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समाचार
उमा भारती सरकार को विद्यासागर जी का आशीर्वाद बिलासपुर (२४ जनवरी) उमा भारती की सरकार द्वारा मध्यप्रदेश में गौवंश वध पर प्रतिबंध लगाने संबंधी निर्णय पर राज्यपाल श्री रामप्रकाश गुप्त द्वारा मंजूरी प्रदान करने के साथ ही प्रदेश में अध्यादेश तत्काल लागू हो जाने की जानकारी मिलने पर प.पू. १०८ आचार्य श्री विद्यासागर जी ने प्रसन्नता व्यक्त की । यहाँ चल रहे पंचकल्याणक महोत्सव के पावन अवसर पर आचार्य महाराज ने कहा कि आज ही सुबह हमने सुना है कि म.प्र. के मुख्यमंत्री जो तीन-चार दिन पूर्व यहाँ आईं थीं और उस समय कुछ बातचीत हुई थी। बताकर गईं थीं कि मैं गौवंश प्रतिबंध की घोषणा करने जा रही हूँ। और आज उन्होंने मध्यप्रदेश से घोषणा कर दी कि जो गौवंश के ऊपर हाथ उठावेगा उसे तीन वर्ष का दण्ड मिलेगा और दस हजार रुपये का जुर्माना होगा। इस प्रकार से इसे हिंसा के ऊपर पाबंदी और अहिंसा की विजय की बात कह सकते हैं। राष्ट्र में पचास वर्ष के उपरांत भी इस प्रकार की घोषणा नहीं हो पायी थी। इसे अहिंसा और सत्यधर्म की विजय मानना चाहिए। उपस्थित धर्मालुओं से आपने कहा कि इस मामले में आप लोगों को पूरा-पूरा बल देना चाहिए, सहयोग देना चाहिए । तन से, मन से और धन से जो कुछ आपके पास है उसे न्यौछावर करके अहिंसा धर्म की विजय के लिए, स्वतंत्रता के लिये योगदान देना चाहिए। ऐसा स्वाभिमान आपके बच्चों में भी आना चाहिए ताकि प्राणीमात्र के प्रति हम लोगों का सौहार्द पनपे, जिस प्रकार आप स्वतंत्रता में जीना चाह रहे हो, उसी प्रकार से अन्य जीवों के लिए भी स्वतंत्रता मिलना चाहिए। वे घास फूँस खाते हैं और आपके लिए मीठा-मीठा दूध देते हैं। उनकी क्या दशा हो रही है, आप लोगों को ज्ञात नहीं है।
एक बात और कहूँगा संविधान की पुस्तिका के मुख पृष्ठ पर वृषभ का चिन्ह है, जिसे हम बैल बोलते हैं। भगवान ऋषभनाथ का चिन्ह भी बैल है, वृषभ है। जरा सोचिए। आज क्या हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दस-पन्द्रह वर्ष पूर्व में फैसला दिया गया था कि बैल अब किसी काम का नहीं है। इस फैसले के कारण बैल का वध करना प्रारंभ हो गया है। अब सचेत होना चाहिए । हड़प्पा-मोहन जोदड़ों के पुरातत्त्व अवशेष के रूप में बैल का चिन्ह मिला है। इसीलिए बैल के चिन्ह को संविधान की पुस्तक के मुख पृष्ठ पर अंकित करके सम्मान प्रदान किया गया है। और राष्ट्र में लोग उस बैल को कत्लखाने की ओर ले जा रहे हैं। राज्य सरकारों को, केन्द्रीय सरकार को इस संबंध में सचेत करना चाहिए। उन्हीं को वोट देना चाहिए, जो वंश की रक्षा करने को तत्पर हैं, तैयार हैं। अन्यथा इस देश का महत्वपूर्ण, उपयोगी
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गौवंश गायब हो जायगा । केवल आदर्श बताने के लिए नहीं है, गौवंश की रक्षा का कर्त्तव्य हमारे सामने है ।
हमारे चौबीस तीर्थंकर भगवान कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं। उनकी पहचान चिन्ह से होती है। ऋषभनाथ भगवान का चिन्ह वृषभ या बैल प्रतिमा के नीचे बनाये चिन्ह से है । इस दृष्टि से बहुत अच्छा काम किया है। मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री ने। यहीं से हम आशीर्वाद दे देते हैं। यहाँ से आशीर्वाद लेकर के तो वो गईं हैं और कह कर गईं हैं कि दो-तीन दिन के उपरांत हम (गौवध प्रतिबंध की ) घोषणा करने जा रहे हैं। बहुत अच्छी बात है । उनकी घोषणा की जानकारी हमारे पास आ गयी। हमारा भी आशीर्वाद उन तक पहुँचा दो, पहुँच भी गया होगा। हाँ, इसी प्रकार सभी प्रदेशों में इस प्रकार की घोषणा होने लग जाय । ऐसी ही घोषणा गुजरात भी होना चाहिए, राजस्थान में भी होना चाहिए। मध्यप्रदेश में हो गयी, तो छत्तीसगढ़ रूक कैसे सकता है ? लेकिन इतनी आवश्कता अवश्य है कि यह दयामय वातावरण सर्वत्र फैलता रहे।
प्रेषक - निर्मल कुमार पाटोदी २२, जॉय बिल्डर्स कॉलोनी, इन्दौर
पावागढ़ में मंगल प्रवेश
परमपूज्य संत शिरोमणि आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य आध्यात्मिक संत तीर्थोद्धारक वास्तुविज्ञ परमपूज्य मुनिपुंगव १०८ श्री सुधासागर जी महाराज, पूज्य क्षुल्लक श्री गंभीरसागर जी महाराज, पूज्य क्षुल्लक श्री धैर्यसागर जी महाराज ब्र. श्री संजयभैया ने चतुर्विद्य संघ सहित दिनांक २० दिसम्बर २००३ को मध्यान्ह २.०० बजे कोटा दादाबाड़ी मंदिर जी से 'श्री गिरनार जी सिद्धक्षेत्र वंदनार्थ सहसंतों, नरनारियों ने मंगल विहार किया।
मुनि संघ कोटा से रामगंजमंडी, मंदसौर, प्रतापगढ़, घोटाल, बांसवाड़ा, नागीदौरा आदि-आदि मार्ग से पदयात्रा श्रावक संघ सहित दिनांक १३ जनवरी २००४ को प्रातः ८ बजे श्री पावागढ़ सिद्धक्षेत्र तलहटी स्थित मंदिर जी में मंगलप्रवेश किया।
विशाल जिनमंदिर जी में पूर्व में विराजित प. पू. १०८ मुनि श्री समतासागर जी महाराज, मुनि श्री १०८ श्री सरलसागर जी महाराज, मुनि श्री १०८ आदिसागर जी महाराज, मुनि १०८ श्री अनेकांत सागर जी महाराज ने मार्ग में जाकर आगवानी की, सभी ने एक-दूसरे को प्रतिनमोस्तु किया एवं एक साथ विशाल द्वार में प्रवेश किया। मंदिर कमेटी व्यवस्थापकों ने रजत विशालथाल में पाद प्रक्षालन किया, आरती उतारी, समस्त मुनिसंघ के जयघोषके नारों से गुंजायमान किया।
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फरवरी 2004 जिनभाषित 27
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