SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर धनपुर में बड़का टोला क्षेत्र में गोरा तालाब के पास एक बड़ा | बिलहरी एवं कारी तलाई (जबलपुर जिला) से लाई गई है। टीला है जिसमें विशाल मंदिर के अवशेष दबे हैं। इसी प्रकार भौंहारा विशेष - ऋषभनाथ ने घोर तपस्या की थी अतः लंबे तालाब के उत्तर में लगभग एक कि.मी. दूर छोटे-छोटे टीले हैं इनमें समय तक तपस्या रत होने से उनके बाल बहुत बढ़ गये थे। अतः प्रत्येक टीले में मंदिर के अवशेष दबे होने की संभावना है। बेंगलर ने | उनकी कुछ प्रतिमाओं में कंधे पर लटकते हुये बाल भी प्रदर्शित अपनी १८७३-७४ की रिपोर्ट में इन टीलों में से एक में छः मंदिर | किये गये हैं। इनका चिन्ह (लांछन) वृष है, यक्ष गोमुख एवं एवं इसके पश्चिम में आधा कि.मी. दूर एक टीले में चार मंदिर और | यक्षी चक्रेश्वरी है, जिनके हाथों में चक्र रहता है। उसके आसपास अन्य मंदिरों की चर्चा की है। इनमें से सभी नहीं तो अन्य तीर्थंकर प्रतिमाएँ अधिकांश मंदिर जैन मंदिर प्रतीत होते हैं। संग्रहालय में कारीतलाई की कुछ और प्रतिमाएँ भी हैं, धनपुर में प्राप्त जैन प्रतिमायें इस प्रकार हैं जिनमें दो-दो तीर्थंकर कायोत्सर्ग आसन में ध्यान मुद्रा में हैं। इनमें महावीर उनके चिन्ह भी प्रदर्शित हैं। इन प्रतिमाओं में सफेद बलुये पत्थर भगवान महावीर की दो प्रतिमाएँ यहाँ मिली हैं यद्यपि ये की जो जोड़ियाँ तीर्थंकरों की हैं वे इस प्रकार हैं। १. ऋषभनाथ खंडित स्थिति में मिली हैं, कायोत्सर्ग मुद्रा में सोमनाथ तालाब के एवं अजितनाथ, २. धर्मनाथ एवं शांतिनाथ, ३. पुष्पदंत एवं पास ये हैं। चौबीसवें तीर्थंकर महावीर की प्रतिमा के आसनपट्ट शीतलनाथ ये लगभग १०७ से.मी. ऊँची हैं। इन्हीं के साथ लाल के मध्य में सिंह मुख अंकित है। चरण चौकी के नीचे यक्षी, बलुये पत्थर की १३८ से.मी. ऊँची एक और जोड़ी अजितनाथ सिद्धायनी है, इनके दोनों ओर एक-एक सिंह है। महावीर के । | एवं संभवनाथ वाली प्रतिमा की है। दाहिनी ओर मातंग है। यह लगभग ८ वीं- ९ वीं सदी की है। दूसरी प्रतिमा भी कायोत्सर्ग मुद्रा में लंबे कर्ण एवं धुंघराले संग्रहालय में एक प्रतिमा चौबीसवें तीर्थंकर महावीर की केशों वाली है। है जो बुद्ध के समाक़ालीन है। इनका चिन्ह सिंह है। इस प्रतिमा महावीर में ये ऊँचे सिंहासन पर पद्मासन में ध्यानस्थ हैं। इनकी छाती पर महावीर की एक और प्रतिमा, दुर्गा मंदिर के पास है यह श्रीवत्स चिन्ह अंकित है। ध्यानस्थ मुद्रा में है। सिर पर त्रिछत्र है वक्ष पर श्री वत्स अंकित है अंबिका आसन पट्ट के नीचे शासन देवी सिद्धायनी है। आसनपट्ट पर सिंह संग्रहालय में अंबिका की दो प्रतिमायें हैं। एक में वे सिंह मख भी है। दाहिने पार्श्व में मातंग एवं नीचे उपासक दिखाये गये | पर ललितासन में बैठी हैं एवं एक में आम वृक्ष ने नीचे खड़ी हैं। हैं। त्रिछत्र के दोनों तरफ मालाधारी विद्याधर युगल हैं। ये तीर्थंकर नेमिनाथ की यक्षी हैं। पार्श्वनाथ सर्वतो भद्रिका पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा पेंड्रा हाई स्कूल के प्रांगण में संग्रहालय में जैन धर्म की एक ऐसी प्रतिमा भी है जिसे एक चबूतरे पर ध्यानस्थ मुद्रा में है। मस्तक के पीछे सात फणों का | किसी भी दिशा से देखने पर तीर्थंकर के दर्शन होते ही हैं। इस छत्र तथा आसन पट्ट के दोनों तरफ सिंह प्रदर्शित हैं। इनके दोनों | प्रतिमा में ऋषभनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर ये चार पार्श्व में क्रमशः धर्मेन्द्र, ईशानेन्द्र, धरणेन्द्र एवं पद्मावती को | तीर्थंकर प्रदर्शित किये गये हैं। दिखाया गया है। त्रिछत्र के दोनों तरफ हाथियों के नीचे मालाधारी सिरपुर में गंधर्व युगल हैं। जैन धर्म के प्राचीन अवशेष सिरपुर में भी मिलते हैं। रायपुर के संग्रहालय में वेंगलर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि किले के पास एक जैन रायपुर के संग्रहालय में जैन धर्म से संबंधित प्रतिमायें इस | मंदिर के अवशेष जिसके नारों ओर जैन मंत्री भारतियाँ प्रकार हैं इसे जैन विहार होना बताती हैं। पार्श्वनाथ सिरपुर संग्रहालय में जैन धर्म संबंधी प्रतिमायें सुरक्षित हैं। यह प्रतिमा पद्मासन में ध्यानस्थ मुद्रा में है एवं तेइसवें राजिम एवं धमतरी में - राजिम की वर्तमान बस्ती के जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की है। यह सिरपुर से मिली थी जो संग्रहालय | उत्तर में कुछ दूर नदी तट से कुछ हटकर सोमेश्वर महादेव मंदिर रायपुर में रखी गई है। यह छत्तीसगढ़ के सोमवंशी शासकों के है। इस मंदिर के प्रांगण में जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा है। काल की है। तीर्थंकर के सिर पर सप्तफणों वाले सर्प का छत्र है। यह कुंडलित नाग पर पद्मासन में बैठी मुद्रा में है। इनके सिर पर सप्त फण वाले नाग की छत्र छाया है। अधोभाग पर मध्य में चक्र ऋषभनाथ है। इनके दोनों पावों में एक दूसरे की ओर पीठ किये हुये सिंह जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ को आदिनाथ भी | की मूर्तियाँ हैं। तीर्थंकर के दोनों पार्यों में एक-एक परिचारिका कहा जाता है। संग्रहालय में ऋषभनाथ की सुंदर प्रतिमा है जो । -फरवरी 2004 जिनभाषित 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524282
Book TitleJinabhashita 2004 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy