासन आदि आक्सीजन (प्राणवायु) २१% इस श्रेणी में आते हैं, यह आसन रक्त की रुकावट को दूर करते हैं। नाइट्रोजन ७९ % मस्तिष्क, हृदय , गले तथा मलाशय व गुर्दे पर प्रभाव डालते हैं। कार्बनडाईऑक्साइड (दूषित वायु) ०.००३% होती है कैसा हो आहार : जैसा हमारा आहार होगा वैसा ही जो कि वाहन आदि के चलने से, कारखानों आदि के | हमारा व्यवहार होगा और जैसा हम अन्न खायेंगे वैसा ही मन हो प्रदूषण से पृथ्वी की गर्म वाष्प ऊपर उठती है, तब कार्बनडाई | जायेगा और जैसा हमारा मन सोचेगा वैसा ही हमारा तन करेगा। 18 मार्च 2004 जिनभाषित तिहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524283
Book TitleJinabhashita 2004 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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