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________________ sort.' प्रयोग संभव है। और अब वर्तमान समय में मनोविज्ञान को । आत्मा का वैज्ञानिक प्रकरण) से चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा सर्वसम्मति से व्यवहार का मनोविज्ञान ही माना जाता है। मनोविज्ञान वास्तविक प्रयोगों पर आधारित अनुभव-प्रसूत कुछ सत्य घटनाएँ के इस समस्त इतिहास पर व्यंग्य करते हुए आर.एस. बुड्सबर्थ ने | एवं तदजनित मान्यताएँ प्रस्तुत हैंलिखा तंत्रिका शल्य चिकित्सा विशेषज्ञ स्पेट्जलर का अनुभव : 'First Psychology lost its soul, then it lost its mind, १९९१ की ग्रीष्म ऋतु में डॉ. स्पेट्रजलर के पास पाम then it lost its consciousness. It has still a behavour of a | रीनोल्ड नाम की ३१ वर्षीय महिला आई जो तीन बच्चों की माँ थी। उसके मस्तिष्क में जीवन को ही संकट में डालने वाला एक (सर्वप्रथम मनोविज्ञान ने आत्मा का त्याग किया फिर उभार (Bulge) था। डॉ. ने उससे कहा कि ऑपरेशन के दौरान मस्तिष्क (मन) का त्याग किया फिर अपनी चेतना छोड़ी और उसके हृदय को रोक देना पड़ेगा, इस समय मस्तिष्क भी निष्क्रिय अब वह व्यवहार के स्वरूप को अपनाता है।) रहेगा। इस तरह समस्त नैदानिक मापदंडों के अनसार वह एक इस तरह मनोविज्ञान जो दर्शनशास्त्र की ही एक विशिष्ट घंटे तक मृत रहेगी। स्वीकृति मिलने पर डॉक्टरों ने ऑपरेशन की शाखा है और दर्शनशास्त्र जिसमें मूलतः आत्मा-परमात्मा के संबंधों तैयारियां की। रोगी महिला को निश्चेतक दिया गया। इस निश्चेतन की व्याख्या होती है, ने आत्मा के अस्तित्त्व को ही नकारना प्रारंभ दशा में डॉक्टरों ने एक मशीन जिसमें से खर-खर ध्वनि निकलती कर दिया। किन्तु पाश्चात्य विश्व के अनेक वैज्ञानिकों/विद्वान | थी, उसकी प्रम (lead) के प्लग रोगी के दोनों कानों में फिट कर मनीषियों ने समय-समय पर आत्मा की सत्ता या चेतना की सत्ता दिये ताकि ऑपरेशन के दौरान रोगी के मस्तिष्क में एक प्रत्यंग सेवा स्वीकार की है भले ही वे प्रायोगिक आधार पर इसे सिद्ध न कर विशेष (brainstem) की क्रियाओं के मापन पर नजर रखी जा सके हों। प.पू. मुनि १०८ श्री प्रमाणसागर जी ने अपने सुविख्यात सके क्योंकि मस्तिष्क का यह प्रत्यंग श्रवण शक्ति को नियंत्रित ग्रन्थ 'जैन धर्म और दर्शन' में इसका उल्लेख किया है। अलबर्ट करने एवं मस्तिष्क की अन्य अनैच्छिक क्रियाओं में महत्वपूर्ण आइन्सटाइन को उद्धृत करते हुए कहा गया है 'मैं जानता हूँ कि भूमिका का निर्वाह करता है। हृदय कि धड़कन, श्वांस, शरीर का सारी प्रकृति में चेतना काम कर रही है।' सर ए.एस. एडिग्टन के तापमान तथा जीवित प्राणी के सभी अन्य चिन्हों का पता लगाने अनुसार 'कुछ अज्ञात शक्ति काम कर रही है, हम नहीं जानते वह के लिये अन्य अतिरिक्त यंत्र लगा दिये गये ताकि ऑपरेशन के क्या है? मैं चैतन्य को मुख्य मानता हूँ, भौतिक पदार्थों को गौण।' | दौरान रोगी के जीवित रूप में होने वाली कोई भी क्रिया-प्रतिक्रिया अन्य विद्वान जे.वी.एस. हेल्डन का कथन है। सत्य यह है कि पर नजर रखी जा सके क्योंकि ऑपरेशन के होते रहते समय रोगी विश्व का मौलिक तत्त्व जड़ (Matter), बल (Force) या में जीवन के चिन्ह नहीं दिखने चाहिये थे। सभी नैदानिक मापदंडों भौतिक पदार्थ (Physical things) नहीं है, किन्तु मन और | के अनुसार उसे मृत ही रखा जाना था अन्यथा ऑपरेशन के दौरान चेतना ही है' सर ऑलीवर लॉज को विश्वास है, 'वह समय | ही उसकी मृत्यु का खतरा था। और तो और उसके सभी अंगों आएगा जब विज्ञान द्वारा अज्ञात विषय का अन्वेषण होगा। विश्व (Limbs) की क्रियाओं का (हलन-चलन) रोक दिया गया था। जैसा कि हम सोचते थे, उससे भी कहीं अधिक उसका आध्यात्मिक उसकी आँखों को स्नेहक (Lubricated) करके बंद कर टेप अस्तित्व है। वास्तविकता तो यह है कि हम उक्त आध्यात्मिक लगाकर सील कर दिया गया था। इस तरह उसका हृदय, फैंफड़े, जगत के मध्य में हैं जो भौतिक जगत से ऊपर है।' श्वांस-प्रच्छवास, आँख, नाक, कान आदि सभी का संचालन बंद अब तो पिछले दशक में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के बहुचर्चित था। चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुभव-प्रसूत तथ्यों ने आत्मा के अस्तित्व __ जैसे ही डॉ. स्पेट्रजलर ने रोगी की खोपड़ी खोलने के को स्वीकार नहीं करने वाले वैज्ञानिकों को चुनौती दी है और उन्हें लिये एक आरी नुमा औजार निकाला तब उसी समय ऐसी अद्भुत अपनी मान्यताओं पर पुनर्विचार करने हेतु वाध्य किया है। अन्तर्राष्ट्रीय घटना घटित हुई जो इससे पूर्व कभी भी रोगी की क्रियाओं को स्तर की एक अंग्रेजी पत्रिका 'रीडर्स डायजेस्ट' (Readers मॉनीटर करने वाले किसी भी अति संवेदनशील प्रणाली पर घटित Digest) के ताजे अंक (अक्टूबर २००३) में प्रकाशित अनीता नहीं हुई थी। रोगी रीनोल्ड को अपने शरीर में एक तड़क का वार्थोलोम्यु (Anita Bartheolomeu) के लेख 'आफ्टर लाइफ, अनुभव हुआ। बाद में उसने बताया कि डॉक्टर स्पेट्रजलर के दि साइंटिफिक केस फॉर दि हयूमन सोल' (मृत्योपरान्त मानव मानव | कन्धों से ठीक ऊपर जहाँ से देख पाना सुविधाजनक था, स्थित 20 फरवरी 2004 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524282
Book TitleJinabhashita 2004 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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